भावी को कौन बनाता है? मैं ही अपना मित्र और शत्रु हूँ
कैसे बनाएं अपनी भावी को सुंदर? – बाबा का दिव्य रहस्य | मैं ही मित्र, मैं ही शत्रु”
Murli Date Reference: Avyakt Murli – 18 January 2024 & 23 October 1989
1. भावी = निश्चित, लेकिन कैसी होगी — यह आपके हाथ में है
बापदादा कहते हैं:
“इस विराट ड्रामा की जो भावी बनी हुई है, वह निश्चय से ही बनी हुई है। लेकिन वह कैसी होगी — यह तुम्हारे पुरुशार्थ पर आधारित है।”
उदाहरण:
सोचिए, एक परीक्षा की तारीख तय है — वह बदलेगी नहीं।
लेकिन उस दिन आप पास होंगे या फेल — यह आपकी मेहनत पर निर्भर है।
उसी तरह, ड्रामा की स्क्रिप्ट तय है, लेकिन उसमें आपकी भूमिका कैसी होगी — विजयी या पराजित, यशस्वी या सामान्य, यह आपके विचार, संकल्प और पुरुशार्थ से निर्धारित होता है।
2. “मैं ही अपना मित्र, मैं ही अपना शत्रु” — इसका गूढ़ रहस्य
बाबा और गीता दोनों कहते हैं:
“आत्मा ही अपने लिए मित्र है, और आत्मा ही अपने लिए शत्रु।”
(गीता अध्याय 6, श्लोक 5–6)
उदाहरण:
अगर आज आप आलस्य, क्रोध, शरीर-अभिमान को पकड़ते हैं, तो वही भावी में रुकावट और दुःख बनेगा।
लेकिन अगर आप आज योग, सेवा, सच्चाई को चुनते हैं, तो वह भविष्य में सहयोगी और शक्तिशाली बनकर सामने आएगा।
यानी — आपका आज ही आपकी भावी का बीज है।
3. “भावी को कोई टालता है या बनाता है — वो सब अपने ऊपर है”
यह कोई साधारण वाक्य नहीं, बाबा हमें एक ब्रह्मा-समान अधिकार दे रहे हैं।
“तुम अपने कर्मों और संकल्पों से भावी को बदल सकते हो।”
उदाहरण:
एक ही परिस्थिति में दो आत्माएँ हैं:
-
पहली आत्मा हिम्मत से आगे बढ़ती है, और जीतती है।
-
दूसरी आत्मा डरकर रुक जाती है, और हार जाती है।
ड्रामा एक था, लेकिन भावी अलग बनी — क्योंकि विचार और प्रतिक्रिया अलग थी।
4. “अभी तुम्हें बहुत रमणीक और स्वीट बनना है” — क्यों?
बापदादा कहते हैं:
“रमणीक बनो — यानी हर आत्मा को सौंदर्य की दृष्टि से देखो।”
“स्वीट बनो — यानी मधुर वाणी, मधुर दृष्टि, मधुर व्यवहार।”
उदाहरण:
यदि कोई तीखा बोलता है, और आप भी तीखे बन जाते हैं —
तो आपने अपने ही मन की रमणीयता खो दी।
लेकिन यदि आप शीतल और मधुर बने रहते हैं,
तो आप अपने ही मित्र बनते हैं —
क्योंकि क्रोध से पहले स्वयं को हानि होती है।
5. कैसे बनाएं सुंदर भावी? — 3-Step Purusharth Formula
Step 1: संकल्पों को चेक करो
-
दिन में 3 बार ठहरो और पूछो — मेरा मन किस दिशा में जा रहा है?
Step 2: वाणी में मिठास लाओ
-
बाबा कहते हैं:
“स्वीट वाणी से मुरझाई आत्मा भी फिर से खिल सकती है।”
-
प्रतिदिन खुद से संकल्प करो:
“आज कोई भी कड़वा शब्द नहीं बोलूँगा।”
Step 3: स्मृति से स्थिति बनाओ
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रोज़ याद दिलाओ:
“मैं वही आत्मा हूँ जो कल्प पहले भी सफल हुई थी — मुझे फिर वही करना है।”
कैसे बनाएं अपनी भावी को सुंदर? – बाबा का दिव्य रहस्य | मैं ही मित्र, मैं ही शत्रु
Murli Reference: Avyakt Murli – 18 Jan 2024 & 23 Oct 1989
Q1: क्या हमारी भावी पहले से ही तय है?
