(42) “End the wave of Sahaj Shabd and become the embodiment of realization”

(Part-1)
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अव्यक्त मुरली-(42)10-11-1983 “सहज शब्द की लहर को समाप्त कर साक्षात्कार मूर्त बनो”

10-11-1983 “सहज शब्द की लहर को समाप्त कर साक्षात्कार मूर्त बनो”

(मीटिंग के प्रति)

आज सर्व शक्तियों का सागर बाप शक्ति सेना को देख रहे हैं। हर एक के मस्तक बीच त्रिशूल अर्थात् त्रिमूर्ति स्मृति की स्पष्ट निशानी दिखाई देती है। शक्ति की निशानी त्रिशूल दिखाते हैं। तो हरेक त्रिशूलधारी शक्ति सेना हो ना। बाप-दादा और आप। यह त्रिमूर्ति सदा स्पष्ट रुप में रहती है वा कभी मर्ज, कभी इमर्ज होती है? बापदादा के साथ-साथ मैं श्रेष्ठ शक्तिशाली आत्मा हूँ, यह भी याद रहता है? इसी त्रिमूर्ति स्मृति से शक्ति में शिव दिखाई देगा। कई मन्दिरों में बापदादा के कम्बाइण्ड यादगार शिव की प्रतिमा के साथ उसी प्रतिमा में मनुष्य आकार भी दिखाते हैं। यह बापदादा का कम्बाइण्ड यादगार है। साथ-साथ शक्ति भी दिखाते हैं। तो इस त्रिमूर्ति स्मृति स्वरुप स्थिति से सहज ही साक्षात्कार मूर्त बन जायेंगे। अब सेवाधारी मूर्त, भाषण कर्ता मूर्त, मास्टर शिक्षक बने हो। अभी साक्षात मूर्त बनना है। सहज योगी बने हो लेकिन श्रेष्ठ योगी बनना है। तपस्वी बने हो, महातपस्वी और बनना है।

आजकल सेवा कहो, तपस्या कहो, पढ़ाई कहो, पुरुषार्थ कहो, पवित्रता की सीमा कहो, किस लहर में चल रही है, जानते हो? सहज योगी के “सहज” शब्द की लहर में चल रही है। लेकिन लास्ट समय के प्रमाण वर्तमान मनुष्य आत्माओं को वाणी की नहीं लेकिन श्रेष्ठ वायब्रेशन, श्रेष्ठ वायुमण्डल, जिससे साक्षात्कार सहज हो जाए इसी की आवश्यकता है। अनुभव भी साक्षात्कार समान है। सुनाने वाले तो बहुत है जिन्हों को सुनाते हो वो भी सुनाने में कम नहीं। लेकिन कमी है साक्षात्कार कराने की। वह नहीं करा सकते। यही विशेषता, यही नवीनता, यही सिद्धि आप श्रेष्ठ आत्माओं में है। इसी विशेषता को स्टेज पर लाओ। इसी विशेषता के आधार पर सभी वर्णन करेंगे कि हमने देखा, हमने पाया। हमने सिर्फ सुना नहीं लेकिन साक्षात बाप की झलक अनुभव की। फलानी बहन वा फलाना भाई बोल रहे थे, यह अनुभव नहीं। लेकिन इन्हीं द्वारा कोई अलौकिक शक्ति बोल रही थी। जैसे आदि में ब्रह्मा को साक्षात्कार हुआ विशेष शक्ति का, तो क्या वर्णन किया! यह कौन था, क्या था! ऐसे सुनने वालों को अनुभव हो कि यह कौन थे? सिर्फ प्वॉइंट्स नहीं सुनें लेकिन मस्तक बीच प्वॉइंट ऑफ लाइट दिखाई दे। यह नवीनता ही सभी की पहचान की आंख खोलेगी। अभी पहचान की आंख नहीं खुली है। अभी तो दूसरों की लाइन में आपको भी ला रहे हैं। जैसे यह-यह हैं वैसे यह भी हैं। जैसे वह भी यह कहते हैं वैसे यह भी कहते हैं। यह भी करते हैं। लेकिन यह वो ही हैं जिसका हम आह्वान करते हैं, जिसका इन्तजार कर रहे हैं। अभी इस अनुभूति की आवश्यकता है। इसका साधन है सिर्फ एक शब्द को चेन्ज करो। सहज योगी की लहर को चेन्ज करो। सहज शब्द प्रवृत्ति में नहीं यूज़ करो। लेकिन सर्व सिद्धि स्वरुप बनने में यूज़ करो। श्रेष्ठ योगी की लहर, महातपस्वी मूर्त की लहर, साक्षात्कार मूर्त बनने की लहर, रुहानियत की लहर, अब इसकी आवश्यकता है। अब यह रेस करो। सन्देश कितनों को दिया, यह तो 7 दिन के कोर्स वालों का काम है। वो भी यह सन्देश दे सकते हैं। लेकिन यह रेस करो अनुभव कितनों को कराया। अनुभव कराना है, अनुभवी बनाना है। यह लहर अभी चारों ओर होनी चाहिए। समझा।

