सतयुग-(29)एक धर्म, एक भाषा, एक राजा
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“सतयुग: एक धर्म, एक भाषा, एक राजा | दिव्यता और एकता की स्वर्णिम दुनिया | Brahma Kumaris”
एक धर्म, एक भाषा, एक राजा
परिचय: सतयुग — एकता और दिव्यता का युग
सतयुग को केवल “स्वर्ण युग” नहीं कहा जाता,
बल्कि उसे “वन रिलिजन, वन लैंग्वेज, वन रूलर” की दुनिया भी कहा जाता है।
वहाँ कोई विरोध, द्वेष या भिन्नता नहीं होती।
केवल एक धर्म, एक भाषा और एक राजा-रानी की दिव्य सत्ता होती है।
1. एक धर्म — आदि सनातन देवी-देवता धर्म
सतयुग में केवल एक ही धर्म होता है —
“आदि सनातन देवी-देवता धर्म”।
वहाँ न कोई ईसाई होता है, न मुस्लिम, न बौद्ध, न सिख।
हर आत्मा देवता स्वरूप होती है — पवित्र, सतोप्रधान और सुखदायी।
इस धर्म का नेतृत्व करते हैं भगवान-भगवती लक्ष्मी-नारायण,
जिनके राज्य में दुख का नामोनिशान नहीं होता।
2. एक भाषा — दिव्य संवाद का माध्यम
आज भले दुनिया में सैंकड़ों भाषाएं हों,
पर सतयुग में होती है केवल एक ही भाषा।
यह भाषा संस्कृति से नहीं, संस्कारों से जुड़ी होती है —
पवित्र, मधुर, दिव्य और आत्मिक संवाद की भाषा।
यह ऐसी भाषा होती है जिसमें
ना कोई गलतफहमी होती है, ना कोई विवाद।
3. एक राजा-रानी — श्री लक्ष्मी-नारायण का अखण्ड राज्य
सतयुग में सम्पूर्ण भारत पर होता है केवल एक ही शासन —
श्री लक्ष्मी और श्री नारायण का अखण्ड और शांतिपूर्ण राज्य।
उन्हें ही कहा गया है “भगवान और भगवती”,
जिनका राज्य “वन गॉड, वन गवर्नेंस” की मिसाल है।
4. एक भारत — सम्पूर्ण एकता और दिव्यता
सतयुग का भारत सीमाओं से मुक्त होता है।
ना कोई देश, ना युद्ध, ना सीमारेखा —
केवल एक राष्ट्र, एक संस्कृति, एक राजसत्ता।
वहाँ के सभी नागरिक भारतवासी होते हैं —
देवता समान, दिव्य और सदा सुखी।
5. संगम युग पर हो रही है स्थापना
यह एक धर्म, एक भाषा, एक राजा की स्थापना अभी संगम युग पर ही हो रही है।
परमात्मा शिव, ब्रह्मा के माध्यम से,
फिर से एक दिव्य भारत और एकता का संसार रच रहे हैं।
यही है “वन वर्ल्ड, वन रिलिजन, वन रूलर — सतयुग”।
6. त्रेता और द्वापर: गिरावट की शुरुआत
सतयुग के बाद आता है त्रेता — जहाँ राजा-रानी का शासन होता है।
फिर आता है द्वापर — जहाँ से अनेक धर्मों, विवादों और भक्ति मार्ग की शुरुआत होती है।
वहाँ से आत्मा अंधश्रद्धा, मत-मतांतर और दुख में प्रवेश करती है।
सतयुग — एक धर्म, एक भाषा, एक राजा
प्रश्न 1:सतयुग को “एकता का युग” क्यों कहा जाता है?
उत्तर:सतयुग में न कोई भिन्न धर्म होता है, न अलग-अलग भाषाएं, और न ही अनेक शासक। वहाँ केवल एक धर्म (आदि सनातन देवी-देवता धर्म), एक भाषा (दिव्य और आत्मिक), और एक महाराजा-महारानी (लक्ष्मी-नारायण) का अखण्ड राज्य होता है। इसलिए सतयुग को “एकता का युग” कहा जाता है।
प्रश्न 2:सतयुग में कौन-सा धर्म होता है और उसके विशेष गुण क्या हैं?
उत्तर:सतयुग में केवल आदि सनातन देवी-देवता धर्म होता है। यह धर्म पवित्र, सतोप्रधान, और स्वर्णिम होता है। इसमें रहने वाले सभी आत्माएँ देवता स्वरूप होती हैं, जिनका जीवन दिव्य, मर्यादित और सुखमय होता है।
प्रश्न 3:क्या सतयुग में कई भाषाएं होती हैं?
उत्तर:नहीं, सतयुग में सिर्फ एक ही भाषा होती है, जो दिव्य और आत्मिक होती है। यह भाषा किसी देश या लिपि पर आधारित नहीं होती, बल्कि संस्कारों और शुद्ध संकल्पों की भाषा होती है। इसलिए वहाँ कभी कोई गलतफहमी या झगड़ा नहीं होता।
प्रश्न 4:सतयुग में शासन व्यवस्था कैसी होती है?
उत्तर:वहाँ सम्पूर्ण भारत पर एक ही महाराजा और महारानी का शासन होता है — श्री लक्ष्मी और श्री नारायण। इस शासन को “वन गॉड, वन गवर्नमेंट” कहा जाता है, जो सम्पूर्ण प्रजा को समान रूप से दिव्यता और सुख प्रदान करता है।
प्रश्न 5:क्या सतयुग में अलग-अलग देश होते हैं?
उत्तर:नहीं, सतयुग में सम्पूर्ण भारत एक अखण्ड राज्य होता है। वहाँ कोई सीमा, कोई युद्ध, और कोई जातीय या राष्ट्रीय भेद नहीं होता। सभी आत्माएं एक ही संस्कृति, एक ही धर्म, और एक ही संकल्प में बंधी होती हैं।
प्रश्न 6:सतयुग की यह एकता और दिव्यता कब और कैसे स्थापन होती है?
उत्तर:यह सब संगम युग में स्थापन होता है, जब परमात्मा शिव स्वयं ब्रह्मा द्वारा एक धर्म, एक भाषा, और एक राजा की इस नई दुनिया की नींव रखते हैं। यही आज ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के माध्यम से हो रहा है।
प्रश्न 7:त्रेता और द्वापर में क्या परिवर्तन आता है?
उत्तर:सतयुग के बाद त्रेता में शासन व्यवस्था थोड़ी कमजोर होती है — वहाँ राजा-रानी होते हैं। लेकिन द्वापर से ही गिरावट की शुरुआत होती है, जहाँ अनेक धर्म, भाषा, और मतभेद प्रकट होते हैं और भक्ति मार्ग (वाम मार्ग) का आरंभ होता है।
अंतिम प्रेरणा:
“सतयुग एक दिव्य यथार्थ है, कल्पना नहीं। आज संगम युग में वह एकता का युग फिर से स्थापन हो रहा है — जहाँ धर्म, भाषा, और शासन — सब एक होगा। हमें भी इस दिव्य राज्य का अधिकारी बनने की तैयारी करनी है।”
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