शिवबाबा :ब्रह्मा बाबा का रिश्ता-(02)शिव बाबा – सच्चा शिक्षक
(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
भूमिका: आत्मा और परमात्मा का ज्ञान संबंध
सृष्टि के हर युग में ईश्वर का कोई-न-कोई कार्य होता है।
परंतु संगम युग पर परमपिता परमात्मा स्वयं अवतरित होकर हमें सिखाते हैं —
“मैं ही तुम्हारा सच्चा शिक्षक हूं।”
परमात्मा शिव, ब्रह्मा बाबा के तन द्वारा, आत्माओं को सत्य ज्ञान की शिक्षा देते हैं।
आज हम इसी अनोखे शिक्षक–विद्यार्थी संबंध को समझेंगे —
जहां शिव बाबा हैं सच्चे शिक्षक और ब्रह्मा बाबा हैं नंबर वन विद्यार्थी।
1. शिव बाबा — सच्चे शिक्षक
दुनिया में असंख्य शिक्षक और गुरु हैं,
परंतु सच्चा शिक्षक वही जो हमें सत्य, आत्मा और परमात्मा का ज्ञान सिखाए।
शिव बाबा ही वह सर्वोच्च शिक्षक हैं,
जो हमें सिखाते हैं — कर्म की मर्यादा, आत्मा की पहचान और जीवन का लक्ष्य।
मुरली: 19 जून 1969
“शिव बाबा तो ज्ञान का सागर है। ब्रह्मा के द्वारा तुम बच्चों को पढ़ाते हैं।
ब्रह्मा भी विद्यार्थी है — नंबर वन स्टूडेंट।”
शिव बाबा कोई देहधारी नहीं, बल्कि परमात्मा ज्योति-बिंदु हैं —
जो इस सृष्टि के सर्वोच्च शिक्षक (Supreme Teacher) हैं।
2. ब्रह्मा बाबा — प्रथम विद्यार्थी
अगर शिव बाबा शिक्षक हैं,
तो ब्रह्मा बाबा क्या हुए?
वे बने — पहले विद्यार्थी, जिन्होंने सबसे पहले शिव बाबा से राजयोग और आत्मज्ञान सीखा।
ब्रह्मा बाबा ने हर मुरली को विनम्रता से सुना,
हर श्रीमत को जीवन में उतारा,
और स्वयं को सदा विद्यार्थी ही माना।
अव्यक्त मुरली: 18 जनवरी 1969
“ब्रह्मा बाबा सदा विद्यार्थी रहे।
कभी नहीं सोचा कि मैं जानता हूं — इसलिए वे नंबर वन बने।”
वे केवल विद्यार्थी ही नहीं रहे —
बल्कि आगे चलकर आदर्श अध्यापक (Ideal Teacher) भी बने,
क्योंकि उन्होंने जो सीखा, वही जीवन में धारण किया।
3. परमात्मा का विश्वविद्यालय — ईश्वरीय यूनिवर्सिटी
शिव बाबा इस युग को ईश्वरीय विश्वविद्यालय कहते हैं।
यह कोई मानव द्वारा नहीं, बल्कि स्वयं परमात्मा द्वारा चलाया गया विद्यालय है,
जिसका विषय है — राजयोग और आत्मज्ञान।
मुरली: 22 फरवरी 1970
“यह है ईश्वरीय विश्वविद्यालय। शिव बाबा इस विश्वविद्यालय के टीचर हैं।
ब्रह्मा उनके माध्यम से पढ़ाई कराते हैं।”
यहाँ कोई फीस नहीं,
परंतु प्राप्ति अनमोल —
संपूर्ण विश्व पर राज्य, पूर्ण पवित्रता और परम शांति।
4. उदाहरण द्वारा समझें
जैसे किसी विश्वविद्यालय का कुलपति स्वयं किसी विद्यार्थी को पढ़ाता है,
और वह विद्यार्थी सबसे पहले उस शिक्षण को धारण करता है —
तो वह आदर्श मॉडल स्टूडेंट बन जाता है।
वैसे ही —
-
शिव बाबा हैं परम कुलपति (Chancellor)
-
ब्रह्मा बाबा हैं प्रथम विद्यार्थी (First Student)
और आगे चलकर बने मुख्य अध्यापक (Head Master)।
5. सच्चे शिक्षक की पहचान
दुनिया के शिक्षक हमें भौतिक ज्ञान देते हैं,
परंतु शिव बाबा हमें आत्मिक ज्ञान देते हैं —
जो हमें अंधकार से प्रकाश में लाता है।
मुरली: 17 अगस्त 1972
“बाप कहते हैं — बच्चे, मैं तुमको वही ज्ञान सिखाता हूं जो गीता में होना चाहिए था।
