Avyakta Murli-(04) 11-01-1983

अव्यक्त मुरली-(04)“समर्थ की निशानी-संकल्प, बोल, कर्म, स्वभाव, संस्कार बाप समान”11-01-1983

(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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11-01-1983 “समर्थ की निशानी – संकल्प, बोल, कर्म, स्वभाव, संस्कार बाप समान”

आज रूहानी बाप बच्चों से दिलाराम को दी हुई दिल का समाचार पूछने आये हैं। सभी ने दिलाराम को दिल दी है ना! जब एक दिलाराम को दिल दे दी तो उसके सिवाए और कोई आ नहीं सकता। दिलाराम को दिल देना अर्थात् दिल में बसाना। इसी को ही सहज योग कहा जाता हे। जहाँ दिल होगी वहाँ ही दिमाग भी चलेगा। तो दिल में भी दिलाराम और दिमाग में भी अर्थात् स्मृति में भी दिलाराम। और कोई भी स्मृति वा व्यक्ति दिलाराम के बीच आ नहीं सकता – ऐसा अनुभव करते हो? जब दिल और दिमाग अर्थात् स्मृति, संकल्प, शक्ति सब बाप को दे दी, तो बाकी रहा ही क्या! मन, वाणी और कर्म से बाप के हो गये। संकल्प भी यह किया कि हम बाप के हैं और वाणी से भी यही कहते हो ‘मेरा बाबा’, मैं बाबा का। और कर्म में भी जो सेवा करते हो वह भी बाप की सेवा, वह मेरी सेवा – ऐसे ही मन, वाणी और कर्म से बाप के बन गये ना। बाकी मार्जिन क्या रही जहाँ से कोई संकल्प मात्र भी आवे? कोई भी संकल्प वा किसी प्रकार की भी आकर्षण आने का कोई दरवाजा वा खिड़की रह गई है क्या? आने का रास्ता हैं ही मन, बुद्धि, वाणी और कर्म – चारों तरफ चेक करो कि जरा भी किसको आने की मार्जिन तो नहीं है? मार्जिन है? स्वप्न भी इसी ही आधार पर आते हैं। जब बाप को एक बार कहा कि यह सब कुछ तेरा फिर बाकी क्या रहा? इसी को ही निरन्तर याद कहा जाता है। कहने और करने में अन्तर तो नहीं कर देते हो? तेरा में मेरा मिक्स तो नहीं कर देते हो? सूर्यवंशी अर्थात् गोल्डन एजेड। उसमें मिक्स तो नहीं होगा ना! डाइमण्ड भी बेदाग हो। कोई दाग रह तो नहीं गया है?

जिस समय भी कोई कमजोरी वर्णन करते हो, चाहे संकल्प की, बोल की, चाहे संस्कार स्वभाव की, तो शब्द क्या कहते हो? मेरा विचार ऐसा कहता है वा मेरा संस्कार ही ऐसा है। लेकिन जो बाप का संस्कार, संकल्प सो मेरा संस्कार, संकल्प। जब बाप जैसा संकल्प, संस्कार हो जाता है तो ऐसे बोल कभी नहीं बोलेंगे कि क्या करूँ, मेरा स्वभाव संस्कार ऐसा है? क्या करूँ, यह शब्द ही कमजोरी का है। समर्थ की निशानी है – सदा बाप समान संकल्प, बोल, कर्म, स्वभाव, संस्कार हो। बाप के अलग, मेरे अलग यह हो नहीं सकता। उनके संकल्प में, बोल में, हर बात में बाबा, बाबा शब्द नेचुरल होगा। और कर्म करते करावनहार करा रहा है – यह अनुभव होगा। जब सबमें बाबा आ गया तो बाप के आगे माया आ नहीं सकती, या बाप होगा या माया? लण्डन निवासी बाबा बाबा कहते, स्मृति में रखते सदाकाल के लिए मायाजीत हो गये हैं। जब वर्सा सदाकाल का लेते हो तो याद भी सदाकाल की चाहिए ना। मायाजीत भी सदाकाल के लिए चाहिए।

