Satyug – (22) Who is the owner of Satyug? The immortal journey from Radhe-Krishna to Laxmi-Narayan

सतयुग-(22) सतयुग के मालिक कौन? राधे-कृष्ण से लक्ष्मी-नारायण तक की अमर यात्रा

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“सतयुग के मालिक कौन? राधे-कृष्ण से लक्ष्मी-नारायण तक की अमर यात्रा!”
| स्वर्ग की राजधानी ‘अमरलोक’ और श्रेष्ठ प्रालब्ध की गूढ़ कहानी |


 प्रस्तावना: चलिए चलें स्वर्ग की ओर…

क्या आपने कभी सोचा है — सतयुग का मालिक कौन है?
वो दिव्य युग जहाँ हर आत्मा सुख, शांति और आनंद में रहती है —
वहाँ का पहला सम्राट कौन होता है?

आज हम चलेंगे उस अमर यात्रा पर,
जहाँ राधे और कृष्ण, बाल रूप में दिखाई देते हैं,
और वही आत्माएं आगे चलकर बनती हैं — लक्ष्मी और नारायण


 1. राधे-कृष्ण: छोटे रूप में भविष्य के मालिक

सतयुग की शुरुआत में दिखाई देते हैं —
राधे और कृष्ण — बाल रूप में, मासूम, कोमल और दिव्यता से भरपूर।

वे कोई साधारण बालक नहीं,
बल्कि भविष्य के महाराजा और महारानी हैं।

उनका हर गुण दर्शाता है कि यह आत्माएं श्रेष्ठतम कर्मों की धरोहर हैं,
जिन्हें स्वर्ग के प्रथम मालिक बनने का अधिकार मिलने वाला है।


 2. लक्ष्मी-नारायण: सतयुग के प्रथम महाराजा-महारानी

जब वही राधे-कृष्ण युवावस्था में आते हैं,
तो वे बनते हैं — लक्ष्मी और नारायण

इनका परिचय क्या है?

  • 16 कला संपन्न

  • अहिंसक धर्म के संस्थापक

  • स्वर्ग के प्रथम मालिक

उनका राज्य एक आदर्श है —
जहाँ कोई दुःख नहीं, कोई अशुद्धता नहीं, केवल दिव्यता और शांति है।


 3. यह श्रेष्ठ प्रालब्ध कोई साधारण नहीं बना सकता

यह प्रालब्ध कोई इंसान नहीं बना सकता,
इसे बनाते हैं स्वयं परमात्मा शिव, जब वह संगम युग पर अवतरित होते हैं।

राजयोग, ज्ञान और पावन स्मृति के द्वारा
वह आत्माओं को तैयार करते हैं —
स्वर्ग के ताज और तख्त के योग्य।


 4. स्वर्ग में है सदा सुख

स्वर्ग का अर्थ ही है — सदा सुख।
वहाँ न दुःख है, न चिंता, न बीमारी, न हिंसा।

हर आत्मा वहां संतुष्ट, सम्पन्न और दिव्य प्रेम में स्थित रहती है।
हर कर्म वहां पुण्य बन जाता है —
क्योंकि आत्मा परम स्थिति में होती है।


 5. झाड़ पहले छोटा होता है, फिर बढ़ता है

बाबा कहते हैं —
जैसे एक वृक्ष की शुरुआत बीज से होती है…
वैसे ही सतयुग की शुरुआत होती है —
थोड़ी-सी श्रेष्ठ आत्माओं से

वे आत्माएं आज इस संगम युग में
पुरुषार्थ द्वारा स्वयं को उस दिव्यता के योग्य बना रही हैं।


 6. अमरलोक: देवताओं की राजधानी

स्वर्ग की राजधानी का नाम है — अमरलोक

जहाँ मृत्यु का कोई नाम नहीं,
केवल अमर स्थिति में स्थित आत्माएं होती हैं।

यह कोई कल्पना नहीं —
बल्कि आत्मा की वह स्मृति है जिसे परमात्मा पुनः जाग्रत कर रहे हैं।


 7. निष्कर्ष: हम कौन थे?

हम कौन थे?
वही राधे-कृष्ण, जिन्हें स्वयं परमात्मा ने सतयुग के सिंहासन पर बैठाया था।

आज वह आत्मा भूली हुई है,
लेकिन परमात्मा फिर से हमें वह अमर स्मृति दिला रहे हैं —

कि हम वही देवता हैं,
जो स्वर्ग के पहले मालिक बने थे —
लक्ष्मी-नारायण

प्रश्न 1: सतयुग के मालिक कौन होते हैं?

उत्तर:सतयुग के मालिक लक्ष्मी और नारायण होते हैं, जो सम्पूर्ण 16 कला संपन्न, सर्वगुण संपन्न, और अहिंसक धर्म के संस्थापक होते हैं। वे ही स्वर्ग की राजधानी “अमरलोक” के प्रथम महाराजा और महारानी हैं।


प्रश्न 2: क्या राधे और कृष्ण अलग आत्माएँ हैं?

उत्तर:नहीं, राधे और कृष्ण वही आत्माएँ हैं जो आगे चलकर युवावस्था में लक्ष्मी और नारायण बनते हैं। उनका यह रूप एक दिव्य बाल अवस्था को दर्शाता है — मासूमियत, कोमलता और दिव्यता का प्रतीक।


प्रश्न 3: लक्ष्मी-नारायण को इतनी श्रेष्ठ प्रालब्ध किसने दी?

 उत्तर:लक्ष्मी-नारायण की श्रेष्ठ प्रालब्ध कोई साधारण नहीं देता। यह स्वयं परमात्मा शिव इस संगम युग में आकर ज्ञान और योग के द्वारा आत्माओं को देता है — जिससे वे फिर से सतयुगी देवता बनते हैं।


प्रश्न 4: सतयुग में जीवन कैसा होता है?

 उत्तर:सतयुग का अर्थ ही है “सदा सुख”। वहाँ न कोई बीमारी होती है, न मृत्यु का भय, न कोई हिंसा। हर आत्मा शांति, प्रेम, आनंद और संतुष्टि के दिव्य अनुभव में रहती है।


प्रश्न 5: झाड़ पहले छोटा होता है — इसका क्या अर्थ है?

 उत्तर:यह दर्शाता है कि सतयुग की शुरुआत बहुत थोड़ी आत्माओं से होती है — जैसे एक बीज से वृक्ष शुरू होता है। वही आत्माएँ आज संगम युग में पुरुषार्थ कर सतयुग की नींव रखती हैं।


प्रश्न 6: अमरलोक किसे कहा गया है?

 उत्तर:अमरलोक वह दिव्य राजधानी है जहाँ सतयुग के देवी-देवता वास करते हैं। वहाँ कोई मृत्यु नहीं होती, केवल अमर स्थिति में स्थित आत्माएँ रहती हैं।


प्रश्न 7: हम कौन थे?

 उत्तर:हम वही आत्माएँ हैं जो राधे-कृष्ण रूप में सतयुग में थीं — जिन्हें परमात्मा ने दिव्यता, वैभव और आत्म-सम्मान से भरपूर राज्य प्रदान किया था। आज वही आत्मा भूली हुई है, लेकिन परमात्मा हमें फिर से हमारी अमर स्मृति जगा रहे हैं।

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