अव्यक्त मुरली-(06)22-01-1984 “नामीग्रामी सेवाधारी बनने की विधि”
22-01-1984 “नामीग्रामी सेवाधारी बनने की विधि”
आज बापदादा अपने एक टिक जगते हुए दीपकों की दीपमाला को देख रहे हैं। कैसे हर एक जगा हुआ दीपक अचल निर्विघ्न, अपनी ज्योति से विश्व को रोशनी दे रहे हैं। यह दीपकों की रोशनी आत्मा को जगाने की रोशनी है। विश्व की सर्व आत्माओं के आगे जो अज्ञान का आवरण है, उसको मिटाने के लिए कैसे जागकर और जगा रहे हैं, अंधकार के कारण अनेक प्रकार की ठोकरें खाने वाले आप जगे हुए दीपकों की तरफ बड़े प्यार से रोशनी की इच्छा से, आवश्यकता से, आप दीपकों की तरफ देख रहे हैं। ऐसे अंधकार में भटकने वाली आत्माओं को ज्ञान की रोशनी दो, जो घर-घर में दीपक जग जायें। (बिजली चली गई) अभी भी देखो अंधकार अच्छा लगा? रोशनी प्रिय लगती है ना। तो ऐसे बाप से कनेक्शन जुड़ाओ। कनेक्शन जोड़ने का ज्ञान दो।
सभी डबल विदेशी रिफ्रेश हो अर्थात् शक्तिशाली बन, लाइट हाउस, माइट हाउस बन, नॉलेजफुल बन पावरफुल बन, सक्सेसफुल बनकर के सेवास्थानों पर जा रहे हो फिर से आने के लिए। जाना अर्थात् सफलता स्वरूप का पार्ट बजाकर एक से अनेक हो करके आना। जाते हो अन्य अपने परिवार की आत्माओं को बाप के घर में ले आने के लिए। जैसे हद की लड़ाई करने वाले योद्धे बाहुबल, साइन्स बल वाले योद्धे सर्व शस्त्रों से सजकर युद्ध के मैदान पर जाते हैं, विजय का मैडल लेने के लिए। ऐसे आप सभी रूहानी योद्धे सेवा के मैदान पर जा रहे हो विजय का झण्डा लहराने के लिए। जितना-जितना विजयी बनते हो उतना बाप द्वारा स्नेह, सहयोग, समीपता, सम्पूर्णता के विजयी मैडल्स प्राप्त करते हो। तो यह चेक करो कि अब तक कितने मैडल्स मिले हैं? जो विशेषताऍ हैं वा टाइटल्स देते हैं वह कितने मैडल्स धारण किये हैं। विशेष टाइटल्स की लिस्ट निकाली है ना, वह लिस्ट सामने रखकर स्वयं को देखना कि यह सब मैडल्स हमें प्राप्त हैं? अभी तो यह बहुत थोड़े निकाले हैं। कम से कम 108 तो होने चाहिए। और अपने इतने मैडल्स को देख नशे में रहो। कितने मैडल्स से सजे हुए हो। जाना अर्थात् विशेषता का कार्य कर सदा नये ते नये मैडल्स लेते जाना। जैसा कार्य वैसा मैडल मिलता है। तो इस वर्ष हर एक सेवा के निमित्त बने हुए बच्चों को यह लक्ष्य रखना है कि कोई न कोई ऐसा नवीनता का विशेष कार्य करें जो अब तक ड्रामा में छिपा हुआ, नूँधा हुआ है। उस कार्य को प्रत्यक्ष करें। जैसे लौकिक कार्य में कोई विशेषता का कार्य करते हैं तो नामीग्रामी बन जाते हैं। चारों ओर विशेषता के साथ विशेष आत्मा का नाम हो जाता है। ऐसे हरेक समझे कि मुझे विशेष कार्य करना है। विजय का मैडल लेना है। ब्राह्मण परिवार के बीच विशेष सेवाधारियों की लिस्ट में नामीग्रामी बनना है। रूहानी नशे में रहना है। नाम के नशे में नहीं। रूहानी सेवा के नशे में निमित्त और निर्मान के सर्टीफिकेट सहित नामीग्रामी होना है।