84 का साल आ रहा है। 84 घण्टों वाली शक्ति मशहूर है। सभी देवियों की महिमा है। 84 में घण्टा तो बजायेंगे ना तब तो गायन हो, 84 का घण्टा है। अभी आदि समान साक्षात्कार की लहर फैलाओ। धूम मचाओ। आप साक्षात बाप बनो तो साक्षात्कार आप ही हो जायेगा। अभी थोड़ा-थोड़ा अनुभव करते हैं लेकिन यह चारों ओर लहर फैलाओ। जैसे मेले की भी लहर फैलाते हो ना? मेले बहुत किये हैं, समारोह भी बहुत किये। अभी मिलन समारोह मनाओ। नये साल के लिए नया प्लैन बनाने आये हो। सबसे पहला प्लैन – स्वयं को सर्व कमजोरियों से प्लेन बनाओ, तब तो साक्षात्कार होगा। अगर इस मीटिंग में यह प्लैन प्रैक्टिकल में आ जाए तो सेवा आपके चरणों में झुकेगी। अभी बापदादा की यह आश पूरी करनी है। आश अभी पूरी हुई नहीं है। मीटिंग तो हो जाती है। बापदादा के पास चार्ट तो सबका है ना। सिर्फ रिगार्ड रखने के कारण बापदादा कहते नहीं हैं। अच्छा, आज तो थोड़ा मिलने आये हैं, चार्ट बताने नहीं आये हैं। (दादी को) आपकी सखी (दीदी) कहाँ हैं? गर्भ में? निमित्त गर्भ में है लेकिन अभी भी सेवा की परिक्रमा दे रही है। जैसे ब्रह्मा बाप के साथ साकार स्वरुप में जगत अम्बा के बाद साथी रही। वैसे अभी भी अव्यक्त ब्रह्मा के साथ है। सेवा में साथीपन का पार्ट बजा रही है। निमित्त कर्मेन्द्रियों का बन्धन है लेकिन विशेष सेवा का बन्धन है। जैसे यज्ञ की स्थापना की कारोबार पहले विशेष रुप में जगत अम्बा ने सम्भाली। जगत अम्बा के बाद विशेष निमित्त रुप में इसी आत्मा (दीदी) की जवाबदारी रही। साथी भले और भी रहे लेकिन विशेष स्टेज पर और साकार ब्रह्मा के साथ पार्ट में रही। अभी भी ब्रह्मा बाप और दीदी की आपस में रुहरिहान, मनोरंजन और सेवा के भिन्न-भिन्न पार्ट चलते रहते हैं। नई सृष्टि की स्थापना में भी विशेष ब्रह्मा के साथ-साथ अनन्य आत्माओं का अभी जोर-शोर से पार्ट चल रहा है! जैसे साकार दीदी के विशेष संस्कार, सेवा के प्लैन को प्रैक्टिकल में लाने का, उमंग-उत्साह दिलाने का रहा। वैसे अभी भी वो ही संस्कार नई दुनिया की स्थापना के कार्य के अर्थ निमित्त बने हुए ग्रुप को और तीव्रगति देने का पार्ट चल रहा है। दीदी का विशेष बोल याद है? उमंग-उत्साह में लाने के लिए विशेष शब्द क्या थे? हमेशा यही शब्द रहे कि कुछ और नया करो। अभी क्या हो रहा है? बार-बार पूछती थी, नवीनता क्या लाई है? ऐसे भी अव्यक्त ब्रह्मा से बार-बार इसी शब्दों से रुहरिहान करती थी। एडवान्स पार्टी में भी उमंग-उत्साह ला रही है। अभी तक क्या क्या किया है, क्या हो रहा है। वो ही संस्कार प्रैक्टिकल में ला रही है। किसको भी बैठने नहीं देती थी ना। एडवान्स पार्टी को भी अभी स्टेज पर लाने का बाण भर रही है। कन्ट्रोलर के संस्कार थे ना। अभी एडवान्स पार्टी का कन्ट्रोलर है। सेवा के संस्कार अभी भी इमर्ज रुप में है। समझा! अभी दीदी कहाँ है? अभी तो विश्व का चक्कर लगा रही हैं। जब सीट ले लेंगी तो बता देंगे। अभी वह भी आपको सहयोग देने के बहुत बड़े-बड़े प्लैन्स बना रही है। अभी देरी नहीं लगेगी। अच्छा।

