अव्यक्त मुरली-(09)20-02-1984 “एक सर्वश्रेष्ठ, महान और सुहावनी घड़ी”
(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
20-02-1984 “एक सर्वश्रेष्ठ, महान और सुहावनी घड़ी”
आज भाग्य बनाने वाले बाप श्रेष्ठ भाग्यवान सर्व बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। हर एक बच्चा कैसे कल्प पहले मुआफिक तकदीर जगाकर पहुँच गया है। तकदीर जगाकर आये हो। पहचानना अर्थात् तकदीर जगना। विशेष डबल विदेशी बच्चों का वरदान भूमि पर संगठन हो रहा है। यह संगठन तकदीरवान बच्चों का संगठन है। सबसे पहले तकदीर खुलने का श्रेष्ठ समय वा श्रेष्ठ घड़ी वही है जब बच्चों ने जाना, माना और कहा मेरा बाबा। वह घड़ी ही सारे कल्प के अन्दर श्रेष्ठ और सुहावनी है। सभी को उस घड़ी की स्मृति अब भी आती है ना। बनना, मिलना, अधिकार पाना यह तो सारा संगमयुग ही अनुभव करते रहेंगे। लेकिन वह घड़ी जिसमें अनाथ से सनाथ बने, क्या से क्या बने। बिछुड़े हुए फिर से मिले। अप्राप्त आत्मा प्राप्ति के दाता की बनी वह पहली परिवर्तन की घड़ी, तकदीर जगने की घड़ी कितनी श्रेष्ठ महान है। स्वर्ग के जीवन से भी वह पहली घड़ी महान है, जब बाप के बन गये। मेरा सो तेरा हो गया। तेरा माना और डबल लाइट बने। मेरे के बोझ से हल्के बन गये। खुशी के पंख लग गये। फर्श से अर्श पर उड़ने लगे। पत्थर से हीरा बन गये। अनेक चक्करों से छूट स्वदर्शन चक्रधारी बन गये। वह घड़ी याद है? वह ब्रहस्पति के दशा की घड़ी जिसमें तन-मन-धन-जन सर्व प्राप्ति की तकदीर भरी हुई है। ऐसी दशा, ऐसी रेखा वाली वेला में श्रेष्ठ तकदीरवान बने। तीसरा नेत्र खुला और बाप को देखा। सभी अनुभवी हो ना। दिल में गीत गाते हो ना वाह वह श्रेष्ठ घड़ी! कमाल तो उस घड़ी की है ना! बापदादा ऐसी महान वेला में, तकदीरवान वेला में आये हुए बच्चों को देख-देख खुश हो रहे हैं।
ब्रह्मा बाप भी बोले वाह मेरे आदि देव के आदिकाल के राज्य-भाग्य अधिकारी बच्चे! शिव बाप बोले वाह मेरे अनादि काल के अनादि अविनाशी अधिकार को पाने वाले बच्चे! बाप और दादा दोनों के अधिकारी सिकीलधे, स्नेही, साथी बच्चे हो। बापदादा को नशा है – विश्व में सभी आत्मायें जीवन का साथी, सच्चा साथी, प्रीत की रीत निभाने वाले साथी बहुत ढूँढने के बाद पाते भी हैं फिर भी सन्तुष्ट नहीं होते। एक भी ऐसा साथी नहीं मिलता और बापदादा को कितने जीवन साथी मिले हैं! और एक-एक, एक दो से महान हैं। सच्चे साथी हो ना! ऐसे सच्चे साथी हो जो प्राण जाएं लेकिन प्रीत की रीत न जाए। ऐसे सच्चे साथी जीवन साथी हो।