आज डबल विदेशी ग्रुप का विजयी बन विजय स्थल पर जाने का बधाई समारोह है। कोई भी विजय स्थल पर जाते हैं तो बड़ी धूमधाम से खुशी के बाजे गाजे से विजय का तिलक लगाकर बधाई मनाई जाती है। विदाई नहीं, बधाई क्योंकि बापदादा और परिवार जानते हैं कि ऐसे सेवाधारियों की विजय निश्चित है। इसलिए बधाई का समारोह मनाते हैं। विजय हुई पड़ी है ना। सिर्फ निमित्त बन रिपीट करना है क्योंकि करने से निमित्त बन करेंगे और पायेंगे! जो निमित्त कर्म है और निश्चित प्रत्यक्ष फल है! इस निश्चय के उमंग-उत्साह से जा रहे हो औरों को अधिकारी बनाकर ले आने के लिए। अधिकार का अखुट खजाना महादानी बन दान पुण्य करने के लिए जा रहे हो। अब देखेंगे पाण्डव आगे जाते हैं वा शक्तियाँ आगे जाती हैं। विशेष नया कार्य कौन करते हैं, उसका मैडल मिलेगा। चाहे कोई ऐसी विशेष सेवा के निमित्त आत्माओं को निकालो। चाहे सेवा के स्थान और वृद्धि को प्राप्त कराओ। चाहे चारों ओर नाम फैलने का कोई विशेष कार्य करके दिखाओ। चाहे ऐसा बड़ा ग्रुप तैयार कर बापदादा के सामने लाओ। किसी भी प्रकार की विशेष सेवा करने वाले को विजय का मैडल मिलेगा। ऐसे विशेष कार्य करने वाले को सब सहयोग भी मिल जाता है। स्वयं ही कोई टिकेट भी ऑफर कर लेंगे। शुरू-शुरू में जब आप सभी सेवा पर निकले थे तो सेवा कर फर्स्टक्लास में सफर करते थे। और अभी टिकेट भी लेते और सेकेण्ड थर्ड में आते। ऐसी कोई कम्पनी की सेवा करो, सब हो जायेगा। सेवाधारी को साधन भी मिल जाता है। समझा! सभी सन्तुष्ट होकर विजयी बनकर जा रहे हैं ना। किसी भी प्रकार की कमजोरी अपने साथ तो नहीं ले जा रहे हो। कमजोरियों को स्वाहा कर शक्तिशाली आत्मायें बनकर जा रहे हो ना! कोई कमज़ोरी रह तो नहीं गई! अगर कुछ रह गया हो जो स्पेशल समय लेकर समाप्ति करके जाना। अच्छा।
ऐसे सादा अचल, जगे हुए दीपक सदा ज्ञान रोशनी द्वारा अंधकार को मिटाने वाले, हर समय सेवा की विशेषता में विशेष पार्ट बजाने वाले, बाप द्वारा सर्व प्राप्त हुए मैडल्स को धारण करने वाले, सदा विजय निश्चित के निश्चय में रहने वाले, ऐसे अविनाशी विजय के तिलकधारी, सदा सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न, सन्तुष्ट आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते!