ऐसे सदा श्रेष्ठ योगी, सदा महान तपस्वी मूर्त, साक्षात बाप बन बाप का साक्षात्कार कराने वाले चारों ओर “हमने देखा हमने पाया” इस प्राप्ति की लहर फैलाने वाले, ऐसे महान तपस्वी मूर्तों को देश-विदेश के सर्व स्नेही सेवा में मगन रहने वाले सर्व बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

मीटिंग वालों से:-

मीटिंग तो हो ही गई। मीटिंग होती है, विश्व को बाप के समीप लाने के लिए। सिर्फ सन्देश देने के लिए नहीं। समीप लाने के संग का रंग लगता है ना। जितना बाप के समीप आते हैं उतना संग का रंग लगता है। जहाँ सुनना है वहाँ कुछ सुनना होता, कुछ भूलना होता लेकिन जो समीप आ जाते वो बाप के समीप होने से रुहानी रंग में रंगे रहते हैं। तो अभी क्या सेवा है? समीप लाने की। सन्देश तो दे दिया। मैसेन्जर बनके मैसेज देने का पार्ट तो बजाया। लेकिन अभी क्या बनना है? शक्तियों को सदैव किस रुप में याद करते हैं? सब शक्ति सेना हो ना! शक्तियों को हमेशा माँ के रुप में याद करते हैं, पालना लेने के संकल्प से याद करते हैं। मैसेज तो बहुत दिया और अभी और भी देने वाले तैयार हो गये, अभी चाहिए पालना वाले। जो विशेष निमित्त हैं उन्हों का कार्य अभी हर सेकण्ड बाप की पालना में रहना और सर्व को बाप की पालना देना। जैसे छोटे बच्चे होते हैं तो सदा पालना में रहने के कारण कितने खुश रहते हैं। कुछ भी हो लेकिन पालना के नीचे होने के कारण कितने खुश रहते हैं। ऐसे आप सभी सर्व आत्माओं को प्रभु पालना के अन्दर चलने का अनुभव कराओ। वह समझें कि हम प्रभु की पालना के अन्दर चल रहे हैं। यह हमें प्रभु के पालना की दृष्टि दे रहे हैं। तो अभी पालना की आवश्यकता है। तो पालना करने वाले हो या मैसेन्जर हो? मैसेन्जर तो आजकल बहुत कहलाने लग पड़े हैं। मैसेन्जर बनना बहुत कॉमन बात है। लेकिन अभी जो भी आयें वह ऐसे अनुभव करें कि हम ईश्वरीय पालना के अन्दर आ गये। इसी को ही कहा जाता है सम्बन्ध में लाना।

सभी अनन्य हैं ना। अनन्य अर्थात् जो अन्य न कर सकें वह करके दिखाने वाले। जो सब करते वो ही किया तो बड़ी बात नहीं। पालना का अर्थ है उन्हों को शक्तिशाली बनाना, उन्हों के संकल्पों को, शक्तियों को इमर्ज करना, उमंग-उत्साह में लाना। हर बात में शक्ति रुप बनाना। इसी रुप की पालना अब ज्यादा चाहिए। चल रहे हैं, लेकिन शक्तिशाली आत्मायें बनकर चलें वो अभी आवश्यक है। जो कोई नये भी आवें तो ईश्वरीय शक्ति की अनुभूति जरुर करें। वाणी की शक्ति की अनुभूति तो हो रही है लेकिन यहाँ ईश्वरीय शक्ति है, वह अनुभव कराओ। स्टेज पर आते हो तो याद रहता है – भाषण करना है लेकिन यह ज्यादा याद रहे, भाषण निमित्त है, ईश्वरीय शक्ति की भासना देनी है। वाणी में भी ईश्वरीय शक्ति की भासना आवे। इसको कहा जाता है न्यारा-पन। स्पीच बहुत अच्छी की तो यह स्पीकर के रुप में देखा ना। यह ईश्वरीय अलौकिक आत्मायें हैं, इस रुप में देखें। यह महसूसता करानी है। यह भासना ही ईश्वरीय बीज डाल देती है। फिर वह बीज निकल नहीं सकता। एक सेकण्ड का भी किसको अनुभव हो जाता है तो वह अन्त तक मेहनत नहीं लेता। ईश्वरीय झलक का अनुभव जिसने आते ही किया उनका चलना, सेवा करना वह और होता है। जो सिर्फ सुनकर प्रभावित होते उनका चलना और होता है, जो सिर्फ प्यार में ही चलते रहते उनका चलना और है। भिन्न-भिन्न प्रकार हैं ना। तो अभी पहले स्वयं को सदा ईश्वरीय पालना में अनुभव करो तब औरों को अनुभव हो। सेवा में चल रहे हैं लेकिन सेवा भी पालना है। ईश्वरीय पालना में चल रहे हैं। सेवा शक्तिशाली बनाती है तो यह भी ईश्वरीय पालना है ना। लेकिन यह इमर्ज रहे। यह दृढ़ संकल्प करना चाहिए। अनन्य अर्थात् बाप समान सैम्पल। अच्छा।

