29-07-2025/आज की मुरली बड़े-बड़े अक्षरों में पढ़े सुनें और मंथन करे
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
डबल शान्ति का राज़ और ज्ञान के तीसरे नेत्र की प्राप्ति | आत्मा-परमात्मा का वास्तविक परिचय |
ओम् शान्ति।
यह कोई सामान्य अभिवादन नहीं, बल्कि आत्मा के स्वधर्म की पहचान है। यह वही डबल शान्ति है — आत्मा की भी और संसार की भी। बाबा हमें बार-बार याद दिलाते हैं कि हम शान्त स्वरूप आत्माएं हैं। इस धरती पर अवतरण का उद्देश्य है, स्वयं की और विश्व की शान्ति की स्थापना।
1. हमारा स्वधर्म है – शान्ति
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जब कोई कहता है “ओम् शान्ति”, तो वह आत्मा अपने स्वधर्म को स्मरण करती है।
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मन की शान्ति पाने के लिए लोग साधु-सन्तों के पास जाते हैं, लेकिन शान्ति आत्मा का स्वभाव है।
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मन और बुद्धि आत्मा के अंग हैं, जैसे शरीर के हाथ-पैर हैं।
मुरली बिंदु: “बच्चे, तुम अब शान्त स्वरूप बने हो।”
2. तीसरा नेत्र: ज्ञान की दृष्टि
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तीसरा नेत्र कोई शारीरिक आंख नहीं, बल्कि ज्ञान की दृष्टि है।
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इस नेत्र के द्वारा आत्मा और परमात्मा को पहचाना जाता है।
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इसनेत्र को तीजरी की कथा भी कहा गया है — अमरकथा की वास्तविकता।
मुरली (14 मार्च 2025): “बच्चे, यह ज्ञान का तीसरा नेत्र ही आत्मा को अन्धकार से निकालता है।”
3. बिन्दी स्वरूप आत्मा और परमात्मा
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आत्मा भी बिन्दी, परमात्मा भी बिन्दी।
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परमात्मा का नाम शिव ड्रामा अनुसार रखा गया है।
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उनका कोई शरीर नहीं है, इसलिए उनकी कोई सजावट नहीं।
मुरली: “हम आत्माओं और परमात्मा की कोई साज-सज्जा नहीं है – हम हैं बिन्दी।”
4. मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई
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यह है सबसे ऊँची पढ़ाई – मनुष्य से देवता बनने की।
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जैसे ICS अफसर बनते हैं पढ़ाई से, वैसे ही तुम चक्रवर्ती राजा बनते हो इस ईश्वरीय ज्ञान से।
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अब तुम आत्मा बनकर परमात्मा से श्रीमत ले रहे हो।
मुरली: “बच्चे, श्रीमत से ही तुम ब्राह्मण से देवता बनते हो।”
5. सत्य युग का फूलों का बगीचा
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सतयुग को कहा जाता है गार्डन ऑफ फ्लावर्स।
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उसकी स्थापना अभी की जा रही है।
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तुम ब्राह्मण माली हो, और बाप बागवान।
मुरली: “हे बागवान आओ, बगीचा बनाओ – यह गीत आत्माओं द्वारा गाया जाता है।”
6. माया – बिल्ली जो दीप बुझा देती है
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माया रूपी बिल्ली हमारी ज्ञान-ज्योति बुझाने का प्रयास करती है।
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देह-अभिमान, मोह, वासना — ये सभी माया के हथियार हैं।
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मोह में आकर आत्मा सेवा से हट जाती है।
मुरली: “बिल्ली दीपक बुझा देती है जैसे, वैसे माया तुम्हारी स्थिति गिरा देती है।”
7. नारायणी नशा और आत्म-सम्मान
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“हम विश्व के मालिक बन रहे हैं” — यह नशा और स्मृति बनी रहनी चाहिए।
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श्रीकृष्ण को इतनी महिमा क्यों? क्योंकि वह नम्बरवन कर्मातीत अवस्था को पाते हैं।
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तुम भी फूल बन रहे हो — ब्रह्मा-सरस्वती किंग और क्वीन ऑफ फ्लावर।
मुरली: “बच्चे, तुम बन रहे हो श्रीकृष्ण समान। सत्यनारायण की कथा तुम्हारे लिए ही है।”
8. सच्चा पूजन: आत्मा की पवित्रता
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भक्ति मार्ग में फूल चढ़ाए जाते हैं, पर वास्तव में आत्मा की पवित्रता ही सच्चा पूजन है।
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विकारी शरीर में सच्ची पूजा संभव नहीं।
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इसलिए पहले आत्मा को सतोप्रधान बनाना है।
मुरली: “बच्चे, पवित्रता ही सबसे बड़ी पूजा है।”
9. राजधानी यहीं बनती है – आत्मा की श्रेष्ठता से
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स्वर्ग की राजधानी अभी स्थापन हो रही है।
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हर आत्मा अपनी स्थिति अनुसार नम्बर प्राप्त करती है – कोई अक, कोई गुलाब, कोई फूल।
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बाप की श्रीमत से तुम राजा के भी राजा बनते हो।
मुरली: “राजधानी यहाँ ही बनती है – अब पुरुषार्थ करो।”
10. निष्कर्ष: आत्म स्मृति और बाप की याद ही मूल
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इस ज्ञान का सार – बाप और वर्से को याद करना है।
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आत्मा पावन बनेगी तो शरीर भी पावन बनेगा।
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यही तीसरे नेत्र की उपलब्धि है – अज्ञान से ज्ञान की ओर यात्रा।
मुरली: “बच्चे, मनमनाभव – बाप को याद करते रहो, यही तपस्या है।”
शीर्षक: डबल शान्ति का राज़ और ज्ञान के तीसरे नेत्र की प्राप्ति | आत्मा-परमात्मा का वास्तविक परिचय |
प्रश्न 1: “ओम् शान्ति” बोलने का आध्यात्मिक अर्थ क्या है?
