True Freedom (03)

सच्ची आजादी का आज हम तीसरा पाठ कर रहे हैं।
सच्ची स्वतंत्रता, मुक्ति और जीवन मुक्ति का रहस्य।
सच्ची स्वतंत्रता क्या है? मुक्ति और जीवन मुक्ति का रहस्य।

ये बाबा ने 10 सितंबर 1991 में विशेष रूप से समझाया।
उस मुरली के आधार पर आज हम यह चर्चा कर रहे हैं।
स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ —

हम सभी स्वतंत्रता शब्द सुनते ही सबसे पहले राजनीतिक आजादी के बारे में सोचते हैं।
जैसे अंग्रेजों से देश को मुक्ति, अंग्रेजों से देश को आजाद किया।
लेकिन क्या यह संपूर्ण सच्ची स्वतंत्रता है?

संपूर्ण और सच्ची स्वतंत्रता यह है कि कलयुग में कोई भी मनुष्य पूरी तरह स्वतंत्र नहीं है।

स्वतंत्र का अर्थ
स्वतंत्र का अर्थ होता है — परतंत्र से मुक्ति।
विपरीत शब्द बताने से स्वतंत्र का अर्थ समझा जा सकता है।
परतंत्र का अर्थ — दूसरों के अधीन रहना।
स्वतंत्र का अर्थ — अपनी विधि, अपने नियम से चलना।

हमारे नियम कौन से हैं? — “मैं आत्मा हूं और जो मुझ आत्मा के पिता परमात्मा के नियम हैं, उन्हीं नियमों के अनुसार मुझे अपना जीवन चलाना।” इसे ही कहा जाता है — स्वतंत्र।

लेकिन कलयुग में कोई भी मनुष्य पूरी तरह स्वतंत्र नहीं है।
कोई बीमारी से बंधा है, कोई गरीबी से, कोई रिश्तों में क्लेश से, और कोई अपने ही मन के विकारों से।
यहां तक कि सबसे अमीर और ताकतवर व्यक्ति भी चिंता, क्रोध, भय और असुरक्षा के बंधनों से मुक्त नहीं है।


नंबर 2 — मुक्ति
मुक्ति का अर्थ है — शरीर और माया से संपूर्ण स्वतंत्रता।
मुरली में शिव बाबा स्पष्ट कहते हैं —
मुक्ति का अर्थ है देह बंधन, भव बंधन, कर्म और उसके फल, जन्म और मृत्यु से निस्तार।

जब आत्मा परमधाम में विश्राम करती है, वहां —
ना शरीर है,
ना माया का असर,
ना कोई दुख,
ना कोई जन्म-मरण।
वहां न सुख है, न दुख — इसलिए उसे मुक्ति धाम या निर्वाण धाम कहा जाता है।

उदाहरण: जैसे कोई पंछी खुले आसमान में उड़ रहा हो — ना जाल का डर, ना शिकारी का भय। यही मुक्ति की स्थिति है।


नंबर 3 — जीवन मुक्ति
जीवन मुक्ति का मतलब है — शरीर में रहते हुए दुख-शून्य जीवन।
ना जन्म दुख से, ना मृत्यु पीड़ा से, ना रोग, ना शत्रु, ना कमी, ना बुराई का बंधन।

स्थान यही पृथ्वी, लेकिन सतयुग का भारत।
उस समय मनुष्य श्री नारायण और श्री लक्ष्मी के समान दिव्य गुणों से युक्त होते हैं।
इसी को कहा गया है — स्वर्ग।

उदाहरण: जैसे कोई राजा जिसके राज्य में हर कोई सुखी हो, ना कोई अपराध, ना गरीबी — यही जीवन मुक्ति की झलक है।


नंबर 4 — यह स्वतंत्रता कौन दिला सकता है?
ना राजनीतिक नेता, ना वैज्ञानिक, ना सेना।
सिर्फ एक ही सत्ता — सदा मुक्त, सर्वशक्तिमान, सर्व हितकारी परमपिता परमात्मा शिव — यह स्वतंत्रता दे सकते हैं।

मुरली 10 सितंबर 1991 के अनुसार, सच्ची स्वतंत्रता अंग्रेजों को निकालने से नहीं, बल्कि मन से काम-क्रोध आदि विकारों को निकालने से मिलती है।


नंबर 5 — प्राप्ति का तरीका
इसके लिए कोई राजनीतिक पार्टी बनाने की जरूरत नहीं,
ना हथियार इकट्ठा करने की जरूरत है।
बस दो चीज़ें चाहिए —

  1. ज्ञान बल — परमात्मा का सच्चा ज्ञान।

  2. योग बल — आत्मा को परमात्मा से जोड़ने की शक्ति।

जितना अनुभव, उतनी शक्ति।
जैसे कंप्यूटर से वायरस हटाने के लिए असली एंटी-वायरस चाहिए, वैसे ही आत्मा के विकारों को हटाने के लिए परमात्मा शिव का ज्ञान और योग ही असली उपाय है।


निष्कर्ष — आज का चुनाव
हमारे सामने दो रास्ते हैं —

  1. विकारों के बंधन में रहकर दुख और विनाश की ओर जाना।

  2. परमात्मा का ज्ञान और योग अपनाकर मुक्ति और जीवन मुक्ति की ओर जाना।

सच्ची संपूर्ण स्वतंत्रता सिर्फ संगम युग पर ही प्राप्त की जा सकती है।
कलयुग के अंत से पहले यह अवसर है — इसे पहचानो और अपना लो।

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