धर्म नेतओं की सेवा का प्लैन:-

धर्म नेताओं के लिए विशेष वह रूप चाहिए क्योंकि धर्म की बातों में तो वे भी होशियार हैं। प्यार से सुनते भी हैं लेकिन अपने में प्रैक्टिकल की कमी महसूस करते हैं। यह साक्षात्कार करें जो आज सुनाया, वह प्रैक्टिकल अनुभव करें कि हमारे सामने यह कोई साधारण रूप नहीं है तब वह झुकें। अनुभव के पीछे झुक जाते हैं। वाणी से नहीं। वह तो कहेंगे आप भी बहुत अच्छा कार्य करते हो, आपको भी आशीर्वाद मिलती रहे। यह कहकर खुश कर देंगे, लेकिन समझें यह कोई विशेष हैं। जिसमें जो कमजोरी होती है उनके आधार पर उसको तीर लगाना – यह है विजय पाना। शास्त्रों में भी गायन है देवताओं ने विजय प्राप्त की तब, जब उन्हें कमज़ोरी का पता पड़ा यह भी आध्यात्मिक की बात है। तो धर्म नेतायें भी आयेंगे जरूर लेकिन ऐसी कोई नवीनता देखेंगे तब। अभी सिर्फ कहते हैं कि ज्ञान अच्छा है। आप भी ठीक हैं, हम भी ठीक हैं लेकिन उन्हीं के मुख से जब यह निकले कि यह एक ही रास्ता है। अनेक रास्ते हैं उसमें आपका भी एक रास्ता है, यह बदल जाये। जब यह टच हो कि यहाँ से ही मुक्ति और जीवन मुक्ति मिल सकती है तब झुकें। तो अभी कोई नवीनता होनी चाहिए।

प्रवृत्ति में बहुत लग गये हो, लेकिन जैसे औरों को सुनाते हो – प्रवृत्ति में भी रहना है और प्रवृत्ति में रहते निवृत्त भी रहना है। तो यही पाठ अपने को रोज पढ़ाओ। प्रवृत्ति तो बढ़नी ही है लेकिन उसमें रहते निवृत्त रहना यह आवश्यकता है। इसमें थोड़ा अटेन्शन और अण्डरलाइन करना पड़े। हरेक अपनी-अपनी सेवा में बिजी हो गये हो लेकिन बेहद विश्व का नशा चाहिए। यह सब सम्भालते हुए बुद्धि बेहद सेवा के लिए फ्री होनी चाहिए। तन-मन-धन, बुद्धि सब रचना में ज्यादा लगी रहती है। जैसे साकार बाप को देखा, कारोबार चलाते भी सदा अपने को फ्री रखा। कभी भी बिजी होने की रूपरेखा चेहरे पर नहीं आई। चाहे ज़िम्मेवारी ब्राह्मण परिवार की रही लेकिन बुद्धि में क्या था? बेहद! शक्ति देनी है, पालना करनी है। आत्माओं को जगाना है, यही धुन रही। तो अभी वह होना चाहिए। उसकी कमी है। अनन्य बच्चों को मिलकर ऐसा वातावरण बनाना है। हरेक बाप समान लाइट हाउस हो। जहाँ जावे उनको लाइट मिले, शक्ति मिल, उमंग-उत्साह मिले, जो काम साधारण आत्मायें करती वह नहीं करना है। साकार बाप का बोल, संकल्प, दृष्टि, वृत्ति न्यारी रहीं ना। साधारण नहीं। तो ऐसी स्टेज बनाओ। इसके लिए सेवा रूकी हुई है। खर्चा ज्यादा, मेहनत ज्यादा निकलते कितने हैं!