जगदीश भाई से:- बापदादा के साकार पालना के पले हुए रत्नों की वैल्यु होती है। जैसे लौकिक रीति में भी पेड़ (वृक्ष) में पके हुए फलों का कितना मूल्य होता है। ऐसे साकार पालना में पले हुए अर्थात् पेड़ में पके हुए। आज ऐसी अनुभवी आत्माओं को सभी कितना प्यार से देखते हैं। पहले मिलन में ही वरदान पा लिया ना। पालना अर्थात् वृद्धि ही वरदानों से हुई ना। इसलिए सदा पालना के अनुभव का आवाज अनेक आत्माओं की पालना के लिए प्रेरित करते रहेंगे। सागर के भिन्न-भिन्न सम्बन्ध की लहरों में लहराने के अनुभवों की लहरों में लहराते रहेंगे। सेवा के निमित्त आदि में एकानामी के समय निमित्त बने। एकानामी के समय निमित्त बनने के कारण सेवा का फल सदा श्रेष्ठ है। समय प्रमाण सहयोगी बने इसलिए वरदान मिला। अच्छा।
कॉन्फ्रेन्स के प्रति:- सभी मिलकर जब कोई एक उमंग-उत्साह से कार्य करते हैं तो उसमें सफलता सहज होती है। सभी के उमंग से कार्य हो रहा है ना तो सफलता अवश्य होगी। सभी को मिलाना यह भी एक श्रेष्ठता की निशानी है। सभी के मिलने से अन्य आत्मायें भी मिलन मनाने के समीप आती हैं। दिल का संकल्प मिलाना अर्थात् अनेक आत्माओं का मिलन मनाना। इसी लक्ष्य को देखते हुए कर रहे हो और करते रहेंगे। अच्छा, फारेनर्स सब ठीक हैं? सन्तुष्ट हैं? अभी सब बड़े हो गये हैं। सम्भालने वाले हैं। पहले छोटे-छोटे थे तो नाज़-नखरे करते थे, अभी औरों को सम्भालने वाले बन गये। हमें कोई सम्भाले, यह नहीं। अभी मेहनत लेने वाले नहीं, मेहनत देने वाले। कम्पलेन्ट करने वाले नहीं, कम्पलीट। कोई भी कम्पलेन्ट अभी भी नहीं, फिर पीछे भी नहीं, ऐसा है ना! सदा खुशखबरी के समाचार देना। और जो नहीं भी आये हैं उन्हों को भी मायाजीत बनाना। फिर ज्यादा पत्र नहीं लिखने पड़ेंगे। बस सिर्फ ओ.के.। अच्छी-अच्छी बातें भले लिखो लेकिन शार्ट में। अच्छा।
टीचर्स से:- बापदादा का टीचर्स से विशेष प्यार है क्योंकि समान हैं। बाप भी टीचर और आप मास्टर टीचर। वैसे भी समान प्यारे लगते हैं। बहुत अच्छा उमंग-उत्साह से सेवा में आगे बढ़ रही हो। सभी चक्रवर्ती हो। चक्र लगाते अनेक आत्माओं के सम्बन्ध में आए, अनेक आत्माओं को समीप लाने का कार्य कर रही हो। बापदादा खुश हैं। ऐसा लगता है ना कि बापदादा हमारे पर खुश हैं, या समझती हो कि अभी थोड़ा सा कुछ करना है। खुश हैं और भी खुश करना है। मेहनत अच्छी करती हो, मेहनत मुहब्बत से करती हो इसलिए मेहनत नहीं लगती। बापदादा सर्विसएबुल बच्चों को सदा ही सिर का ताज कहते हैं। सिरताज हो। बापदादा बच्चों के उमंग-उत्साह को देख और आगे उमंग-उत्साह बढ़ाने का सहयोग देते हैं। एक कदम बच्चों का, पदम कदम बाप के। जहाँ हिम्मत है वहाँ उल्लास की प्राप्ति स्वत: होती है। हिम्मत है तो बाप की मदद है, इसलिए बेपरवाह बादशाह हो, सेवा करते चलो। सफलता मिलती रहेगी।
नामीग्रामी सेवाधारी बनने की विधि
(22 जनवरी 1984 – बापदादा की अव्यक्त मुरली से)
1. जगे हुए दीपक – विश्व को रोशन करने की शक्ति
बापदादा कहते हैं —
“आज बापदादा अपने एक-एक जगे हुए दीपकों की दीपमाला को देख रहे हैं।”
हर आत्मा एक दीपक है। जब वह ज्ञान रूपी तेल और योग रूपी लौ से जगी हुई होती है, तो वह स्वयं भी प्रकाशमान होती है और विश्व को भी रोशनी देती है।
Murli Note:
“यह दीपों की रोशनी आत्मा को जगाने की रोशनी है।”
उदाहरण:
जैसे घर में अंधकार में एक दीपक जल जाए तो घर प्रकाशित हो जाता है, वैसे ही जब आत्मा ईश्वर से जुड़ती है तो अपने आसपास की आत्माओं को भी अज्ञान के अंधकार से बाहर निकाल देती है।
2. पहले खुद को जगाना, फिर औरों को जगाना
“अज्ञान का जो पर्दा सर्व आत्माओं के आगे है, उसे मिटाने के लिए पहले खुद को जगाना है, फिर औरों को जगाना है।”
अर्थात, पहले आत्म-जागरूक बनना है — ‘मैं आत्मा हूँ’ — यह अनुभूति स्थिर करनी है।
जब हम अपने भीतर की ज्योति को स्थिर करते हैं, तभी दूसरों को भी ईश्वर की याद की दिशा दिखा सकते हैं।
Murli Reminder:
“जो दीपक स्वयं बुझा हुआ है, वह दूसरों को कैसे जगाएगा?”
