सतयुग-(32) छाेटी परन्तु सर्वश्रेष्ठ दुनिया
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“सतयुग — छोटी परन्तु सर्वश्रेष्ठ दुनिया | स्वर्ण युग का राज़ | Brahma Kumaris Q&A Series”
सतयुग — छोटी परन्तु सर्वश्रेष्ठ दुनिया
1. सतयुग: बहुत छोटी और सजीव दुनिया
सतयुग की दुनिया को “छोटी” कहा गया है —
क्योंकि वहाँ की जनसंख्या, जीवनशैली और प्रकृति — सब कुछ सजीव, सीमित और दिव्य होता है।
वहाँ लाखों-करोड़ों की भीड़ नहीं होती
जीव-जन्तु भी थोड़े और सौम्य होते हैं
84 लाख योनियाँ नहीं होतीं
वहाँ की प्रकृति भी संतुलित और अहिंसक होती है
हर आत्मा एक दिव्य देह में, शांत वातावरण में सुख का अनुभव करती है —
जहाँ न शोरगुल होता है, न प्रदूषण, न ही आपाधापी।
2. सतयुग में भक्ति, सन्यास और वैराग्य नहीं होते
भक्ति मार्ग तब शुरू होता है जब आत्मा दुख में होती है, परम सत्य को ढूंढती है।
पर सतयुग में आत्मा पहले से ही सिद्ध अवस्था में होती है।
वहाँ कोई पूजा नहीं
कोई व्रत-उपवास नहीं
कोई सन्यास या साधु-संन्यासी नहीं
देवतुल्य आत्माएँ स्वयं पूज्य होती हैं —
वे पूजक नहीं, पूज्य हैं।
इसलिए सतयुग को कहा गया है — “भक्ति-रहित ज्ञान युक्त राज्य।”
3. सतयुग: एक सजीव ‘स्वीट होम’
सतयुग को “स्वीट होम” कहा गया है —
क्योंकि वहाँ हर आत्मा के व्यवहार में मधुरता, स्नेह और दिव्यता होती है।
देवताएँ अति स्वीट होती हैं
किसी के प्रति द्वेष नहीं, कठोरता नहीं
केवल आत्मिक प्रेम और सम्मान
यह संसार आत्माओं के लिए घर के समान होता है —
जहाँ डर नहीं, मोह नहीं, बस सुख और शान्ति का साम्राज्य होता है।
4. वहाँ शान्ति भी है, और सुख का राज्य-भाग्य भी
सतयुग में आत्मा को तीनों क्षेत्रों में शान्ति मिलती है:
शरीर में स्वास्थ्य और सौंदर्य
मन में स्थिरता और आनंद
सम्बन्धों में प्रेम और संतुष्टि
हर आत्मा को राज्य-भाग्य प्राप्त होता है —
कोई दीन-हीन नहीं होता।
हर कोई या तो राजा-रानी होता है या सुखी प्रजा।
वहाँ रोग, शोक, चिंता का नाम-निशान नहीं होता
हर दिन त्योहार से भी श्रेष्ठ होता है
5. एक झलक: तुम्हारा भविष्य भी यही बन सकता है
सतयुग कोई कल्पना नहीं —
यह वही स्वर्ण युग है, जिसे परमात्मा संगम युग पर आकर पुनः स्थापित कर रहे हैं।
आज जो आत्मा परमात्मा से योग लगाकर पावन बनती है,
वही आत्मा कल इस दिव्य दुनिया की अधिकारी बनती है।
अब हमारा कार्य है:
अपने जीवन को पवित्र, सजीव और दिव्य बनाना —
ताकि हम भी इस छोटी परन्तु सर्वश्रेष्ठ दुनिया में जन्म ले सकें।
1. प्रश्न: सतयुग को “छोटी परन्तु सर्वश्रेष्ठ” दुनिया क्यों कहा जाता है?
उत्तर:सतयुग को “छोटी दुनिया” इसलिए कहा जाता है क्योंकि वहाँ जनसंख्या बहुत सीमित होती है और जीव-जंतुओं की संख्या भी आज की तुलना में बहुत कम होती है। वहाँ ८४ लाख योनियाँ नहीं होतीं। यह दुनिया “सर्वश्रेष्ठ” इसलिए है क्योंकि वहाँ की आत्माएँ सतोप्रधान, पूर्ण पवित्र, और सुखी होती हैं। वहाँ कोई प्रदूषण, शोर, भीड़भाड़ नहीं होती — सब कुछ सजीव, सौम्य और दिव्य होता है।
2. प्रश्न: क्या सतयुग में भक्ति, सन्यास या वैराग्य होता है?
उत्तर:नहीं, सतयुग में न भक्ति होती है, न सन्यास, न वैराग्य। क्योंकि वहाँ आत्माएँ पूर्ण हैं — उन्हें किसी साधना, खोज या तपस्या की आवश्यकता नहीं होती। वे स्वयं देवता होती हैं — पूजक नहीं, पूज्य होती हैं। भक्ति मार्ग की शुरुआत तब होती है जब आत्मा पतित होकर दुखी होती है, जबकि सतयुग में आत्मा जन्म से ही पावन होती है।
3. प्रश्न: सतयुग को “स्वीट होम” क्यों कहा जाता है?
उत्तर:सतयुग को “स्वीट होम” इसलिए कहा जाता है क्योंकि वहाँ सिर्फ प्रेम, मधुरता और दिव्यता का वातावरण होता है। देवता आत्माएँ अति स्वीट होती हैं — उनका व्यवहार, बोलचाल, संबंध सब में आत्मिक स्नेह होता है। यह संसार आत्माओं के लिए ऐसा होता है जैसे कोई सजीव, सुखद और सुरक्षित घर — जहाँ न डर है, न दुख, सिर्फ शान्ति और सम्मान है।
4. प्रश्न: सतयुग में कैसा राज्य और समाज होता है?
उत्तर:सतयुग में हर आत्मा को सुख और शान्ति का राज्य-भाग्य प्राप्त होता है। कोई ग़ुलाम नहीं होता — हर आत्मा राजा-रानी या संतुष्ट प्रजा होती है। वहाँ न कोई रोग है, न झगड़े, न दुख, न ही कोई चिंता। शरीर, मन और संबंध — तीनों स्तरों पर पूर्ण शान्ति होती है। हर दिन पर्व से श्रेष्ठ होता है क्योंकि वह पिछले जन्मों की कमाई का फल होता है।
5. प्रश्न: क्या सतयुग कोई कल्पना है या हमारा भविष्य बन सकता है?
उत्तर:सतयुग कोई कल्पना नहीं, बल्कि वह दिव्य भविष्य है जिसे परमात्मा संगम युग पर आकर पुनः स्थापित करते हैं। आज जो आत्मा स्व-परिवर्तन द्वारा पावन बनती है और परमात्मा से योग जोड़ती है — वही आत्मा भविष्य में सतयुग की देवता आत्मा बनती है। यह जीवन संगम युग का अवसर है — जब हमें इस छोटी, सुंदर, सर्वश्रेष्ठ दुनिया के अधिकारी बनने के लिए स्वयं को तैयार करना है।
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