बापदादा की जीवन क्या है, जानते हो? विश्व सेवा ही बापदादा की जीवन है। ऐसी जीवन के साथी आप सभी हो ना। इसलिए सच्चे जीवन के साथी साथ निभाने वाले, बापदादा के कितने बच्चे हैं। दिन-रात किसमें बिजी रहते हो? साथ निभाने में ना। सभी जीवन साथी बच्चों के अन्दर सदा क्या संकल्प रहता है? सेवा का नगाड़ा बजावें। अभी भी सभी मुहब्बत में मगन हो। सेवा के साथी बन सेवा का सबूत लेकर आये हो ना। लक्ष्य प्रमाण सफलता को पाते जा रहे हो। जितना किया वह ड्रामा अनुसार बहुत अच्छा किया, और आगे बढ़ना है ना। इस वर्ष आवाज बुलन्द तो किया लेकिन अभी कोई-कोई तरफ के माइक लाये हैं। चारों ओर के माइक नहीं आये हैं। इसलिए आवाज तो फैला लेकिन चारों ओर के निमित्त बने हुए आवाज बुलन्द करने वाले बड़े माइक कहो या सेवा के निमित्त आत्मायें कहो यहाँ आयें और हरेक अपने को अपने तरफ का मैसेन्जर समझकर जाएं। अभी जिस तरफ से आये उस तरफ के मैसेन्जर बनें। लेकिन चारों ओर के माइक आयें और मैसेन्जर बन जाएं। चारों तरफ हर कोने में ये मैसेज सर्व को मिल जाए तो एक ही समय चारों ओर का आवाज निकले। इसको कहा जाता है बड़ा नगाड़ा बजना। चारों ओर एक नगाड़ा बजे, एक ही है, एक हैं, तब कहेंगे प्रत्यक्षता का नगाड़ा।
अभी हर एक देश के बैण्ड बजे हैं। नगाड़ा बजना है अभी। बैण्ड अच्छी बजाई है। इसलिए बापदादा भिन्न-भिन्न देश के निमित्त बनी हुई आत्माओं द्वारा वैराइटी बैण्ड सुन और देख खुश हो रहे हैं। भारत की भी बैण्ड सुनी। बैण्ड की आवाज और नगाड़े की आवाज में भी फर्क है। मन्दिरों में बैण्ड के बजाए नगाड़ा बजाते हैं। अब समझा आगे क्या करना है? संगठन रुप का आवाज, बुलन्द आवाज होता है। अभी भी सिर्फ एक हाँ जी कहे और सभी मिलकर हाँ जी कहें तो फर्क होगा ना। एक है, एक ही हैं, यही एक हैं। यह बुलन्द आवाज चारों ओर से एक ही समय पर निकले। टी.वी. में देखो, रेडियो में देखो, अखबारों में देखो, मुख में देखो यही एक बुलन्द आवाज हो। इन्टरनेशनल आवाज हो। इसलिए तो बापदादा जीवन साथियों को देख खुश होते हैं। जिसके इतने जीवन साथी और एक-एक महान तो सर्व कार्य हुए ही पड़े हैं। सिर्फ बाप निमित्त बन श्रेष्ठ कर्म की प्रालब्ध बना रहे हैं।
अच्छा, अभी तो मिलने की सीजन है। सबसे छोटे और सिकीलधे पोलैण्ड वाले बच्चे हैं। छोटे बच्चे सदैव प्यारे होते हैं। पोलैण्ड वालों को यह नशा है ना कि हम सबसे ज्यादा सिकीलधे हैं। सर्व समस्याओं को पार कर फिर भी पहुँच तो गये हैं ना! इसको कहा जाता है लगन। लगन विघ्न को समाप्त कर देती है। बापदादा के भी और परिवार के भी प्यारे हो। पोलैण्ड और पोर्चुगीज़ दोनों ही देश लगन वाले हैं। न भाषा देखी, न पैसे को देखा लेकिन लगन ने उड़ा लिया। जहाँ स्नेह है वहाँ सहयोग अवश्य प्राप्त होता है। असम्भव से सम्भव हो जाता है। तो बापदादा ऐसे स्वीट बच्चों का स्नेह देख हर्षित होते हैं और लगन से सेवा करने वाले निमित्त बने हुए बच्चों को भी ऑफरीन देते हैं। अच्छी ही मुहब्बत से मेहनत की है।