3. रूहानी योद्धा बनो — विजय का मेडल पाओ
बाबा ने कहा —
“जैसे हद की लड़ाई करने वाले योद्धे विजय का मेडल लेने के लिए युद्ध में जाते हैं, वैसे ही आप रूहानी योद्धे सेवा के मैदान में विजय का झंडा लहराने के लिए जा रहे हो।”
अर्थ:
हमारी सेवा भी एक रूहानी युद्ध है — अज्ञान, आलस्य, और अहंकार के विरुद्ध।
हर विजय के साथ बापदादा हमें स्नेह, सहयोग और समीपता के मेडल देते हैं।
Murli Checkpoint:
“अब तक कितने मेडल मिले हैं — यह चेक करो।”
4. टाइटल्स और मेडल्स की सूची
“जैसा कार्य वैसा मेडल। कम से कम 108 तो होने चाहिए।”
बाबा कहते हैं, अपने गुणों और सेवाओं की गिनती करो —
क्या तुम्हारे पास निम्न मेडल्स हैं?
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सच्चा सेवाधारी मेडल
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विजय मेडल
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अचल दीपक मेडल
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सदा हंसते मुख वाला मेडल
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निमित्त भाव मेडल
उदाहरण:
जैसे सैनिक अपने पदक देखकर नशे में रहते हैं, वैसे ही आत्मा को भी अपने रूहानी मेडल्स का नशा रहना चाहिए — अहंकार का नहीं, आत्म-सम्मान का।
5. विशेष कार्य करने का लक्ष्य
“हर सेवाधारी को यह लक्ष्य रखना है कि कोई ना कोई ऐसा नवीनता का विशेष कार्य करे जो अब तक ड्रामा में छिपा हुआ था, उसे प्रत्यक्ष करे।”
Murli Insight:
विशेष सेवा वही है जो नवीनता से भरी हो।
कोई नया प्रचार माध्यम, कोई नया स्थान, या नई विधि — जिससे और आत्माएं बाबा से जुड़ें।
उदाहरण:
जैसे लौकिक जगत में कोई वैज्ञानिक नया आविष्कार करता है तो नामीग्रामी बनता है, वैसे ही रूहानी सेवाधारी भी नया आध्यात्मिक कार्य करके नामीग्रामी बनते हैं।
6. नाम के नहीं, रूहानी नशे के नामीग्रामी
“रूहानी नशे में रहना है — नाम के नशे में नहीं। निमित्त और निर्माण के सर्टिफिकेट सहित नामीग्रामी होना है।”
Murli Point:
“जिन्हें बाप द्वारा कार्य के लिए चुना जाता है, वे निमित्त होते हैं — कर्ता नहीं।”
उदाहरण:
जैसे वाद्ययंत्र खुद संगीत नहीं बजाता, संगीतकार की उंगली के स्पर्श से संगीत निकलता है। वैसे ही सेवाधारी निमित्त बनकर कार्य करता है — ईश्वर कार्य कराता है।
7. विजय स्थल का बधाई समारोह
“कोई भी विजय स्थल पर जाता है तो विदाई नहीं, बधाई दी जाती है।”
बाबा ने कहा —
सेवा पर निकलने वाले बच्चे विजय निश्चित हैं। वे पराजय लेकर नहीं, विजय लेकर लौटते हैं।
Murli Reminder:
“विजय हुई पड़ी है — केवल रिपीट करना है।”
8. साधन नहीं, भावना प्रधान सेवा
“जो सच्चा सेवाधारी है, उसे साधन अपने आप मिल जाते हैं।”
उदाहरण (जगदीश भाई से):
-
वे कम साधनों में बड़े कार्य करते थे।
-
कपड़े अपने हाथ से सीते थे, सुई-धागा हमेशा साथ रखते थे।
-