लण्डन है सेवा का फाउण्डेशन स्थान। तो फाउण्डेशन के स्थान पर रहने वाले भी फाउण्डेशन के समान सदा मजबूत हैं। क्या करें, कैसे करें, ऐसी कोई भी कम्पलेन्ट तो नहीं है ना। बहुत करके ड्रामा भी माया के ही करते हो ना! हर ड्रामा में माया न आने वाली भी आ जाती है। माया के बिना शायद ड्रामा नहीं बना सकते हो। माया के भी भिन्न-भिन्न स्वरूप दिखाते हो ना। हर बात का परिवर्तक स्वरूप हो, इसका ड्रामा दिखाओ। माया का मुख्य स्वरूप क्या है, उसको तो अच्छी तरह से जानते हो। लेकिन मायाजीत बनने के बाद वही माया के स्वरूप कैसे बदल जाते हैं, वह ड्रामा दिखाओ। जैसे शारीरिक दृष्टि जिसको काम कहते, तो उसके बजाए आत्मिक स्नेह रूप में बदल जाता – ऐसे सब विकार परिवर्तक रूप में हो जाते। तो क्या परिवर्तन हुआ, यह प्रैक्टिकल में अनुभव भी करो और दिखाओ भी।

लण्डन निवासियों ने विशेष स्व की उन्नति प्रति और विश्व कल्याण प्रति कौन सा लक्ष्य रखा है? सभी को विशेष सदा यही स्मृति में रहे कि हम हैं ही फरिश्ते। फरिश्ते का स्वरूप क्या, बोल क्या, कर्म क्या होता, वह स्वत: ही फरिश्ते रूप से चलते चलेंगे। “फरिश्ता हूँ, फरिश्ता हूँ” – इसी स्मृति को सदा रखो। जबकि बाप के बन गये और सब कुछ मेरा सो तेरा कर दिया तो क्या बन गये। हल्के फरिश्ते हो गये ना। तो इस लक्ष्य को सदा सम्पन्न करने के लिए एक ही शब्द कि सब बाप का है, मेरा कुछ नहीं – यह स्मृति में रहे। जहाँ मेरा आवे तो वहाँ तेरा कह दो। फिर कोई बोझ नहीं फील होगा। हर वर्ष कदम आगे बढ़ रहा है और सदा आगे बढ़ते रहेंगे, उड़ती कला में जाने वाले फरिश्ते हैं यह तो पक्का है ना। नीचे ऊपर, नीचे ऊपर होने वाले नहीं।

अच्छा, लण्डन निवासियों की महिमा तो सभी जानते हैं। आपको सब किस नज़र से देखते हैं? सदा मायाजीत क्योंकि पावरफुल डबल पालना मिल रही है। बापदादा की तो सदा पालना है ही लेकिन बाप ने जिन्हों को निमित्त बनाया है, वह भी पॉवरफुल पालना मिल रही है। निराकार, आकार और साकार तीनों को फालो करो तो क्या बन जायेंगे? फरिश्ता बन जायेंगे ना। लण्डन निवासी अर्थात् नो कम्पलेन्ट, नो कन्फ्यूज़। अलौकिक जीवन वाले, स्वराज्य करने वाले सब किंग और क्वीन हो ना। आपका नशा है ना।

कुमारियों से:- कुमारियाँ तो अपना भाग्य देख सदा हर्षित होती हैं। कुमारी लौकिक जीवन में भी ऊंची गायी जाती है और ज्ञान में तो कुमारी है ही महान। लौकिक में भी श्रेष्ठ आत्मायें और पारलौकिक में भी श्रेष्ठ आत्मायें। ऐसे अपने को महान समझती हो? आप तो ‘हाँ’ ऐसे कहो जो दुनिया सुने। कुमारियों को तो बापदादा अपने दिल की तिजोरी में रखता है कि किसी की भी नज़र न लगे। ऐसे अमूल्य रत्न हो। कुमारियाँ सदा पढ़ाई और सेवा इसी में ही बिजी रहती हैं। कुमारी जीवन में बाप मिल गया और चाहिए ही क्या! अनेक सम्बन्धों में भटकना नहीं पड़ा, बच गई। एक में सर्व सम्बन्ध मिल गये। नहीं तो पता है कितने व्यर्थ के सम्बन्ध हो जाते, सासू का, ननंद का, भाभियों का… सबसे बच गई ना। न जाल में फँसी, न जाल से छुड़ाने का समय ही था। कुमारियाँ तो हैं ही डबल लाइट। कुमारियाँ सदा बाप समान सेवाधारी और बाप समान सर्व धारणाओं स्वरूप। कुमारी जीवन अर्थात् प्युअर जीवन। प्युअर आत्मायें श्रेष्ठ आत्मायें हुई ना। तो बापदादा कुमारियों को महान पूज्य आत्मा के रूप में देखते हैं। पवित्र आत्मायें सर्व की और बाप की प्रिय हैं।