उत्तर:“ओम् शान्ति” आत्मा का स्वधर्म है। यह केवल एक अभिवादन नहीं, बल्कि आत्मा की स्मृति है कि मैं आत्मा हूँ और मेरा स्वभाव शान्ति है।
मुरली बिंदु: “बच्चे, तुम अब शान्त स्वरूप बने हो।”
प्रश्न 2: ज्ञान का तीसरा नेत्र क्या है और यह किसे मिलता है?
उत्तर:ज्ञान का तीसरा नेत्र आत्मा की ज्ञान दृष्टि है, जिससे आत्मा परमात्मा को पहचानती है। यह नेत्र परमात्मा शिव बाबा द्वारा ही प्राप्त होता है।
मुरली (14 मार्च 2025): “बच्चे, यह ज्ञान का तीसरा नेत्र ही आत्मा को अन्धकार से निकालता है।”
प्रश्न 3: आत्मा और परमात्मा का वास्तविक स्वरूप क्या है?
उत्तर:दोनों बिन्दी रूप हैं। आत्मा सूक्ष्म बिन्दी है और परमात्मा भी बिन्दी स्वरूप है जिसका नाम शिव है। उनकी कोई भौतिक सजावट नहीं होती।
मुरली: “हम आत्माओं और परमात्मा की कोई साज-सज्जा नहीं है – हम हैं बिन्दी।”
प्रश्न 4: परमात्मा से मिलने वाली यह पढ़ाई क्या बनाती है?
उत्तर:यह पढ़ाई आत्मा को मनुष्य से देवता बनाती है। ब्रह्मा की संतान ब्राह्मण बनकर, श्रीमत पर चलकर आत्मा देवता बनती है।
मुरली: “बच्चे, श्रीमत से ही तुम ब्राह्मण से देवता बनते हो।”
प्रश्न 5: सतयुग को फूलों का बगीचा क्यों कहा जाता है?
उत्तर:सतयुग में आत्माएं सम्पूर्ण पवित्र और दिव्य होती हैं। इसलिए उसे गार्डन ऑफ फ्लावर्स कहा जाता है। ब्राह्मण आत्माएं इस समय वह बगीचा तैयार कर रही हैं।
मुरली: “हे बागवान आओ, बगीचा बनाओ – यह गीत आत्माओं द्वारा गाया जाता है।”
प्रश्न 6: माया को ‘बिल्ली’ क्यों कहा गया है?
उत्तर:माया आत्मा की ज्ञान-ज्योति को बुझाने वाली है, जैसे बिल्ली दीपक को बुझा देती है। देह-अभिमान, मोह, वासना — यही माया के मुख्य रूप हैं।
मुरली: “बिल्ली दीपक बुझा देती है जैसे, वैसे माया तुम्हारी स्थिति गिरा देती है।”
प्रश्न 7: नारायणी नशा क्या है और यह क्यों ज़रूरी है?
उत्तर:यह स्मृति कि हम विश्व के मालिक बन रहे हैं, यही आत्म-सम्मान है। श्रीकृष्ण की सुंदरता और महिमा इस नशे के चरम को दर्शाती है।
📖 मुरली: “बच्चे, तुम बन रहे हो श्रीकृष्ण समान। सत्यनारायण की कथा तुम्हारे लिए ही है।”
प्रश्न 8: सच्चा पूजन किसे कहा जाता है?
उत्तर:जब आत्मा पवित्र बन जाती है, तभी उसका सच्चा पूजन संभव है। फूलों की चढ़ाई नहीं, आत्मा की पवित्रता ही सच्चा पूजन है।
मुरली: “बच्चे, पवित्रता ही सबसे बड़ी पूजा है।”
प्रश्न 9: आत्मा का दर्जा नम्बरवार कैसे बनता है?
उत्तर:हर आत्मा की स्थिति और पुरुषार्थ अनुसार उसका दर्जा तय होता है – कोई अक, कोई गुलाब, कोई किंग ऑफ फ्लावर। राजधानी इसी धरती पर बनती है।
मुरली: “राजधानी यहाँ ही बनती है – अब पुरुषार्थ करो।”
प्रश्न 10: इस ज्ञान का अंतिम और मूल उद्देश्य क्या है?
उत्तर:स्वंय को आत्मा समझना और परमात्मा शिव बाबा को याद करना — यही आत्मा की यात्रा है अज्ञान से ज्ञान की ओर।
मुरली: “बच्चे, मनमनाभव – बाप को याद करते रहो, यही तपस्या है।”
DISCLAIMER:
यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ संस्था द्वारा दिए गए आध्यात्मिक ज्ञान पर आधारित है। इसमें प्रस्तुत प्रश्नोत्तरी और उत्तर मुरली शिक्षाओं को सरल और समझने योग्य रूप में दर्शाते हैं।
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