प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी साधारण वस्त्र पहनकर जाते थे।
Murli Essence:
“सादगी, बचत और अहंकाररहित सेवा — यही सच्चे सेवाधारी की पहचान है।”
9. अनुभवी आत्माओं की पालना
“साकार पालना में पले हुए बच्चे मूल्यवान हैं — जैसे वृक्ष में पके हुए फल।”
ऐसी आत्माएं स्वयं अनुभव से परिपक्व होकर अन्य आत्माओं की पालना बनती हैं।
वे वरदानों से बढ़ी हैं, इसलिए वरदानों से दूसरों को भी बढ़ाती हैं।
Murli Point:
“पालना अर्थात वरदानों से वृद्धि।”
10. स्वाहा कर शक्तिशाली बनो
“कमजोरियों को स्वाहा कर शक्तिशाली आत्माएं बनकर जा रहे हो ना?”
बाबा की यह अंतिम प्रेरणा हमें याद दिलाती है कि सेवा से पहले खुद को पवित्र, निर्मल और दृढ़ बनाना आवश्यक है।
तभी हम अचल दीपक बनकर सच्चे नामीग्रामी सेवाधारी बन सकते हैं।
निष्कर्ष:
नामीग्रामी सेवाधारी वही है — जो स्वयं जला हुआ दीपक है, जो अहंकार रहित है, जो विशेष नवीन सेवा करता है, और जो निमित्त बनकर सदा रूहानी नशे में रहता है।
Murli Keylines Summary (22 Jan 1984)
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दीपमाला आत्माओं की जागृति का प्रतीक है।
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पहले खुद को जगाओ, फिर औरों को जगाओ।
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हर सेवाधारी रूहानी योद्धा है।
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विशेष कार्य से नामीग्रामी बनो।
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नाम नहीं, रूहानी नशा ज़रूरी है।
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सादगी में सेवा ही सच्ची विजय है।
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नामीग्रामी सेवाधारी बनने की विधि
(22 जनवरी 1984 – बापदादा की अव्यक्त मुरली से)
प्रश्नोत्तर रूप में सारांश (Q&A Format)
प्रश्न 1:
बाबा ने आज की मुरली में “जगे हुए दीपकों” से क्या अर्थ बताया है?
उत्तर:
बापदादा ने कहा कि हर आत्मा एक दीपक है। जब वह ज्ञान रूपी तेल और योग रूपी लौ से जगी हुई होती है, तो वह स्वयं भी प्रकाशित होती है और दूसरों को भी रोशनी देती है।
जैसे घर में अंधकार में दीपक जलता है तो पूरा घर रोशन हो जाता है, वैसे ही आत्मा जब परमात्मा से जुड़ती है तो अपने आसपास की आत्माओं को भी अज्ञान के अंधकार से निकालती है।Murli Note:
“यह दीपों की रोशनी आत्मा को जगाने की रोशनी है।”
प्रश्न 2:
बाबा ने “पहले खुद को जगाने” की क्या आवश्यकता बताई?
उत्तर:
बाबा कहते हैं — अज्ञान का पर्दा सर्व आत्माओं के आगे है।
उसे मिटाने के लिए पहले खुद को जगाना ज़रूरी है।
यदि दीपक स्वयं बुझा हुआ है तो वह दूसरों को कैसे जगा सकता है?
इसलिए पहले आत्म-जागरूक बनो — ‘मैं आत्मा हूँ’ की अनुभूति में स्थित रहो, तब ही औरों को भी परमात्मा से जोड़ सकते हो।Murli Reminder:
“जो दीपक स्वयं बुझा हुआ है, वह दूसरों को कैसे जगाएगा?”