अपने भाग्य को सदा सामने रखते हुए समर्थ आत्मा बन सेवा में समर्थी लाते रहो। यही बड़ा पुण्य है। जो स्वयं को प्राप्ति हुई है वह औरों को भी कराओ। खजानों को बाँटने से खजाना और ही बढ़ेगा – ऐसे शुभ संकल्प रखने वाली कुमारी हो ना। अच्छा।

टीचर्स के साथ:- विश्व के शोकेस में विशेष शोपीस हो ना। सबकी नज़र निमित्त बने हुए सेवाधारी कहो, शिक्षक कहो, उन्हीं पर ही रहती है। सदा स्टेज पर हो। कितनी बड़ी स्टेज है और कितने देखने वाले हैं? सभी आप निमित्त आत्माओं से प्राप्ति की भावना रखते हैं। सदा यह स्मृति में रहता है? सेन्टर पर रहती हो वा स्टेज पर रहती हो? सदा बेहद की अनेक आत्माओं के बीच बड़े ते बड़ी स्टेज पर हो। इसलिए सदा दाता के बच्चे देते रहो और सर्व की भावनायें सर्व की आशायें पूर्ण करते रहो। महादानी और वरदानी बनो, यही आपका स्वरूप है। इस स्मृति से हर संकल्प, बोल और कर्म हीरो पार्ट के समान हो क्योंकि विश्व की आत्मायें देख रही हैं। सदा स्टेज पर ही रहना, नीचे नहीं आना। निमित्त सेवाधारियों को बापदादा अपना फ्रैण्ड्स समझते हैं क्योंकि बाप भी शिक्षक है तो बाप समान निमित्त बनने वाले फ्रैण्ड्स हुए ना। तो इतनी समीप की आत्मायें हो। ऐसे सदा अपने को बाप के साथ वा समीप अनुभव करती हो? जब भी बाबा कहो तो हजार भुजाओं के साथ बाबा आपके साथ है। ऐसे अनुभव होता है? जो निमित्त बने हुए हैं उन्हीं को बापदादा एक्स्ट्रा सहयोग देते हैं। इसीलिए बड़े फखुर से बाबा कहो, बुलाओ, तो हाजिर हो जायेंगे। बापदादा तो ओबीडियन्ट है ना। अच्छा, ओम् शान्ति।

समर्थ की निशानी – संकल्प, बोल, कर्म, स्वभाव, संस्कार बाप समान


स्पीच

1. भूमिका – दिलाराम को दिल देने का अर्थ

आज रूहानी बाप बच्चों से पूछते हैं – “दिलाराम को दिल दी है ना?”
दिल देना मतलब – दिल और स्मृति में केवल बाप को बसाना।
जहाँ दिल होगी, वहाँ दिमाग भी वही चलेगा।
दिल में भी बाबा, स्मृति में भी बाबा — बीच में कोई और नहीं।
यही है सहज योग का मूल।


2. मन, वाणी, कर्म – तीनों से बाप के होना

जब संकल्प, वाणी और कर्म — तीनों से “हम बाप के हैं” अनुभव हो,
तो कोई भी आकर्षण, कोई भी संकल्प बीच में नहीं आ सकता।
मन, बुद्धि, वाणी और कर्म के सभी द्वार बंद, केवल बाबा के लिए खुले।
यही है निरंतर याद की स्थिति।