वैसे तो इस वर्ष अच्छे ग्रुप लाये हैं सभी ने। लेकिन इन देशों की भी विशेषता है, इसलिए बापदादा विशेष देख रहे हैं। सभी ने अपने-अपने स्थान पर वृद्धि को अच्छा प्राप्त किया है इसलिए स्थानों के नाम नहीं लेते। लेकिन हर स्थान की विशेषता अपनी-अपनी है। मधुबन तक पहुँचना, यही सेवा की विशेषता है। चारों ओर के जो भी निमित्त बच्चे हैं, उन्हों को बापदादा विशेष स्नेह के पुष्प भेंट कर रहे हैं। चारों ओर की एकानामी में नीचे ऊपर होते हुए भी इतनी आत्माओं को उड़ाकर ले आये हैं। यही मुहब्बत के साथ मेहनत की निशानी है। यह सफलता की निशानी है। इसलिए हरेक नाम सहित स्नेह के पुष्प स्वीकार करना। जो नहीं भी आये हैं उन्हों के याद-पत्र बहुत मालायें लाई हैं। तो बापदादा साकार रुप से न पहुँचने वाले बच्चों को भी स्नेह भरी यादप्यार दे रहे हैं। चारों ओर की तरफ से आये हुए बच्चों की याद का रेसपान्ड दे रहे हैं। सभी स्नेही हो। बापदादा के जीवन साथी हो, सदा साथ निभाने वाले समीप रत्न हो, इसलिए सभी के याद पत्रों से पहले, मैसेन्जर के पहले ही बापदादा के पास पहुँच गई और पहुँचती रहती है। सभी बच्चे अब यही सेवा की धूम मचाओ। बाप द्वारा मिले हुए शान्ति और खुशी के खजाने सर्व आत्माओं को खूब बांटो। सर्व आत्माओं की यही आवश्यकता है। सच्ची खुशी और सच्ची शान्ति की। खुशी के लिए कितना समय, धन और शारीरिक शक्ति भी खत्म कर देते हैं। हिप्पी बन जाते हैं। उन्हों को अब हैपी बनाओ। सर्व की आवश्यकता को पूर्ण करने वाले अन्नपूर्णा के भण्डार बनो। यही सन्देश सर्व विदेश के बच्चों को भेज देना। सभी बच्चों को मैसेज दे रहे हैं। कई ऐसे भी बच्चे हैं जो चलते-चलते थोड़ा सा अलबेलेपन के कारण तीव्र पुरुषार्थी से ढीले पुरुषार्थी हो जाते हैं। और कई माया के थोड़े समय के चक्र में भी आ जाते हैं। फिर भी जब फंस जाते हैं तो पश्चाताप में आते हैं। पहले माया की आकर्षण के कारण चक्र नहीं लगता लेकिन आराम लगता है। फिर जब चक्र में फंस जाते हैं तो होश में आ जाते हैं और जब होश में आते हैं तो कहते बाबा-बाबा क्या करें। ऐसे चक्र के वश होने वाले बच्चों के भी बहुत पत्र आते हैं। ऐसे बच्चों को भी बापदादा यादप्यार दे रहे हैं और फिर से यही याद दिला रहे हैं। जैसे भारत में कहावत है कि रात का भूला अगर दिन में घर आ जाए तो भूला नहीं कहलाता। ऐसे फिर से जागृति आ गई तो बीती सो बीती। फिर से नया उमंग, नया उत्साह नई जीवन का अनुभव करके आगे बढ़ सकते हैं।