प्रश्न 3:
रूहानी योद्धा किसे कहा गया है और उसका कार्य क्या है?
उत्तर:
बाबा ने हमें रूहानी योद्धा कहा है जो अज्ञान, आलस्य, और अहंकार से युद्ध करते हैं।
जैसे सैनिक विजय का मेडल पाने के लिए युद्ध करता है, वैसे ही सेवाधारी आत्माएं भी सेवा के मैदान में विजय झंडा लहराने जाती हैं।
जो जितना विजय बनता है, उतना बापदादा से स्नेह, सहयोग, समीपता का मेडल प्राप्त करता है।Murli Checkpoint:
“अब तक कितने मेडल मिले हैं — यह चेक करो।”
प्रश्न 4:
बाबा ने 108 मेडल्स का उल्लेख क्यों किया?
उत्तर:
बाबा कहते हैं — “जैसा कार्य वैसा मेडल।”
हर गुण और विशेषता एक टाइटल है — सेवाधारी को अपने भीतर यह देखना चाहिए कि उसके पास कितने मेडल हैं।
कम से कम 108 मेडल्स तो होने चाहिए।
ये मेडल्स जैसे हैं — सच्चा सेवाधारी मेडल, विजय मेडल, अचल दीपक मेडल, सदा हंसते मुख वाला मेडल, निमित्त भाव मेडल।उदाहरण:
जैसे सैनिक अपने पदक देखकर गौरव महसूस करता है, वैसे ही आत्मा को अपने रूहानी मेडल्स का आत्म-सम्मान का नशा रहना चाहिए।
प्रश्न 5:
विशेष कार्य करने वाले सेवाधारी को “नामीग्रामी” क्यों कहा गया है?
उत्तर:
क्योंकि बाबा कहते हैं — “हर सेवाधारी को कोई ऐसा नवीन कार्य करना है जो अब तक ड्रामा में छिपा हुआ था, उसे प्रत्यक्ष करे।”
जो आत्माएं रूहानी सेवा में नवीनता लाती हैं — चाहे नई सेवा विधि, नया प्रचार माध्यम या नया स्थान — वही नामीग्रामी कहलाती हैं।उदाहरण:
जैसे लौकिक जगत में कोई वैज्ञानिक नया आविष्कार करता है तो प्रसिद्ध होता है, वैसे ही रूहानी जगत में जो नई विधि से सेवा करता है, वही नामीग्रामी सेवाधारी कहलाता है।
प्रश्न 6:
बाबा ने “नाम के नहीं, रूहानी नशे के नामीग्रामी” क्यों कहा?
उत्तर:
बाबा ने समझाया — नाम या प्रसिद्धि के नशे में नहीं रहना है, बल्कि रूहानी सेवा के नशे में रहना है।
सेवाधारी को सदैव निमित्त भाव से कार्य करना चाहिए क्योंकि कर्ता परमात्मा है।Murli Point:
“जिन्हें बाप द्वारा कार्य के लिए चुना जाता है, वे निमित्त होते हैं — कर्ता नहीं।”
उदाहरण:
जैसे वाद्ययंत्र खुद नहीं बजता, संगीतकार के स्पर्श से संगीत निकलता है — वैसे ही सेवाधारी निमित्त बनकर ईश्वर के कार्य का साधन बनता है।
प्रश्न 7:
विजय स्थल पर जाने वाले बच्चों को विदाई नहीं, बधाई क्यों दी जाती है?
उत्तर:
क्योंकि बापदादा जानते हैं कि ऐसे सेवाधारियों की विजय निश्चित है।
वे पराजय लेकर नहीं, विजय लेकर लौटते हैं।
इसलिए बापदादा और परिवार उन्हें बधाई समारोह से विदा करते हैं।Murli Reminder:
“विजय हुई पड़ी है — केवल रिपीट करना है।”
प्रश्न 8:
सच्चा सेवाधारी साधनों पर नहीं, किस पर निर्भर रहता है?
