03- Raja Yoga in the present age

03- वर्तमान युग में राजयोग

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“सहज राजयोग: वर्तमान युग की सबसे बड़ी जरूरत | स्वयं ईश्वर से सीखें राजयोग का रहस्य (भाग 3)”


 “स्वयं ईश्वर सिखाते हैं सहज राजयोग” – भाग 3

वर्तमान युग में सहज राजयोग की प्रासंगिकता


1.  वर्तमान युग की विशेषताएं

आज का युग विकास और विनाश दोनों की चरम सीमा पर है।
जहाँ विज्ञान ने चमत्कार किए हैं, वहीं मनुष्य की मनःस्थिति दिन-प्रतिदिन दुर्बल होती जा रही है।
तनाव, प्रदूषण, दौड़ती जीवनशैली — यह सब हमें मानसिक रूप से खोखला बना रहे हैं।

ऐसे समय में एकमात्र समाधान है – सहज राजयोग, जो हमें भीतरी शक्ति और शांति प्रदान करता है।


2.  जीवनशैली और आजीविका में परिवर्तन

सुविधा और स्पीड ने मानवीयता को मशीन में बदल दिया है।

  • मोबाइल, इंटरनेट और स्क्रीन ने हमें भावनात्मक रूप से दूर कर दिया।

  • मनुष्य अब इंसान नहीं, केवल “यूज़र” बन गया है।

सहज राजयोग हमें दोबारा से ‘जीवंत आत्मा’ बनाता है — जो सोचती है, महसूस करती है, और प्रेम कर सकती है।


3.  तनाव और टेंशन की बाढ़

हर वर्ग और उम्र का व्यक्ति आज किसी न किसी तनाव से जूझ रहा है।

  • विद्यार्थियों पर पढ़ाई का दबाव

  • वयस्कों पर करियर और पैसे की चिंता

  • बुजुर्गों पर अकेलेपन का भार

राजयोग हमें निर्णय लेने की शक्ति देता है, जिससे हम हर चुनौती को शांति से सामना कर सकें।


4.  राजयोग के लाभ: आंतरिक शांति और स्थिरता

सहज राजयोग मन को शुद्ध करता है, सोच को साफ़ करता है, और आत्मा को स्थिरता देता है।

  • यह ध्यान नहीं, दिव्य कनेक्शन है।

  • परमात्मा से संबंध जोड़कर आत्मा शक्ति से भरती है।

यह योग मन का ऑपरेशन है — जो उसे फिर से स्वस्थ और सशक्त बनाता है।


5.  समाज में योगदान

राजयोग केवल निजी साधना नहीं — यह समाजिक परिवर्तन का आधार भी है।

  • “हम आत्माएं भाई-बहन हैं” — यह भावना वैर-भाव को मिटाती है।

  • राजयोग सेवा की शक्ति देता है — बिना स्वार्थ, बिना अपेक्षा।

जहाँ आत्मा, सेवा और संयम का सामंजस्य हो — वहीं सच्चा समाज बनता है।


6.  आदर्श समाज के लक्षण

राजयोग से बना समाज:

  • शुद्ध विचारों वाला

  • सहिष्णु, स्नेही और समर्पित

  • आत्म-सम्मान से परिपूर्ण

जहाँ हर व्यक्ति दूसरे की आत्मा को सम्मान देता है — वहाँ ही स्थायी शांति संभव है।


7.  स्व युग की स्थापना – स्वर्ण युग की ओर

राजयोग का अंतिम लक्ष्य है – “स्वराज्य”।

  • जहाँ आत्मा अपने मन, इन्द्रियों और कर्मों की स्वामिनी बनती है।

  • यही आत्माएं बनाती हैं — सत्ययुग, स्वर्ण युग।

स्वर्ण युग कोई कल्पना नहीं — यह भविष्य है, जिसकी नींव आज राजयोग द्वारा रखी जा रही है।


समापन संदेश

आज का युग हमसे एक आंतरिक क्रांति की मांग कर रहा है।
 बाहरी परिवर्तन अब पर्याप्त नहीं।
आत्मा को बदलना ही सच्चा परिवर्तन है।

ईश्वर स्वयं सहज राजयोग सिखा रहे हैं।
हमें केवल उस ज्ञान को, उस विधि को अपनाने की हिम्मत करनी है।

राजयोग अपनाएं, भीतर से जाग्रत बनें, और इस दुनिया को शांति की ओर ले चलें।

यही है सहज राजयोग — वर्तमान युग की सबसे बड़ी और सबसे दिव्य आवश्यकता।

स्वयं ईश्वर से सीखें राजयोग का रहस्य (भाग 3) – प्रश्नोत्तर श्रृंखला


प्रश्न 1: वर्तमान युग में ऐसा क्या बदल गया है जो राजयोग को अत्यंत आवश्यक बना देता है?