A1:बिलकुल, बापदादा कहते हैं —
“इस विराट ड्रामा की जो भावी बनी हुई है, वह निश्चय से ही बनी हुई है।”
लेकिन उस भावी की गुणवत्ता कैसी होगी, वह हमारे वर्तमान पुरुशार्थ पर आधारित है।
उदाहरण:
जैसे परीक्षा की तारीख तय होती है — लेकिन उसमें पास या फेल होना आपकी मेहनत पर निर्भर है।
वैसे ही, भावी तय है — लेकिन आप उसमें राजा बनेंगे या प्रजा, यह आपके संकल्प और कर्मों से तय होता है।
Q2: “मैं ही अपना मित्र, मैं ही अपना शत्रु” — इसका अर्थ क्या है?
A2:बाबा और श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय 6, श्लोक 5–6) दोनों ही कहते हैं:
“आत्मा ही अपने लिए मित्र है, और आत्मा ही अपने लिए शत्रु है।”
उदाहरण:
अगर आज आप आलस्य, क्रोध, देह-अभिमान में रहते हैं —
तो वही भावी में आपके लिए दुख और हार का कारण बनेगा।
लेकिन अगर आज आप योग, सेवा और सत्यता को अपनाते हैं —
तो वही कल आपका मित्र बनकर सुख देगा।
Q3: क्या हम अपनी भावी को टाल सकते हैं या बदल सकते हैं?
A3:हाँ। बाबा स्पष्ट कहते हैं:
“भावी को कोई टालता है या बनाता है — वो सब अपने ऊपर है।”
उदाहरण:
दो आत्माएं एक जैसी परिस्थिति में होती हैं —
एक डर से हार मान लेती है, दूसरी हिम्मत से जीत जाती है।
ड्रामा एक ही था, लेकिन भावी अलग बनी, क्योंकि मन:स्थिति और प्रतिक्रिया अलग थी।
Q4: बाबा हमें रमणीक और स्वीट बनने को क्यों कहते हैं?
A4:बाबा कहते हैं:
“रमणीक बनो — यानी हर आत्मा को सौंदर्य की दृष्टि से देखो।”
“स्वीट बनो — यानी मधुर वाणी, दृष्टि और व्यवहार अपनाओ।”
उदाहरण:
अगर कोई तीखा बोलता है और आप भी वैसा ही बोलते हैं —
तो आपने स्वयं का ही मित्र खो दिया।
लेकिन जब आप शीतल, मधुर और स्थिर रहते हैं —
तो आप स्वयं के पुरुषार्थ में सहयोगी बन जाते हैं।
Q5: सुंदर भावी बनाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
A5: बाबा का 3-Step Purusharth Formula
Step 1: संकल्पों को चेक करो
दिन में तीन बार स्वयं से पूछो —
“मेरा मन कहाँ जा रहा है? क्या यह आत्मा को ऊँचा ले जा रहा है?”
Step 2: वाणी में मिठास लाओ
बाबा कहते हैं:
“स्वीट वाणी से मुरझाई आत्मा भी खिल सकती है।”
दृढ़ संकल्प करें — “मैं आज कोई भी कड़वा शब्द नहीं बोलूँगा।”
Step 3: स्मृति से स्थिति बनाओ
हर दिन खुद से कहो:
“मैं वही आत्मा हूँ जो कल्प पहले विजयी बनी थी — अब भी वही बनना है।”
Disclaimer (डिस्क्लेमर):
यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ की आध्यात्मिक शिक्षाओं और बापदादा द्वारा दिए गए अव्यक्त मुरली संदेशों पर आधारित है। यह किसी भी धर्म, संप्रदाय या मत की आलोचना नहीं करता, बल्कि आत्मा के सुधार और शांति की ओर प्रेरणा देने हेतु प्रस्तुत है।
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