हे राजऋषि आत्माओं, क्या आपने अपने कर्मेन्द्रियों को जीत लिया है?
“हे राजऋषि आत्माओं, क्या कर्मेन्द्रियाँ आपकी आज्ञा में हैं? | Murli आधारित प्रेरणादायक भाषण | BK Dr Surender Sharma”
भाषण: “राजऋषि आत्माओं, क्या आपने कर्मेन्द्रियों को जीत लिया है?”
प्रस्तावना:
आज बापदादा की दिव्य वाणी में एक ऐसा गहरा राज़ छिपा है, जो आत्मा को न सिर्फ कर्मेन्द्रियों की विजेता बनाता है, बल्कि उसे विश्व राज्य अधिकारी भी बना देता है। आइए इस मुरली के अमृत वचनों को जीवन में उतारने के लिए एक सुंदर, गूढ़ और प्रेरणास्पद यात्रा करें।
1. ‘आवाज़’ से परे ‘सन्नाटा’ का राजा कौन?
Murli Point:
“बापदादा को भी आवाज़ में आने के लिए शरीर के साधन अपनाने पड़ते हैं, लेकिन आवाज़ से परे जाने के लिए साधनों की दुनिया से पार जाना पड़ता है।”
उदाहरण:
जैसे एक सच्चा योगी क्षणभर में संसार के शोर से निकल गहरे सन्नाटे में चला जाता है।
मुख्य संदेश:
“साधनों से नहीं, साधना से मिलता है सन्नाटा।”
2. कर्मेन्द्रियों के राजा या उनके दास?
Murli Point:
“हे कर्मेन्द्रियों के राज्यधारी, क्या आपकी राज्य सत्ता का अनुभव होता है? क्या आपकी आँखें, हाथ, जीभ ‘जी हजूर’ करती हैं?”
उदाहरण:
जैसे एक राजा का सिपाही सिर्फ आदेश पर चलता है, वैसे ही कर्मेन्द्रियाँ आत्मा की आज्ञा में चलें तो ही सच्चा स्वराज्य बनता है।
प्रश्न:
क्या आपकी आँखें, वाणी और संकल्प आत्मा की ‘राजाज्ञा’ में हैं?
3. राज्य का कारोबार: चेकिंग या चांस?
Murli Point:
“राज्य दरबार रोज लगाते हो या कभी-कभी?… संस्कार प्रजा वाले हैं या राजवंश वाले?”
स्पष्टता:
राजा रोज अपनी सभा लगाता है, वैसे आत्मा भी रोज अमृतवेले में आत्म-चेकिंग करती है या नहीं?
निष्कर्ष:
आत्मा तब तक राजा नहीं जब तक रोज राज्य सभा नहीं लगती।
4. नॉलेजफुल बनना काफी नहीं, पावरफुल बनो!
Murli Point:
“नालेजफुल हैं लेकिन पावरफुल नहीं… समय पर शस्त्र कार्य में नहीं आता।”
उदाहरण:
जैसे साहूकार के पास धन तो है, पर युद्ध में काम न आये तो व्यर्थ। वैसे ही ज्ञान को कर्म में प्रयोग न कर पाएं तो वह ज्ञान व्यर्थ हो जाता है।
मुख्य सीख:
ज्ञान तभी सार्थक है जब उससे कर्म में विजय मिले।
5. रूलिंग पावर + कंट्रोलिंग पावर = विश्व राज्य अधिकारी
Murli Point:
“जब चाहो संकल्प में आओ, विस्तार में आओ… और जब चाहो फुल स्टॉप कर दो।”
प्रैक्टिस:
एक सेकंड में संकल्प बनाना और समाप्त करना — यही है रॉयल आत्मा की पहचान।
संदेश:
जो आत्मा कर्मेन्द्रियाँ, प्रकृति और स्वसंस्कारों पर विजयी है, वही बनती है विश्व की महारानी।
6. अब नहीं तो कभी नहीं – चांसलर ग्रुप बनो!
Murli Point:
“फाइनल सीट की सीटी अभी नहीं बजी है – अभी भी चांस है।”
उदाहरण:
अंतिम परीक्षा से पहले तैयारी का आखिरी अवसर — यही अभी का संगमयुग है।
मुख्य प्रेरणा:
अभी निर्णय लें, ‘चांसलर ग्रुप’ में स्थान पक्का करें।
7. शक्ति दल बनो: “दृष्टि से सृष्टि”
Murli Point:
“सेकंड में दृष्टि दी और सृष्टि बन गई – ऐसी स्पीड चाहिए!”
उदाहरण:
जैसे न्यूक्लियर बम 15 सेकंड में विनाश करता है — वैसे ही आपकी आत्मिक दृष्टि 1 सेकंड में सृजन कर सकती है।
Lesson:
विनाश की स्पीड तेज है, तो स्थापना की स्पीड उससे भी तेज होनी चाहिए।
8. हर कर्मेन्द्रिय का भाग्य: परमात्मा के साथ
Murli Point:
“हर कर्म में आपका भाग्य है… आँखें मिली बाप को देखने के लिए, कान बाप को सुनने के लिए।”
उदाहरण:
जो आत्मा अपने नेत्र, वाणी और संकल्प को परमात्म मिलन में लगाती है, वही बनती है कर्मेन्द्रिय जीत आत्मा।
9. विदेश सेवाधारियों की विशेषता (ऑस्ट्रेलिया व अमेरिका)
Murli Point:
“ऑस्ट्रेलिया की आत्माओं ने बाप को पर्दे के अंदर से पहचानने में नंबर वन रिकॉर्ड दिखाया है।”
विशेष प्रेरणा:
शक्तियाँ जब थोड़ी विश्राम करती हैं, तब उड़ान से पहले तैयारी करती हैं — ताकि अंतिम समय में सबसे आगे निकलें।
Lesson:
देश, भाषा, संख्या कोई भी हो — लगन और सेवा ही आपको राज्य अधिकारी बना सकती है।
अंतिम आत्म-प्रश्न:
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“क्या मैं स्वराज्य अधिकारी हूँ या कर्मेन्द्रियों का दास?”