3. समर्थ आत्मा की पहचान

समर्थ आत्मा की निशानी —
सदा बाप समान संकल्प, बोल, कर्म, स्वभाव, संस्कार
“क्या करूँ” जैसे कमजोरी के शब्द उनके शब्दकोश में नहीं होते।
उनके हर बोल में स्वाभाविक रूप से “बाबा” झलकता है।


4. मायाजीत स्थिति

जहाँ बाबा है, वहाँ माया नहीं आ सकती।
या बाबा होगा, या माया — दोनों एक साथ नहीं।
लंदन निवासी इस बात के उदाहरण — सदा मायाजीत, सेवा के फाउंडेशन और मजबूत आधार।


5. फरिश्ता बनने का सूत्र

फरिश्ते का जीवन — हल्का जीवन।
स्मृति: “सब बाप का है, मेरा कुछ नहीं”।
जहाँ “मेरा” आए, वहाँ तुरंत “तेरा” कह दो।
यही उड़ती कला का आधार है।


6. कुमारियों का रूहानी वैभव

कुमारी — लौकिक और अलौकिक, दोनों में महान।
डबल लाइट, पवित्र, बाप समान सेवाधारी।
एक में सर्व संबंध मिलने से अनेक बंधनों से बचना — यही कुमारी जीवन की श्रेष्ठता।


7. सेवा में समर्थता

जो प्राप्ति स्वयं को हुई है, वही दूसरों को बाँटना।
खजाना बाँटने से घटता नहीं, बढ़ता है।
सेवा के संकल्प, शुभ भावना और शुभकामना ही समर्थता का आधार।


8. निमित्त सेवाधारी – विश्व के मंच पर

निमित्त आत्माएं विश्व के शोकेस में विशेष शोपीस हैं।
सदा स्टेज पर रहना, महादानी और वरदानी स्वरूप से सबकी आशाएं पूर्ण करना।
बाप समान फ्रेंड बनकर, बाप की संगत का अनुभव करना।


9. निष्कर्ष – समर्थ जीवन का संकल्प

समर्थ आत्मा वही — जो हर संकल्प, बोल, कर्म, स्वभाव और संस्कार में बाप समान हो।
यही है “समर्थ की निशानी” और यही है स्वराज्य और विश्व सेवा का आधार।

समर्थ की निशानी – संकल्प, बोल, कर्म, स्वभाव, संस्कार बाप समान

Q1. दिलाराम को दिल देने का मतलब क्या है?
A. दिल और स्मृति में केवल बाप को बसाना, बीच में कोई और न लाना।

Q2. मन, वाणी, कर्म से बाप के होने की पहचान क्या है?
A. सभी द्वार केवल बाबा के लिए खुले हों, कोई अन्य संकल्प या आकर्षण न आए।

Q3. समर्थ आत्मा की विशेषता क्या है?
A. हर संकल्प, बोल, कर्म, स्वभाव और संस्कार में बाप समान होना।

Q4. मायाजीत स्थिति का मूल सूत्र क्या है?
A. जहाँ बाबा है, वहाँ माया नहीं हो सकती — दोनों साथ नहीं रहते।

Q5. फरिश्ता बनने का मुख्य आधार क्या है?
A. स्मृति – “सब बाप का है, मेरा कुछ नहीं”, और “मेरा” को तुरंत “तेरा” में बदलना।

Q6. कुमारियों की रूहानी विशेषता क्या है?
A. डबल लाइट, पवित्र और बाप समान सेवाधारी रहना।

Q7. सेवा में समर्थता कैसे आती है?
A. जो प्राप्ति स्वयं को हुई है, उसे शुभ भावना से दूसरों में बाँटना।

Q8. निमित्त सेवाधारी की पहचान क्या है?
A. विश्व मंच पर महादानी और वरदानी स्वरूप से सबकी आशाएं पूर्ण करना।

Q9. समर्थ जीवन का संकल्प क्या है?
A. हर संकल्प, बोल, कर्म, स्वभाव और संस्कार में सदा बाप समान रहना।

(डिस्क्लेमर):

यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ की आध्यात्मिक शिक्षाओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य आत्मिक उत्थान, पवित्रता की भावना, और परमात्मा शिव के संदेश को आत्माओं तक पहुँचाना है। यह किसी मत, पंथ, या व्यक्ति विशेष के विरोध में नहीं है।

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