बापदादा भी तीन बार माफ करते हैं। तीन बार फिर भी चांस देते हैं, इसलिए कोई भी संकोच नहीं करें। संकोच को छोड़कर स्नेह में आ जायें तो फिर से अपनी उन्नति कर सकते हैं। ऐसे बच्चों को भी विशेष सन्देश देना। कोई-कोई सरकमस्टाँस के कारण नहीं आ सके हैं और वह बहुत तड़पते याद कर रहे हैं। बापदादा सभी बच्चों की सच्ची दिल को जानते हैं। जहाँ सच्ची दिल है वहाँ आज नहीं तो कल फलता ही है। अच्छा।
सामने डबल विदेशी हैं। उन्हों की सीजन है ना। सीजन वालों को पहले खिलाया जाता है। सभी देश वाले अर्थात् भाग्यवान आत्माओं को, देश वालों को यह भी एडीशन में नशा है कि हम बाप के अवतरित भूमि वाले हैं। ऐसे सेवा की भारत भूमि, बाप की अवतरण भूमि और भविष्य की राज्य भूमि वाले सभी बच्चों को बापदादा विशेष यादप्यार दे रहे हैं क्योंकि सभी ने अपनी-अपनी लगन, उमंग-उत्साह प्रमाण सेवा की और सेवा द्वारा अनेक आत्माओं को बाप के समीप लाया। इसलिए सेवा के रिटर्न में बापदादा सभी बच्चों को स्नेह के पुष्पों का गुलदस्ता दे रहे हैं। स्वागत कर रहे हैं। आप भी सभी को गुलदस्ता दे स्वागत करते हो ना। तो सभी बच्चों को गुलदस्ता भी दे रहे हैं और सफलता का बैज भी लगा रहे हैं। हरेक बच्चे अपने-अपने नाम से बापदादा द्वारा मिला हुआ बैज और गुलदस्ता स्वीकार करना। अच्छा।
ज़ोन वाली दादियाँ तो हैं ही चेयरमैन। चेयरमैन अर्थात् सदा सीट पर सेट होने वाली, जो सदा सीट पर सेट हैं उनको ही चेयरमैन कहा जाता है। सदा चेयर के साथ नियर भी हैं। इसलिए सदा बाप के आदि सो अन्त तक हर कदम के साथी हैं। बाप का कदम और उन्हों का कदम सदा एक हैं। कदम ऊपर कदम रखने वाली हैं, इसलिए ऐसे सदा के हर कदम के साथियों को पदम, पदम, पदम गुणा यादप्यार दे रहे हैं और बहुत सुन्दर हीरे का पदम पुष्प बाप द्वारा स्वीकार हो। महारथियों में भाई भी आ गये। पाण्डव सदा शक्तियों के साथी हैं। पाण्डवों को यह खुशी है कि शक्ति सेना और पाण्डव दोनों मिलकर जो बाप का कार्य है, उसमें निमित्त बन सफल करने वाले सफलता मूर्त हैं। इसलिए पाण्डव भी कम नहीं, पाण्डव भी महान हैं। हर पाण्डव की विशेषता अपनी-अपनी है, विशेष सेवा कर रहे हैं। और उसी विशेषता के आधार पर बाप और परिवार के आगे विशेष आत्मायें हैं। इसलिए ऐसी सेवा के निमित्त विशेष आत्माओं को विशेष रुप से बापदादा विजय के तिलक से स्वागत कर रहे हैं। समझा। अच्छा।
आप सभी को तो सब मिल गया ना। कमल, तिलक, गुलदस्ता, बैज सब मिला ना। डबल विदेशियों की स्वागत कितने प्रकार से हो गई। यादप्यार तो सभी को मिल ही गया। फिर भी डबल विदेशी और स्व देशी, सभी बच्चे सदा उन्नति को पाते रहो, विश्व को परिवर्तन कर सदा के लिए सुखी और शान्त बनाते रहो। सबको खुशखबरी सुनाते रहो, सदा के लिए सुखों के झूले में झुलाते रहो। ऐसे विशेष सेवाधारी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