मैं सच्चा टीचर हूं।”
वह हमें सिखाते हैं —
“स्वयं को आत्मा जानो,
मुझ परमपिता से योग लगाओ,
ताकि मोह-माया से मुक्त होकर कर्म करते हुए भी योगयुक्त रहो।”
6. शिव बाबा की शिक्षा के लाभ
शिव बाबा की शिक्षा से प्राप्त होते हैं —
पूर्णता, पवित्रता, शांति और शक्ति।
सबसे बड़ी उपलब्धि — स्वराज्य
अर्थात् मन, बुद्धि और संस्कारों पर राज्य।
जब हम अपने मन को बाबा की श्रीमत से चलाते हैं,
तो कर्मेन्द्रियों और अंततः विश्व पर राज्य करने योग्य बनते हैं।
मुरली: 5 मार्च 1969
“जो मुझसे पढ़ेंगे, वही लक्ष्मी-नारायण बनेंगे।
यह सबसे ऊंची शिक्षा है।”
7. निष्कर्ष: शिक्षक–विद्यार्थी का दिव्य संबंध
शिव बाबा — ज्ञान का सागर,
ब्रह्मा बाबा — नंबर वन विद्यार्थी,
और हम सब — उस कक्षा के सहपाठी।
अव्यक्त मुरली: 6 मार्च 1980
“शिव बाबा सच्चा शिक्षक है।
जो सच्चे विद्यार्थी बनते हैं, वही सच्चे मणि बनते हैं।”
यह रिश्ता साधारण नहीं —
यही संबंध आत्मा को पुनः ज्ञान, शक्ति और दिव्यता के शिखर पर पहुंचा देता है।
8. प्रेरणादायक समापन
सच्चा शिक्षक वही जो आत्मा को स्वयं का बोध कराए।
और जब स्वयं परमात्मा शिक्षक बन जाए —
तो विद्यार्थी का भविष्य स्वर्णिम होना ही है।
प्रश्न 1:
सच्चा शिक्षक कौन है — शिव बाबा या कोई मानव शिक्षक?
उत्तर:
सच्चा शिक्षक वही है जो हमें आत्मा और परमात्मा का सत्य ज्ञान सिखाए।
शिव बाबा ही ज्ञान का सागर और सर्वोच्च शिक्षक (Supreme Teacher) हैं,
जो ब्रह्मा बाबा के माध्यम से आत्माओं को शिक्षा देते हैं।
मुरली: 19 जून 1969
“शिव बाबा तो ज्ञान का सागर है।
ब्रह्मा के द्वारा तुम बच्चों को पढ़ाते हैं।
ब्रह्मा भी विद्यार्थी है — नंबर वन स्टूडेंट।”
शिव बाबा देहधारी नहीं, बल्कि ज्योति-बिंदु परमात्मा हैं —
जो हर आत्मा को उसके स्वरूप, कर्म और मुक्ति का ज्ञान देते हैं।
प्रश्न 2:
अगर शिव बाबा शिक्षक हैं, तो ब्रह्मा बाबा की क्या भूमिका है?
उत्तर:
ब्रह्मा बाबा बने — पहले विद्यार्थी।
उन्होंने सबसे पहले शिव बाबा से राजयोग और आत्मज्ञान सीखा।
वे स्वयं को सदा विद्यार्थी भावना में रखते थे,
इसलिए वे नंबर वन स्टूडेंट बने।
अव्यक्त मुरली: 18 जनवरी 1969
“ब्रह्मा बाबा सदा विद्यार्थी रहे।
कभी नहीं सोचा कि मैं जानता हूं — इसलिए वे नंबर वन बने।”
उनकी विनम्रता और श्रीमत पर चलने की भावना ने उन्हें आदर्श विद्यार्थी बना दिया,
और आगे चलकर वे मुख्य अध्यापक (Ideal Teacher) भी बने।
प्रश्न 3:
ईश्वरीय विश्वविद्यालय क्या है और इसमें कौन पढ़ाता है?
उत्तर:
ईश्वरीय विश्वविद्यालय कोई मनुष्य-निर्मित संस्था नहीं,
बल्कि स्वयं परमात्मा शिव द्वारा स्थापित विद्यालय है।
इसका विषय है — राजयोग और आत्मज्ञान।
मुरली: 22 फरवरी 1970
“यह है ईश्वरीय विश्वविद्यालय।
शिव बाबा इस विश्वविद्यालय के टीचर हैं।
ब्रह्मा उनके माध्यम से पढ़ाई कराते हैं।”
यहाँ कोई फीस नहीं,
परंतु प्राप्ति अनमोल —
संपूर्ण विश्व पर राज्य, पूर्ण पवित्रता और परम शांति।
प्रश्न 4:
शिव बाबा और ब्रह्मा बाबा का संबंध उदाहरण द्वारा कैसे समझाया जा सकता है?