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“क्या मेरी आँखें, हाथ, जीभ — ‘जी हजूर’ कहती हैं?”
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“क्या मेरे पास रूलिंग पावर और कंट्रोलिंग पावर दोनों हैं?”
प्रश्न 1:‘आवाज़’ से परे ‘सन्नाटा’ का राजा कौन है?
उत्तर:जो आत्मा साधनों से परे जाकर साधना में स्थित होती है, वही सच्चा योगी बन ‘सन्नाटा’ का राजा बनती है। बाबा ने कहा, “बापदादा को भी शरीर का सहारा लेना पड़ता है, पर आवाज़ से परे जाने के लिए साधनों की दुनिया से पार जाना होता है।”
संदेश:
“साधनों से नहीं, साधना से मिलता है सन्नाटा।”
प्रश्न 2:
क्या आपकी कर्मेन्द्रियाँ ‘राजाज्ञा’ में हैं या ‘विकारों’ की दासता में?
उत्तर:बाबा ने स्पष्ट कहा – “हे कर्मेन्द्रियों के राज्यधारी, क्या आँखें, जीभ, हाथ आत्मा की आज्ञा अनुसार ‘जी हजूर’ करती हैं?” यदि नहीं, तो आत्मा अभी दासता में है, न कि राज्य में।
नमूना:
जैसे सच्चा सिपाही राजा के आदेश से ही चलता है, वैसे ही सच्ची आत्मा की कर्मेन्द्रियाँ भी आज्ञा पर चलती हैं।
प्रश्न 3:क्या मैं रोज आत्मा की ‘राज्य सभा’ लगाता हूँ?
उत्तर:
यदि आप अमृतवेले आत्मचिंतन, चेकिंग और मंथन नहीं करते, तो आप राजा नहीं — केवल ज्ञानी प्रजा हैं। बाबा ने पूछा – “राज्य दरबार रोज लगाते हो या कभी-कभी?”संदेश:
आत्म-राज्य के लिए रोज की सभा, रोज की समीक्षा आवश्यक है।
प्रश्न 4:क्या ज्ञान मेरे कर्मों को शक्तिशाली बना रहा है?
उत्तर:यदि ज्ञान है लेकिन शक्ति नहीं, तो वह जमा हुआ जल है — सड़ भी सकता है। बाबा ने कहा, “नॉलेजफुल हैं, लेकिन पावरफुल नहीं…”
संदेश:
ज्ञान तभी मूल्यवान है जब उससे विजय मिले — नहीं तो केवल बोज है।
प्रश्न 5:क्या मेरे पास रूलिंग पावर और कंट्रोलिंग पावर दोनों हैं?
उत्तर:सच्चे राजऋषि का चिह्न है — “जब चाहो संकल्प करो और जब चाहो समाप्त।” यदि आप एक सेकंड में संकल्प को स्टॉप कर सकते हैं, तो आप विजयी आत्मा हैं।
संदेश:
स्वराज्य अधिकारी वही जो क्षण में निर्णय और क्षण में विराम दे सके।
प्रश्न 6:क्या अभी भी मेरे पास परिवर्तन का अवसर है?
उत्तर:हां, बाबा ने कहा – “फाइनल सीट की सीटी अभी नहीं बजी है।” अभी भी चांस है। यह संगमयुग ही अंतिम तैयारी का समय है।
प्रेरणा:
“अब नहीं तो कभी नहीं” — निर्णय तुरंत लो, देरी विनाश है।
प्रश्न 7:क्या मेरी आत्मिक दृष्टि सृजन करने की शक्ति रखती है?
उत्तर:
बाबा ने कहा – “सेकंड में दृष्टि दी और सृष्टि बन गई।” आपकी दृष्टि में यदि आत्मिक चेतना है, तो वह एक सेकंड में परिवर्तन कर सकती है।संदेश:
विनाश की स्पीड तेज है, लेकिन स्थापना की दृष्टि उससे भी तेज होनी चाहिए।
प्रश्न 8:क्या मेरी कर्मेन्द्रियाँ परमात्मा की सेवा में हैं?
उत्तर:
बाबा ने याद दिलाया – “आँखें मिलीं बाप को देखने के लिए, कान बाप को सुनने के लिए।” यदि हर इन्द्रिय परमात्म मिलन में लगी है, तो आत्मा कर्मेन्द्रिय जीत बन जाती है।संदेश:
हर कर्म, हर इन्द्रिय — ईश्वर के संग हो तो ही भाग्यशाली जीवन बनता है।
प्रश्न 9:क्या विदेशी आत्माओं की सेवा मुझे प्रेरित कर सकती है?
उत्तर:बाबा ने ऑस्ट्रेलिया की आत्माओं की प्रशंसा की — “इन्होंने पर्दे के अंदर से भी बाप को पहचान लिया।” ये आत्माएँ सेवा में आगे निकल गईं।
संदेश:
सेवा, निष्ठा और पहचान ही सच्चे राज्य अधिकारी बनाते हैं — न कि संख्या, देश या भाषा।
अंतिम आत्म-प्रश्न (Self Check):
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क्या मेरी कर्मेन्द्रियाँ ‘जी हजूर’ करती हैं?
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क्या मेरी आँखें, वाणी और संकल्प ईश्वरीय आज्ञा में हैं?
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क्या मैं स्वराज्य अधिकारी हूँ या कर्मों का दास?
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