उत्तर:
बाबा कहते हैं — “जो सच्चा सेवाधारी है, उसे साधन अपने आप मिल जाते हैं।”
सच्चा सेवाधारी साधनों पर नहीं, भावना और नियत पर निर्भर करता है।उदाहरण (जगदीश भाई):
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उन्होंने कम साधनों में बड़े कार्य किए।
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कपड़े स्वयं सीते थे, सुई-धागा साथ रखते थे।
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प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी सादगी से जाते थे।
Murli Essence:
“सादगी, बचत और अहंकाररहित सेवा — यही सच्चे सेवाधारी की पहचान है।”
प्रश्न 9:
“साकार पालना में पले हुए बच्चे” किस प्रकार मूल्यवान बताए गए हैं?
उत्तर:
बाबा ने कहा — “जैसे वृक्ष में पके हुए फल मूल्यवान होते हैं, वैसे साकार पालना में पले बच्चे मूल्यवान हैं।”
ऐसी आत्माएं अनुभव से परिपक्व होकर अन्य आत्माओं की पालना बनती हैं और वरदानों से वृद्धि देती हैं।Murli Point:
“पालना अर्थात वरदानों से वृद्धि।”
प्रश्न 10:
सेवा से पहले आत्मा को कौन-सी तैयारी करनी चाहिए?
उत्तर:
बाबा की अंतिम प्रेरणा है —
“कमजोरियों को स्वाहा कर शक्तिशाली आत्माएं बनकर जाओ।”
अर्थात, सेवा पर जाने से पहले आत्मा को अपनी कमजोरियों को समाप्त कर पवित्र, निर्मल और दृढ़ बनाना चाहिए।
ऐसी आत्मा ही अचल दीपक बनकर सच्ची नामीग्रामी सेवाधारी कहलाती है।
निष्कर्ष (Conclusion):
नामीग्रामी सेवाधारी वही है —
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जो स्वयं जला हुआ दीपक है,
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जो अहंकार रहित है,
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जो विशेष नवीन सेवा करता है,
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और जो निमित्त बनकर सदा रूहानी नशे में रहता है।
मुख्य मुरली सूत्र (22 जनवरी 1984):
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दीपमाला आत्माओं की जागृति का प्रतीक है।
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पहले खुद को जगाओ, फिर औरों को जगाओ।
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हर सेवाधारी रूहानी योद्धा है।
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विशेष कार्य से नामीग्रामी बनो।
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नाम नहीं, रूहानी नशा ज़रूरी है।
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सादगी में सेवा ही सच्ची विजय है।
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Disclaimer
यह वीडियो ब्रह्माकुमारी संस्था की 22 जनवरी 1984 की अव्यक्त मुरली पर आधारित एक आध्यात्मिक चिंतन व अध्ययन प्रस्तुत करता है।
इसका उद्देश्य केवल आध्यात्मिक जागृति और स्व-परिवर्तन के लिए प्रेरणा देना है।
यह किसी धार्मिक या संस्थागत प्रतिनिधित्व का दावा नहीं करता।नामीग्रामी सेवाधारी, जगे हुए दीपक, दीपमाला, आत्मा जागृति, रूहानी योद्धा, विजय मेडल, सच्चा सेवाधारी, अचल दीपक, सदा हंसते मुख वाला मेडल, निमित्त भाव, विशेष सेवा, नवीनता, रूहानी नशा, अहंकार रहित सेवा, साधन नहीं भावना प्रधान, अनुभवी आत्माओं की पालना, स्वाहा कर शक्ति, पवित्रता, निर्मलता, दृढ़ता, सेवा में सफलता, नामीग्रामी बनना, दीपक रूपी आत्मा, ज्ञान और योग, प्रेरणा, Murli Keylines, आत्मा प्रकाश, सेवा उद्देश्य,Renowned server, awakened lamp, garland of lamps, soul awakening, spiritual warrior, victory medal, true server, unshakeable lamp, medal with ever smiling face, instrument feeling, special service, novelty, spiritual intoxication, service without ego, not means but feeling based, nurturing of experienced souls, power of swaha, purity, cleanliness, determination, success in service, becoming renowned, soul in the form of a lamp, knowledge and yoga, inspiration, Murli Keylines, soul light, purpose of service,

