(87) Quality: The greatest foundation of divine conduct

(87)गुण ग्राहक दृष्टि: दिव्य आचरण की सबसे बड़ी नींव

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“गुण-ग्राहक दृष्टि: गीता और ब्रह्माकुमारीज मुरली का अनमोल संदेश |”


 गुण-ग्राहक दृष्टि – दैवी सम्पदा का आधार

1. भूमिका

भगवान ने गीता में और ब्रह्माकुमारीज की मुरली में ‘गुण-ग्राहक दृष्टि’ को दैवी सम्पदा का महत्वपूर्ण आधार बताया है।
यह दृष्टि मनुष्य को आलोचना, निन्दा और दोष-दर्शन से मुक्त कर देती है, जिससे आत्मा में शांति, स्नेह और आनंद का अनुभव होता है।


2. गुण-ग्राहक दृष्टि का महत्व

  • अवगुण देखने से मन भारी, दुखी और नकारात्मक हो जाता है।

  • गुण देखने से मन में स्नेह, विनम्रता और शांति उत्पन्न होती है।

उदाहरण:
यदि कोई व्यक्ति दानशील है, तो आलोचक कहेगा –
“यह व्यक्ति मूर्ख है, धन बर्बाद कर रहा है।”
लेकिन गुण-ग्राहक व्यक्ति कहेगा –
“वाह! कितना उदार हृदय है, कितनी सेवा भावना है।”


3. गुण-ग्राहकता और योग का संबंध

  • जो आत्मा स्वयं दोष-मुक्त बनने का अभ्यास करती है, वही दूसरों में भी गुण देख सकती है।

  • योग की शक्ति दृष्टिकोण को शुद्ध और सकारात्मक बनाती है।

  • इससे आलोचना की प्रवृत्ति समाप्त होती है और मन स्थिर रहता है।


4. मुरली का संदर्भ

सा. मुरली 28 जुलाई 2025
“बच्चे, गुण-ग्राहक दृष्टि रखने वाले ही माया से बचते हैं।
दोष-दर्शन से मन भारी होता है। गुण-दर्शन से आत्मा में स्नेह, शांति और खुशी बढ़ती है।”


5. गुण-ग्राहक व्यक्ति की विशेषताएँ

  • नम्रचित्त – स्वयं को अभी अपूर्ण मानता है।

  • स्नेही और शुभचिंतक – सबमें अच्छाई देखता है।

  • क्रोधरहित और शीतल – दोष-दर्शन से मुक्त होने के कारण मन स्थिर रहता है।


6. गुण-ग्राहकता कैसे विकसित करें?

  • प्रतिदिन स्वचिंतन करें – “आज मैंने कितनों में गुण देखे?”

  • आलोचना या चुगली से बचें और अच्छी बातें साझा करें।

  • योगाभ्यास से मन को शुद्ध करें ताकि दृष्टि भी शुद्ध हो।


7. निष्कर्ष

गुण-ग्राहकता केवल एक आदत नहीं, बल्कि दिव्य दृष्टि है।
यह आत्मा को हल्का, प्रसन्न और स्नेही रखती है।
यही स्वर्णिम युग की मानसिकता का आधार और दैवी आचरण की नींव है।

“गुण-ग्राहक दृष्टि: गीता और ब्रह्माकुमारीज मुरली का दिव्य संदेश – प्रश्नोत्तर”


प्रश्न 1: गुण-ग्राहक दृष्टि क्या है?

उत्तर:गुण-ग्राहक दृष्टि का अर्थ है – दूसरों में अच्छाई को देखना और उसकी सराहना करना। यह दृष्टि आलोचना, निन्दा और दोष-दर्शन की प्रवृत्ति से मुक्त करती है।


प्रश्न 2: गुण-ग्राहक दृष्टि को दैवी सम्पदा का आधार क्यों कहा गया है?

उत्तर:क्योंकि इससे मन में स्नेह, शांति और विनम्रता उत्पन्न होती है। अवगुण देखने से मन भारी होता है, जबकि गुण देखने से आत्मा हल्की और प्रसन्न रहती है।


प्रश्न 3: गुण-ग्राहक दृष्टि और योग का आपस में क्या संबंध है?

उत्तर:योग से आत्मा दोष-मुक्त और शक्तिशाली बनती है। जब दृष्टि शुद्ध होती है, तब वह दूसरों में भी अच्छाई ही देखती है। योग के बिना दृष्टिकोण स्थायी रूप से सकारात्मक नहीं रह सकता।


प्रश्न 4: मुरली में गुण-ग्राहक दृष्टि के बारे में क्या कहा गया है?

उत्तर:सा. मुरली 28 जुलाई 2025 में कहा गया –
“बच्चे, गुण-ग्राहक दृष्टि रखने वाले ही माया से बचते हैं। दोष-दर्शन से मन भारी होता है। गुण-दर्शन से आत्मा में स्नेह, शांति और खुशी बढ़ती है।”


प्रश्न 5: गुण-ग्राहक व्यक्ति की मुख्य विशेषताएँ क्या होती हैं?

उत्तर:

  • नम्रचित्त – स्वयं को अभी अपूर्ण मानता है।

  • स्नेही और शुभचिंतक – सबमें अच्छाई देखता है।

  • क्रोधरहित और शीतल – दोष-दर्शन से मुक्त होने के कारण मन स्थिर रहता है।


प्रश्न 6: जीवन में गुण-ग्राहकता कैसे विकसित करें?

उत्तर:

  • प्रतिदिन स्वचिंतन करें – “आज मैंने कितनों में गुण देखे?”

  • आलोचना या चुगली से बचें और अच्छी बातें साझा करें।

  • योगाभ्यास करें ताकि मन शुद्ध और दृष्टि सकारात्मक बने।

Disclaimer

“यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज के आध्यात्मिक ज्ञान और गीता के दैवी संदेश पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल आध्यात्मिक समझ और आत्मिक विकास को बढ़ावा देना है। यहाँ दी गई जानकारी किसी धर्म, पंथ, संस्था या व्यक्ति की आलोचना या विरोध के लिए नहीं है। दर्शक इसे गहन चिंतन और व्यक्तिगत आध्यात्मिक अभ्यास हेतु प्रयोग करें।”

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