अभी समय के प्रमाण एडवान्स पार्टी भी जोर कर रही है तो साकार वालों को तो और ज्यादा तेज होना चाहिए। होना सब अचानक है, डेट नहीं बताई जायेगी। पेपर जरूर आने हैं। आप लोगों को थॉट्स को चेक करने वाले भी आयेंगे। पेपर लेने आयेंगे। जितनी प्रत्यक्षता होगी उतना यह सब पेपर्स आयेंगे। इस योग और उस योग, इस ज्ञान और उस ज्ञान में क्या अन्तर है वह लाइफ की प्रैक्टिकल की चेकिंग करेंगे। वाणी की नहीं। उसके लिए पहले से ही इतनी तैयारी चाहिए। 84 में कुछ न कुछ तो होगा ही। पेपर आयेंगे। आवाज फैलाने की तैयारी का यही साधन है। जैसे शुरु-शुरु में अभ्यास करते थे, चल रहे हैं लेकिन स्थिति ऐसी हो जो दूसरे समझें कि यह कोई लाइट जा रही है। उनको शरीर दिखाई न देवे। जब पहले-पहले मित्र-सम्बन्धियों के पास गये तो क्या पेपर था, वह शरीर को न देखें, लाइट देखें। बेटी न देखें लेकिन देवी देखें। यह पेपर दिया ना। अगर सम्बन्ध के रूप से देखा, बेटी-बेटी कहा तो फेल। तो ऐसा अभ्यास चाहिए। समय तो बहुत खराब आ रहा है लेकिन आपकी ऐसी स्थिति हो जो दूसरों को सदैव लाइट का रूप दिखाई दे यही सेफ्टी है। अन्दर आवें और लाइट का किला देखें। अपने ईश्वरीय सेवा में लगने वाली सम्पत्ति भी ऐसी ही क्यों जावें, उन्हें अलमारी नहीं दिखाई दे लेकिन लाइट का किला देखें। इतना अभ्यास चाहिए। शक्ति रूप की झलक बढ़ानी चाहिए। साधारण नहीं दिखाई दे, यह लक्ष्य रहे। वार तो कई प्रकार के होंगे – आत्माओं के वार होंगे, बुरी दृष्टि वालों के वार होंगे, कैलेमिटीज के वार होंगे, बीमारियों का वार होगा लेकिन इस सबसे बचने का साधन है – अनन्य बनना। अर्थात् जो अन्य न कर सकें वह करना। सिर्फ यह याद रखो कि मैं अनन्य हूँ तो भी प्यारे और न्यारे रहेंगे। अच्छा।

विदेशी बच्चों को याद-प्यार देते हुए:-

सभी डबल विदेशी बच्चों को विशेष याद प्यार बापदादा पदमगुणा रिटर्न में दे रहे हैं। सभी ने जो भी पत्र और समाचार लिखे हैं उसकी रिटर्न में सभी बच्चों को पुरुषार्थ तीव्र करने की मुबारक हो और साथ-साथ पुरुषार्थ करते अगर कोई साइडसीन आ जाती है तो उसमें घबराने की कोई बात नहीं है। जो भी साइडसीन आती है उसको याद और खुशी से पार करते चलो। विजय वा सफलता तो आप सबका जन्मसिद्ध अधिकार है। साइडसीन पार किया और मंजिल मिली। इसलिए कोई भी बड़ी बात को छोटा करने के लिए स्वयं बड़े ते बड़ी स्टेज पर स्थित हो जाओ तो बड़ी बात भी स्वयं छोटी स्वत: हो जायेगी। नीचे की स्थिति में रहकर और ऊपर की चीज को देखते हो तब बड़ी लगती है। तो ऊंची स्टेज पर स्थित होकर के किसी भी बड़ी चीज को देखो तो छोटी अनुभव होगी। जब भी कोई परिस्थिति आती है या किसी भी प्रकार का विघ्न आता है तो अपनी श्रेष्ठ स्थिति में, ऊंचे ते ऊंची स्थिति में स्थित हो जाओ। बाप के साथ बैठ जाओ तो बाप के संग का रंग भी सहज लग जायेगा। साथ भी मिल जायेगा। और ऊंची स्टेज के कारण सब बातें बहुत छोटी-सी अनुभव होंगी, इसलिए घबराओ नहीं। दिलशिकस्त नहीं हो लेकिन सदा खुशी के झूले में झूलते रहो तो सदा ही सफलता आपके सामने आयेगी। सफलता मिलेगी या नहीं यह सोचना भी नहीं पड़ेगा। लेकिन सफलता स्वयं ही आपके सामने आयेगी। प्रकृति सफलता का हार स्वयं ही पहनायेंगी। परिस्थिति बदलकर विजय का हार हो जायेगी। इसलिए बहुत हिम्मत वाले हैं, उमंग वाले हैं, उत्साह में रहने वाले हैं, यह बीच-बीच में थोड़ा-सा होता भी है तो उसको सोचो नहीं। समय बीत गया, परिस्थिति बीत गई फिर उसका सोचना व्यर्थ हो जाता है। इसलिए जैसे समय बीत गया वैसे अपनी बुद्धि से भी बीती सो बीती, जो बीती सो बीती करते हैं वह सदा ही निश्चिन्त रहते हैं। सदा ही उमंग-उत्साह में रहते हैं इसलिए बापदादा विशेष ऐसे उमंग-उत्साह में रहने वाले, हिम्मत वाले बच्चों को विशेष अमृतवेले याद करते हैं। और विशेष शक्ति देते हैं, उसी समय अपने को पात्र समझ वह शक्ति लेंगे तो बहुत ही अच्छे अनुभव होंगे।