 उत्तर:आज का युग अत्यधिक अशांत और तनावपूर्ण बन चुका है।
शहरीकरण, प्रदूषण, भागदौड़ और गजट्स की भरमार ने मनुष्य की मानसिक और भावनात्मक स्थिति को कमजोर कर दिया है।
सहज राजयोग हमें इस अशांत वातावरण में भी अंदर से शांत, संतुलित और सशक्त बनाए रखने का माध्यम बनता है।


प्रश्न 2: विज्ञान और टेक्नोलॉजी ने जीवन को कैसे मशीनी बना दिया है?

 उत्तर:विज्ञान ने जीवन को सुविधाएं दी हैं, लेकिन भावनाओं को पीछे छोड़ दिया है।
मोबाइल, कैलकुलेटर, घड़ी, डायरी — सब एक डिवाइस में समा गए हैं।
आज इंसान को खुद का नंबर तक याद नहीं रहता।
हम सोचने, याद रखने, समझने के लिए मशीनों पर निर्भर हो चुके हैं।
इस यांत्रिक जीवन में केवल राजयोग ही हमें आत्मीयता और मानवीयता से जोड़े रखता है।


प्रश्न 3: क्या आधुनिक जीवन की गति ने मानसिक तनाव को बढ़ा दिया है?

 उत्तर:बिलकुल।
तेज गति से भागती दुनिया में व्यक्ति समय की कमी, कार्यभार और जल्दी निर्णय लेने की मजबूरी में जी रहा है।
इस कारण टेंशन, अव्यवस्था और मानसिक थकावट बढ़ती जा रही है।
राजयोग इस भीड़ में ठहराव लाता है और स्पष्ट सोचने की शक्ति प्रदान करता है।


प्रश्न 4: सहज राजयोग से कौन-कौन से मानसिक लाभ होते हैं?

 उत्तर:राजयोग से व्यक्ति को आंतरिक शांति, स्पष्टता और आत्म-स्थिरता प्राप्त होती है।
यह तनाव कम करता है, निर्णय लेने की शक्ति बढ़ाता है और आत्म-नियंत्रण की भावना उत्पन्न करता है।
यह मन को सकारात्मक और निर्मल बनाए रखता है।


प्रश्न 5: क्या राजयोग केवल व्यक्तिगत लाभ तक सीमित है?

 उत्तर:नहीं।राजयोग केवल आत्मकल्याण नहीं, बल्कि समाज कल्याण का मार्ग है।
यह “हम आत्माएं एक परिवार हैं” की भावना को जगाता है।
इससे आपसी प्रेम, सहयोग और संघर्ष रहित समाज का निर्माण होता है।


प्रश्न 6: राजयोग से प्रेरित समाज कैसा होता है?

 उत्तर:राजयोग से प्रेरित समाज में लोग पवित्र, स्वस्थ, सहनशील और अनुशासित होते हैं।
ऐसे समाज में नियमों का पालन स्वाभाविक होता है।
वहाँ प्रेम, सम्मान, सहनशक्ति और सहयोग का माहौल रहता है।


प्रश्न 7: क्या सहज राजयोग से वास्तव में स्वर्ण युग की स्थापना हो सकती है?

 उत्तर:हाँ, सहज राजयोग का अंतिम लक्ष्य ही है — आत्म-राज्य द्वारा विश्व-राज्य की स्थापना।
एक ऐसा युग जहाँ मनुष्य, पशु और प्रकृति — सभी में समरसता हो।
जहाँ कोई पीड़ा न हो, जहाँ आत्मा परमात्मा से जुड़कर सम्पूर्णता का अनुभव करे।
राजयोग के द्वारा ही वह दिव्य युग — स्वर्ण युग — संभव है।


प्रश्न 8: क्या ईश्वर स्वयं राजयोग सिखा रहे हैं?

 उत्तर:हाँ, यही इस युग की सबसे महान विशेषता है कि स्वयं परमात्मा शिव इस संगम युग पर आकर हमें सहज राजयोग सिखा रहे हैं।
यह योग कोई मानव नहीं, स्वयं परमपिता परमात्मा सिखाते हैं — जिससे आत्मा फिर से सशक्त, पवित्र और दिव्य बनती है।


प्रश्न 9: आज के समय में राजयोग को अपनाने का क्या महत्व है?

 उत्तर:आज का समय अनेक प्रकार की मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक चुनौतियों से भरा है।
राजयोग हमें इन सब से पार करने की शक्ति देता है, जीवन में संतुलन लाता है और दिव्यता की ओर ले जाता है।
यह आज की सबसे बड़ी जरूरत और आत्मा की सच्ची चिकित्सा है।


 समापन प्रश्न: हम सहज राजयोग को जीवन में कैसे अपनाएं?

उत्तर:

  • प्रतिदिन प्रात: और रात्रि कुछ समय आत्म-स्मृति और परमात्मा-स्मृति में बैठें।

  • राजयोग के गहरे अर्थों को जानने के लिए ईश्वर द्वारा दिए गए ज्ञान (Murli) को सुनें और समझें।

  • आध्यात्मिक अनुशासन, पवित्रता और सेवा की भावना को अपनाएं।

  • नियमित ध्यान द्वारा आत्मिक स्थिति को गहरा करें।
    परमात्मा की याद से ही आत्मा शक्तिशाली बन सकती है।

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