ट्रीनीडाड पार्टी से:– सदा अपने को संगमयुगी श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मायें हैं, ऐसे समझते हो! ब्राह्मणों को सदा ऊंची चोटी की निशानी दिखाते हैं। ऊंचे ते ऊंचा बाप और ऊंचे ते ऊंचा समय तो स्वयं भी ऊंचे हुए। जो सदा ऊंची स्थिति पर स्थित रहते हैं वह सदा ही डबल लाइट स्वयं को अनुभव करते हैं। किसी भी प्रकार का बोझ नहीं। न सम्बन्ध का, न अपने कोई पुराने स्वभाव-संस्कार का, इसको कहते हैं सर्व बन्धनों से मुक्त। ऐसे फ्री हो। सारा ग्रुप निर्बन्धन ग्रुप है। आत्मा से और शरीर के सम्बन्ध से भी। निर्बन्धन आत्मायें क्या करेंगी? सेन्टर सम्भालेंगी ना। तो कितने सेवाकेन्द्र खोलने चाहिए। टाइम भी है और डबल लाइट भी हो तो आप समान बनायेंगे ना। जो मिला है वह औरों को देना है। समझते हो ना कि आज के विश्व की आत्माओं को इसी अनुभव की कितनी आवश्यकता है। ऐसे समय पर आप प्राप्ति स्वरुप आत्माओं का क्या कार्य है! तो अभी सेवा को और वृद्धि को प्राप्त कराओ। ट्रीनीडाड वैसे भी सम्पन्न देश है तो सबसे ज्यादा संख्या ट्रीनीडाड सेन्टर की होनी चाहिए। आसपास भी बहुत एरिया है, तरस नहीं पड़ता? सेन्टर भी खोलो और बड़े-बड़े माइक भी लाओ। इतनी हिम्मत वाली आत्मायें जो चाहे वह कर सकती हैं। जो श्रेष्ठ आत्मायें हैं उन्हों द्वारा श्रेष्ठ सेवा समाई हुई है।
अध्याय: एक सर्वश्रेष्ठ, महान और सुहावनी घड़ी
(परिचय)
20 फरवरी 1984 की मुरली में परमपिता परमात्मा शिव ने बच्चों के साथ उस श्रेष्ठ घड़ी का अनुभव साझा किया, जब प्रत्येक आत्मा ने अपने तकदीर का जागरण किया। यह घड़ी केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि संगठनात्मक, वैश्विक और सृष्टि परिवर्तन की घड़ी थी।
रहस्य संख्या 1 — तकदीर जागरण की श्रेष्ठ घड़ी
सार: बापदादा ने देखा कि हर बच्चा कल्प के अनुसार अपनी तकदीर तक पहुँच गया। अनाथ से सनाथ बने, अप्राप्त आत्माएँ प्राप्त हुईं और पत्थर से हीरा बनने जैसी रूपांतरणी क्षण घटित हुई।
उदाहरण: जैसे फर्श से अर्श तक उड़ना, बोझ हल्का होना और खुशी के पंख लगना।
Murli नोट: 20 फरवरी 1984 — “सबसे पहले तकदीर खुलने का श्रेष्ठ समय वही है जब बच्चों ने जाना, माना और कहा ‘मेरा बाबा’। वही घड़ी सर्वश्रेष्ठ और सुहावनी है।”
क्रिया‑सूत्र: अपने जीवन में एक ऐसे अनुभव को पहचानना, जब आपने कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन किया और उसकी स्मृति में बापदादा के प्रति स्नेह महसूस किया।
रहस्य संख्या 2 — जीवन साथी बच्चों का अद्भुत संगठन
सार: बापदादा ने जीवन के सच्चे साथी, सेवा के साथी और प्रीत निभाने वाले बच्चों को देखा। यह संगठन एक “ताकतवर और स्नेही मैसेंजर्स” का संगठन था।