अमृतवेले सुस्ती आ जाती है:- खुशी की प्वॉइन्ट का मनन कम करते हैं। अगर मनन सारा दिन चलता रहे तो अमृतवेले भी वही मनन किया हुआ खजाना सामने आने से खुशी होगी तो सुस्ती नहीं आयेगी। लेकिन सारा दिन मनन कम होता है उस समय मनन करने की कोशिश करते हैं तो मनन नहीं होता है क्योंकि बुद्धि फ्रेश नहीं होती है। फिर न मनन होता, न अनुभव होता, फिर सुस्ती आती है। अमृतवेले को शक्तिशाली बनाने के लिए सारे दिन में भी श्रीमत मिलती है उसी प्रमाण चलना बहुत आवश्यक है। तो सारा दिन मनन करते चलो। ज्ञान रत्नों से खेलते चलो तो वही खुशी की बातें याद आने से नींद चली जायेगी और खुशी में ऐसे ही अनुभव करेंगे जैसे अभी प्राप्ति की खान खुल गई। तो जहाँ प्राप्ति होती हैं वहाँ नींद नहीं आती है। जहाँ प्राप्ति नहीं वहाँ नींद आती वा थकावट होती है वा सुस्ती आती है। प्राप्ति के अनुभव में रहो, उसका कनेक्शन है सारे दिन के मनन पर। अच्छा!

जिन्होंने भी याद-प्यार का सन्देश भेजा है उन्हों को सम्मुख तो मिलना ही है लेकिन अभी जो भी दूर बैठे भी बापदादा सम्मुख देख रहे हैं और सम्मुख देखकर ही बात कर रहे हैं। अभी भी सम्मुख हो फिर भी सम्मुख रहेंगे। सभी को नाम सहित, समाचार के रेस्पान्ड सहित यादप्यार। सदा तीव्र उमंग, तीव्र पुरुषार्थ में रहना है और औरों को भी तीव्र पुरुषार्थ के वायब्रेशन देते हुए वायुमण्डल ही तीव्र पुरुषार्थ का बनाना है। पुरुषार्थ नहीं, ‘तीव्र पुरुषार्थ’। चलने वाले नहीं, उड़ने वाले। चलने का समय पूरा हुआ अब उड़ो और उड़ाते चलो। अच्छा!

84 के कॉन्फ्रेन्स की सफलता के लिए:-

जितना हो सके साइलेन्स का वातावरण रहे, ईश्वरीय ज्ञान है, ईश्वर का स्थान है, यह अनुभव करके जायें। टोटल ऐसा वातावरण हो, अनुभूति कराने का लक्ष्य रहे। प्वॉइंट्स की चटाबेटी में न जाकर, बोलते-बोलते अनुभव कराते जाओ। लक्ष्य रखो सभी के मुख से कहलाना है कि यह ईश्वरीय रास्ता है। ईश्वर आ गया है। बहुत अच्छा है, यह तो कहते हैं लेकिन ईश्वर पढ़ा रहा है, यह कहें। ज्ञान अच्छा है लेकिन ज्ञानदाता कौन है, उसको अनुभव करें। अभी यह फाउन्डेशन डालो। जब बीज ऊपर आ जाए तब समाप्ति हो। बीज ऊपर नहीं आया तो वृक्ष परिवर्तन कैसे हो। जब इस स्थान पर अपनी रुचि से आ रहे हैं तो स्थान की जो विशेषता है वह देखें, उसका अनुभव करें। आप उनकी व्यु (राय/विचार) को देखकर अपनी व्यु चेन्ज नहीं करो लेकिन आपकी व्यु को देखकर वह अपनी व्यु चेन्ज करें – ऐसा प्लेन बनाओ। जब लक्ष्य रहता कि भाषण करना है तो प्वॉइंट्स तरफ अटेन्शन जाता लेकिन बाप को प्रत्यक्ष करने का लक्ष्य हो तो बाप ही दिखाई देगा। जैसा लक्ष्य होगा वैसी रिजल्ट निकलेगी। अच्छा।

अध्याय : सहज शब्द की लहर समाप्त कर – साक्षात्कार मूर्त बनो

(10 नवम्बर 1983, अव्यक्त मुरली, मीटिंग विशेष)


 1. शक्ति सेना और त्रिशूल का वास्तविक अर्थ

बापदादा आज सर्व शक्तियों के सागर के रूप में शक्ति सेना को देख रहे हैं।

  • हर आत्मा के मस्तक पर त्रिशूल (त्रिमूर्ति स्मृति) की स्पष्ट निशानी दिखाई देती है।

  • मंदिरों में भी शिव की प्रतिमा के साथ-साथ मानव आकृति का चित्रण – यह बापदादा के कम्बाइन्ड रूप का स्मारक है।