उत्तर:
जैसे किसी विश्वविद्यालय का कुलपति (Chancellor)
स्वयं किसी विद्यार्थी को सिखाता है,
और वह विद्यार्थी उस शिक्षा का प्रथम उदाहरण बनता है —
वैसे ही
-
शिव बाबा हैं परम कुलपति,
-
ब्रह्मा बाबा हैं प्रथम विद्यार्थी,
जो आगे चलकर मुख्य अध्यापक बने।
इस प्रकार ब्रह्मा बाबा Model Student बने —
जिन्होंने शिक्षा को जीवन में पूर्णरूपेण धारण किया।
प्रश्न 5:
सच्चे शिक्षक की पहचान क्या है?
उत्तर:
सच्चा शिक्षक वह है जो आत्मा को स्व-परिचय कराए,
अंधकार से प्रकाश में लाए,
और मोह-माया से मुक्त करे।
मुरली: 17 अगस्त 1972
“बाप कहते हैं — बच्चे, मैं तुमको वही ज्ञान सिखाता हूं जो गीता में होना चाहिए था।
मैं सच्चा टीचर हूं।”
शिव बाबा हमें सिखाते हैं —
“स्वयं को आत्मा जानो,
मुझ परमपिता से योग लगाओ,
और कर्म करते हुए भी योगयुक्त रहो।”
प्रश्न 6:
शिव बाबा की शिक्षा से हमें क्या लाभ मिलता है?
उत्तर:
शिव बाबा की शिक्षा से आत्मा को प्राप्त होती है —
पूर्णता, पवित्रता, शांति और शक्ति।
सबसे महान उपलब्धि है — स्वराज्य।
अर्थात् अपने मन, बुद्धि और संस्कारों पर राज्य करना।
मुरली: 5 मार्च 1969
“जो मुझसे पढ़ेंगे, वही लक्ष्मी-नारायण बनेंगे।
यह सबसे ऊंची शिक्षा है।”
जब आत्मा बाबा की श्रीमत पर चलती है,
तब वह कर्मेन्द्रियों और अंततः विश्व पर राज्य करने योग्य बनती है।
प्रश्न 7:
शिव बाबा और ब्रह्मा बाबा का यह शिक्षक–विद्यार्थी संबंध इतना विशेष क्यों है?
उत्तर:
क्योंकि यह कोई देहधारी रिश्ता नहीं,
बल्कि आत्मा और परमात्मा का दिव्य संबंध है।
शिव बाबा हैं ज्ञान का सागर,
ब्रह्मा बाबा हैं नंबर वन विद्यार्थी,
और हम सब हैं उस कक्षा के सहपाठी।
अव्यक्त मुरली: 6 मार्च 1980
“शिव बाबा सच्चा शिक्षक है।
जो सच्चे विद्यार्थी बनते हैं, वही सच्चे मणि बनते हैं।”
यह संबंध आत्मा को पुनः ज्ञान, शक्ति और दिव्यता के शिखर पर पहुंचा देता है।
प्रश्न 8:
इस ज्ञान से हमें क्या प्रेरणा लेनी चाहिए?
उत्तर:
सच्चा शिक्षक वही जो आत्मा को स्वयं का बोध कराए।
और जब स्वयं परमात्मा शिक्षक बन जाए —
तो विद्यार्थी का भविष्य स्वर्णिम होना ही है।
हमें भी वही भावना रखनी चाहिए —
“मैं शिव बाबा का विद्यार्थी हूं, और मेरा लक्ष्य पूर्णता है।”
सारांश:
शिव बाबा — सच्चे शिक्षक।
ब्रह्मा बाबा — प्रथम विद्यार्थी।
और हम सब — उस ईश्वरीय कक्षा के विद्यार्थी,
जो स्वराज्य, शांति और पूर्णता की ओर अग्रसर हैं।डिस्क्लेमर (Disclaimer): इस वीडियो का उद्देश्य आत्मिक जागृति और ईश्वरीय ज्ञान का प्रसार करना है। यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज मुरली और ईश्वरीय विश्वविद्यालय की शिक्षाओं पर आधारित है। इसका किसी भी धर्म, मत, या व्यक्ति की मान्यताओं से विरोध नहीं है। कृपया इसे आध्यात्मिक दृष्टिकोण से सुनें और अपने जीवन में दिव्यता के अनुभव हेतु अपनाएँ।
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