उदाहरण: एक ही समय में चारों कोनों से एक बुलंद आवाज का निर्माण करना। जैसे विभिन्न देशों के बच्चों की सेवा और संदेशों को एक साथ समेटना।
Murli नोट: “चारों ओर हर कोने में ये मैसेज सर्व को मिल जाए तो एक ही समय चारों ओर का आवाज निकले। इसे कहा जाता है बड़ा नगाड़ा बजना।”
क्रिया‑सूत्र: अपने समूह या समुदाय में संदेश और सेवा को एकजुट करने के लिए नेतृत्व करना।
रहस्य संख्या 3 — लगन और सेवा की शक्ति
सार: पोलैण्ड और पोर्चुगीज़ बच्चों की लगन और सेवा से बापदादा खुश हुए। असंभव कार्य भी प्रेम और लगन से संभव हो जाता है।
उदाहरण: भाषा या पैसे की बाधा नहीं देखना, केवल लगन और सेवा में ऊर्जा लगाना।
Murli नोट: “जहाँ स्नेह है वहाँ सहयोग अवश्य प्राप्त होता है। असम्भव से सम्भव हो जाता है।”
क्रिया‑सूत्र: सेवा में आने वाली चुनौतियों के बावजूद अपने प्रयास और पुरुषार्थ में लगन बनाए रखना।
रहस्य संख्या 4 — पुरस्कार और स्मृति का महत्व
सार: बापदादा ने बच्चों को बैज, गुलदस्ता और स्नेह के पुष्प देकर उनकी सेवा और पुरुषार्थ को सम्मानित किया। यह पुरस्कार व्यक्तिगत और सामूहिक सफलता का प्रतीक है।
उदाहरण: सेवा में उत्कृष्टता पाने वाले बच्चों को विशेष सम्मान और बापदादा के स्नेह के पुष्प।
Murli नोट: “सभी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते। डबल विदेशी और स्वदेशी सभी बच्चों को सदा उन्नति प्राप्त हो।”
क्रिया‑सूत्र: अपने प्रयासों की स्मृति और पुरस्कारों को प्रेरणा के रूप में स्वीकार करना और दूसरों के लिए भी सेवा की प्रेरणा बनाना।
रहस्य संख्या 5 — डबल लाइट और निर्बन्धन मुक्त जीवन
सार: श्रेष्ठ आत्माएँ, जो सदा ऊँची स्थिति पर हैं, डबल लाइट और निर्बन्धन मुक्त जीवन का अनुभव करती हैं। ये आत्माएँ आत्मा से जुड़े, निर्बन्धन मुक्त समूहों का संचालन करती हैं।
उदाहरण: सेन्टर संभालना, समय और ऊर्जा का सदुपयोग, श्रेष्ठ आत्माओं के उदाहरण बनना।
Murli नोट: “जो सदा ऊंची स्थिति पर स्थित रहते हैं वह सदा ही डबल लाइट स्वयं को अनुभव करते हैं।”
क्रिया‑सूत्र: अपने व्यक्तिगत और समूह प्रयासों में निर्बन्धन रहित और ऊँचे उद्देश्य के साथ कार्य करना।
सारांश (Conclusion)
20-02-1984 की मुरली में बापदादा ने उस घड़ी का वर्णन किया जो व्यक्तिगत, संगठनात्मक और वैश्विक स्तर पर श्रेष्ठ और सुहावनी थी। बच्चों ने अपनी लगन, सेवा, पुरुषार्थ और सच्चे साथी बनने के प्रयास से इस घड़ी को सार्थक बनाया। यह घड़ी हमें याद दिलाती है कि श्रेष्ठ पुरुषार्थ, सेवा और सच्चाई ही जीवन में स्थायी खुशी और सफलता का स्रोत हैं।
एक सर्वश्रेष्ठ, महान और सुहावनी घड़ी — प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1: 20 फरवरी 1984 की मुरली में बापदादा ने किस विशेष घड़ी का अनुभव साझा किया?