उदाहरण:
जैसे किसी देवी को हमेशा त्रिशूल के साथ दिखाया जाता है, वैसे ही हमें भी सदा अपनी त्रिमूर्ति स्मृति (बाप, मैं आत्मा और शक्ति का कार्य) को इमर्ज रखना है।

2. सहज योगी से श्रेष्ठ योगी बनने का लक्ष्य

आजकल सेवा, तपस्या और पढ़ाई “सहज” शब्द की लहर में चल रही है।
लेकिन लास्ट समय में वाणी की नहीं बल्कि श्रेष्ठ वायब्रेशन की आवश्यकता है

  • सुनाने वाले तो अनेक हैं,

  • पर कमी है – साक्षात्कार कराने की।

सिर्फ स्पीकर न बनें, बल्कि ऐसा अनुभव कराएं कि

  • आत्मा बाप की झलक देखे।

  • शब्दों से अधिक वायब्रेशन असर करे।

उदाहरण:
जैसे ब्रह्मा बाबा को प्रारम्भ में साक्षात्कार हुआ तो वे चकित हो गये – “यह कौन शक्ति है?”
वैसा ही अनुभव श्रोताओं को भी होना चाहिए।


 4. नवीनता और पहचान की आँख

अभी दुनिया हमें साधारण आत्माओं की लाइन में रखती है।

  • “ये भी कहते हैं, वो भी कहते हैं।”
    लेकिन पहचान की आँख तब खुलेगी जब वे अनुभव करेंगे – यही वह शक्ति है जिसका हमने आह्वान किया था।


 5. सेवा में नवीनता – अनुभव कराना

  • संदेश देना तो 7 दिन के कोर्स वाले भी कर सकते हैं।

  • लेकिन आप श्रेष्ठ आत्माओं का कार्य है – अनुभव कराना।

उदाहरण:
जैसे मेले में भीड़ अपने आप खिंचती है, वैसे ही आपके वायब्रेशन से आत्माएँ खिंचें।


 6. पालना देने वाली शक्ति

बापदादा ने विशेष बल दिया –

  • अब मैसेंजर नहीं, बल्कि पालना देने वाले बनो।

  • पालना का अर्थ है – आत्माओं को शक्तिशाली बनाना, उमंग-उत्साह में लाना।


 7. धर्म नेताओं की सेवा

  • धर्म की बातें तो धर्मगुरु भी जानते हैं।

  • वे झुकेंगे तभी जब उन्हें अनुभव हो कि – यह कोई साधारण आत्मा नहीं, विशेष शक्ति है।

उदाहरण:
जैसे शास्त्रों में देवताओं ने शत्रुओं की कमजोरी को पहचानकर विजय प्राप्त की।
वैसे ही उनकी कमजोरी पर ईश्वरीय तीर चलाना है।


 8. अनन्य आत्मा बनने का अभ्यास

  • साधारण आत्माओं की तरह न दिखाई दें।

  • लक्ष्य रहे – सदैव लाइट का किला दिखाई दे।


 9. 84 का महत्व और ध्वनि

84 का वर्ष विशेष है।

  • देवियों की महिमा में 84 घंटे का कीर्तन प्रसिद्ध है।

  • उसी प्रमाण 1984 में साक्षात्कार की लहर फैलानी है।


 10. विशेष शक्ति का साधन – खुशी और मनन

अमृतवेले सुस्ती क्यों आती है?

  • क्योंकि दिनभर मनन कम होता है।

  • यदि दिनभर ज्ञान रत्नों का खेल होगा, तो अमृतवेले खुशी से शक्ति अनुभव होगी।

11. अंतिम लक्ष्य

  • चलना नहीं, उड़ना और उड़ाना।

  • वाणी की शक्ति से बढ़कर – ईश्वरीय भासना का अनुभव कराना।

  • लक्ष्य रहे कि सबके मुख से निकले – “ईश्वर आ गया है।”

  • प्रश्न 1: शक्ति सेना और त्रिशूल का वास्तविक अर्थ क्या है?

     उत्तर: बापदादा ने आज शक्ति सेना को देखा जिनके मस्तक पर त्रिशूल (त्रिमूर्ति स्मृति) की स्पष्ट निशानी थी। इसका अर्थ है – हमें सदा अपनी पहचान इमर्ज रखनी है कि हम आत्मा, बाप और शक्ति का कार्य एक साथ कर रहे हैं। जैसे मंदिरों में शिव और देवी की प्रतिमा के साथ त्रिशूल होता है, वैसे ही हमें भी सदा अपने दिव्य कार्य का स्मरण रखना है।
    Murli Note (10-11-1983): “बापदादा और आप साथ-साथ दिखाई दें। इसी त्रिमूर्ति स्मृति से शक्ति में शिव दिखाई देगा।”


     प्रश्न 2: सहज योगी से श्रेष्ठ योगी बनने का लक्ष्य क्या है?

     उत्तर: सहज शब्द की लहर में सेवा, पढ़ाई और तपस्या तो चलती रहती है, लेकिन अब केवल सुनाना नहीं बल्कि श्रेष्ठ वायब्रेशन का अनुभव कराना है। सुनाने वाले तो अनेक हैं, पर कमी है – साक्षात्कार कराने की।
    Murli Note: “अनुभव भी साक्षात्कार समान है। सुनाने से काम नहीं चलेगा। श्रोता को अनुभव होना चाहिए – हमने बाप को देखा, पाया।”


     प्रश्न 3: साक्षात्कार मूर्त की पहचान क्या है?

     उत्तर: जब हमारे वायब्रेशन शब्दों से ज्यादा असर करें, आत्माएँ हमें देखकर बाप की झलक अनुभव करें – वही साक्षात्कार मूर्त बनना है। जैसे ब्रह्मा बाबा को साक्षात्कार में “यह कौन शक्ति है?” अनुभव हुआ, वैसे ही दूसरों को भी चमत्कारिक अनुभव होना चाहिए।


     प्रश्न 4: पहचान की आँख कैसे खुलेगी?

     उत्तर: अभी दुनिया हमें साधारण आत्माओं की लाइन में रखती है, लेकिन जब वे हमारे पास आकर कहेंगे – यही वह शक्ति है जिसका हमने आह्वान किया था, तब पहचान की आँख खुलेगी।
    Murli Point: “नवीनता ही पहचान की आँख खोलेगी। सहज को प्रवृत्ति में मत चलाओ, सिद्धि स्वरूप बनने में चलाओ।”


     प्रश्न 5: सेवा में श्रेष्ठ आत्माओं की विशेषता क्या है?

     उत्तर: साधारण संदेश तो कोई भी दे सकता है, लेकिन श्रेष्ठ आत्माएँ अनुभव कराती हैं। जैसे मेले में भीड़ आकर्षण से खिंचती है, वैसे ही श्रेष्ठ आत्माओं के वायब्रेशन से आत्माएँ स्वतः खिंचती हैं।


     प्रश्न 6: पालना देने वाली शक्ति बनने का अर्थ क्या है?

     उत्तर: बापदादा ने कहा – अब केवल मैसेंजर मत बनो, बल्कि आत्माओं को शक्तिशाली बनाने वाली पालना दो। पालना का अर्थ है – उन्हें उमंग-उत्साह और शक्ति का अनुभव कराना।
    Murli Note: “जो भी आयें, वे अनुभव करें – हम ईश्वरीय पालना में आ गये हैं।”


     प्रश्न 7: धर्म नेताओं की सेवा कैसे करनी है?

     उत्तर: धर्मगुरु धर्म की बातें तो जानते हैं। वे तब प्रभावित होंगे जब अनुभव करेंगे कि सामने साधारण नहीं, बल्कि विशेष शक्ति है। जैसे देवताओं ने शत्रुओं की कमजोरी पहचानकर विजय पाई, वैसे ही हमें भी उनकी कमजोरी पर ईश्वरीय तीर चलाना है।


     प्रश्न 8: अनन्य आत्मा बनने का अभ्यास कैसे करें?

     उत्तर: हमें साधारण आत्माओं की तरह नहीं बल्कि सदा लाइट के किले में रहने वाली शक्ति की तरह दिखना है।
    Murli Point: “संबंधियों को शरीर नहीं, देवी का रूप दिखाई दे – यही परीक्षा पास करने का अभ्यास है।”


     प्रश्न 9: वर्ष 1984 का विशेष महत्व क्या है?

     उत्तर: 84 का वर्ष विशेष है। जैसे देवियों की महिमा में 84 घंटे का कीर्तन प्रसिद्ध है, उसी प्रमाण 1984 में साक्षात्कार की लहर फैलानी है।


     प्रश्न 10: विशेष शक्ति का साधन क्या है?

     उत्तर: खुशी और मनन ही विशेष शक्ति का साधन है। अमृतवेले सुस्ती इसलिए आती है क्योंकि दिनभर मनन कम होता है। यदि दिनभर ज्ञान रत्नों का खेल होगा, तो अमृतवेले खुशी से शक्ति अनुभव होगी।
    Murli Note: “जहाँ प्राप्ति होती है, वहाँ नींद नहीं आती। प्राप्ति का अनुभव ही खुशी और शक्ति देता है।”


     प्रश्न 11: अंतिम लक्ष्य क्या है?

     उत्तर: केवल चलना नहीं, बल्कि उड़ना और दूसरों को उड़ाना है। वाणी से आगे बढ़कर ईश्वरीय भासना और अनुभूति कराना है। लक्ष्य यह होना चाहिए कि आत्माएँ कहें – “ईश्वर आ गया है।”

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