उत्तर: बापदादा ने उस श्रेष्ठ और सुहावनी घड़ी का अनुभव साझा किया जब हर बच्चा अपनी तकदीर तक पहुँच गया। अनाथ से सनाथ बने, अप्राप्त आत्माएँ प्राप्त हुईं और पत्थर से हीरा बनने जैसी रूपांतरणी क्षण घटित हुई। यह घड़ी व्यक्तिगत, संगठनात्मक और वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण थी।
प्रश्न 2: “तकदीर जागरण की घड़ी” का क्या अर्थ है?
उत्तर: यह वह घड़ी है जब बच्चे ने अपने बाबा को जाना, माना और कहा “मेरा बाबा।” इसी समय उनकी तकदीर जाग्रत हुई। यह अनुभव उन्हें अपने जीवन में बड़े परिवर्तन और आत्मिक उन्नति की याद दिलाता है।
प्रश्न 3: जीवन साथी बच्चों का संगठन किस प्रकार अद्भुत था?
उत्तर: बापदादा ने देखा कि सच्चे साथी, सेवा करने वाले और प्रीत निभाने वाले बच्चों का संगठन एकजुट था। उदाहरण के लिए, चारों ओर से एक बुलंद आवाज निकलना। यह संगठन केवल व्यक्तिगत नहीं बल्कि वैश्विक संदेश और सेवा को जोड़ने वाला था।
प्रश्न 4: बच्चों की लगन और सेवा की शक्ति किसने सराही?
उत्तर: बापदादा पोलैण्ड और पोर्चुगीज़ बच्चों की लगन और सेवा देखकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने यह दिखाया कि असंभव कार्य भी प्रेम और लगन से संभव हो जाता है, चाहे भाषा, दूरी या संसाधन बाधा हों।
प्रश्न 5: बापदादा द्वारा बच्चों को दिए गए पुरस्कार और स्मृति का क्या महत्व है?
उत्तर: बैज, गुलदस्ता और स्नेह के पुष्प बच्चों की सेवा और पुरुषार्थ का सम्मान हैं। यह न केवल व्यक्तिगत सफलता का प्रतीक हैं बल्कि दूसरों को भी सेवा और पुरुषार्थ की प्रेरणा देते हैं।
प्रश्न 6: डबल लाइट और निर्बन्धन मुक्त जीवन का क्या संदेश है?
उत्तर: श्रेष्ठ आत्माएँ, जो ऊँची स्थिति पर स्थित हैं, डबल लाइट और निर्बन्धन मुक्त जीवन का अनुभव करती हैं। वे समय, ऊर्जा और समूह प्रयासों का सदुपयोग करती हैं और दूसरों के लिए उदाहरण बनती हैं।
प्रश्न 7: इस मुरली से हम जीवन में क्या सीख सकते हैं?
उत्तर: यह मुरली हमें याद दिलाती है कि श्रेष्ठ पुरुषार्थ, सेवा, सच्चाई और सच्चे साथी बनने के प्रयास ही जीवन में स्थायी खुशी और सफलता का स्रोत हैं। प्रत्येक प्रयास और सेवा हमें व्यक्तिगत और संगठनात्मक स्तर पर उन्नति की ओर ले जाता है।
Disclaimer (डिस्क्लेमर)
यह वीडियो ब्रह्माकुमारी अव्यक्त मुरली (20 फरवरी 1984) पर आधारित है। इसमें व्यक्त विचार आध्यात्मिक शिक्षाओं और अनुभवों को साझा करने का उद्देश्य रखते हैं। इसका उद्देश्य आत्मिक विकास, सेवा और पुरुषार्थ को समझाना है, किसी धर्म या व्यक्ति के खिलाफ नहीं।
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