अव्यक्त मुरली-(30)”24-04-1984 “वर्तमान ब्राह्मण जन्म – हीरे तुल्य”
(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
24-04-1984 “वर्तमान ब्राह्मण जन्म – हीरे तुल्य”
आज बापदादा अपने सर्व श्रेष्ठ बच्चों को देख रहे हैं। विश्व की तमोगुणी अपवित्र आत्माओं के अन्तर में कितनी श्रेष्ठ आत्मायें हैं। दुनिया में सर्व आत्मायें पुकारने वाली हैं, भटकने वाली, अप्राप्त आत्मायें हैं। कितनी भी विनाशी सर्व प्राप्तियाँ हो फिर भी कोई न कोई अप्राप्ति जरुर होगी। आप ब्राह्मण बच्चों को सर्व प्राप्तियों के दाता के बच्चों को अप्राप्त कोई वस्तु नहीं। सदा प्राप्ति स्वरुप हो। अल्पकाल के सुख के साधन अल्पकाल के वैभव, अल्पकाल का राज्य अधिकार नहीं होते हुए भी बिन कौड़ी बादशाह हो। बेफिकर बादशाह हो। मायाजीत, प्रकृतिजीत स्वराज्य अधिकारी हो। सदा ईश्वरीय पालना में पलने वाले खुशी के झूले में, अतीन्द्रिय सुख के झूले में झूलने वाले हो। विनाशी सम्पत्ति के बजाए अविनाशी सम्पत्तिवान हो। रतन जड़ित ताज नहीं लेकिन परमात्म बाप के सिर के ताज हो। रतन जड़ित श्रृंगार नहीं लेकिन ज्ञान रत्नों, गुणों रुपी रत्नों के श्रृंगार से सदा श्रृंगारे हुए हो। कितना भी बड़ा विनाशी सर्व श्रेष्ठ हीरा हो। मूल्यवान हो लेकिन एक ज्ञान के रत्न, गुण के रत्न के आगे उनकी क्या वैल्यु है? इन रत्नों के आगे वह पत्थर के समान हैं क्योंकि विनाशी हैं। नौ लखे हार के आगे भी आप स्वयं बाप के गले का हार बन गये हो। प्रभु के गले के हार के आगे नौ लाख कहो वा नौ पदम कहो वा अनगिनत पदम के मूल्य का हार कुछ भी नहीं है। 36 प्रकार का भोजन भी इस ब्रह्मा भोजन के आगे कुछ नहीं है क्योंकि डायरेक्ट बापदादा को भोग लगाकर इस भोजन को परमात्म प्रसाद बना देते हो। प्रसाद की वैल्यु आज अन्तिम जन्म में भी भक्त आत्माओं के पास कितनी है? आप साधारण भोजन नहीं खाते। प्रभु प्रसाद खा रहे हो। जो एक-एक दाना पदमों से भी श्रेष्ठ है। ऐसी सर्व श्रेष्ठ आत्मायें हो। ऐसा रुहानी श्रेष्ठ नशा रहता है। चलते-चलते अपनी श्रेष्ठता को भूल तो नहीं जाते हो? अपने को साघारण तो नहीं समझते हो? सिर्फ सुनने वाले या सुनाने वाले तो नहीं! स्वमान वाले बने हो? सुनने सुनाने वाले तो अनेकानेक हैं। स्वमान वाले कोटों में कोई हैं। आप कौन हो? अनेकों में हो वा कोटों में कोई वालों में हो? प्राप्ति के समय पर अलबेला बनना, उन्हों को बापदादा कौन सी समझ वाले बच्चे कहें? पाये हुए भाग्य को, मिले हुए भाग्य को अनुभव नहीं किया अर्थात् अभी महान भाग्यवान नहीं बने तो कब बनेंगे? इस श्रेष्ठ प्राप्ति के संगमयुग पर हर कदम यह स्लोगन सदा याद रखो कि “अब नहीं तो कब नहीं” समझा। अच्छा!
अभी गुजरात जोन आया है। गुजरात की क्या विशेषता है? गुजरात की यह विशेषता है – छोटा बड़ा खुशी में जरुर नाचते हैं। अपना छोटा-पन, मोटा-पन सभी भूल जाते हैं। रास के लगन में मगन हो जाते। सारी-सारी रात भी मगन रहते हैं। तो जैसे रास की लगन में मगन रहते, ऐसे सदा ज्ञान की खुशी की रास में भी मगन रहते हो ना! इस अविनाशी लगन में मगन रहने के भी नम्बरवन अभ्यासी हो ना! विस्तार भी अच्छा है। इस बारी मुख्य स्थान (मधुबन) के समीप के साथी दोनों ज़ोन आये हैं। एक तरफ है गुजरात, दूसरे तरफ है राजस्थान। दोनों समीप हैं ना। सारे कार्य का सम्बन्ध राजस्थान और गुजरात से है। तो ड्रामा अनुसार दोनों स्थानों को सहयोगी बनने का गोल्डन चांस मिला हुआ है। दोनों हर कार्य में समीप और सहयोगी बने हुए हैं। संगमयुगी के स्वराज्य की राजगद्दी तो राजस्थान में है ना! कितने राजे तैयार किये हैं? राजस्थान के राजे गाये हुए हैं। तो राजे तैयार हो गये हैं या हो रहे हैं? राजस्थान में राजाओं की सवारियाँ निकलती हैं। तो राजस्थान वालों को ऐसा पूरी सवारी तैयार कर लानी चाहिए। तब तो सब पुष्पों की वर्षा करेंगे ना। बहुत ठाठ से सवारी निकालते हैं। तो कितने राजाओं की सवारी आयेगी। कम से कम जहाँ सेवाकेन्द्र है वहाँ का एक-एक राजा आवे तो कितने राज़े हो जायेंगे। 25 स्थानों के 25 राजे आवें तो सवारी सुन्दर हो जायेगी ना! ड्रामा अनुसार राजस्थान में ही सेवा की गद्दी बनी है। तो राजस्थान का भी विशेष पार्ट है। राजस्थान से ही विशेष सेवा के घोड़े भी निकले हैं ना। ड्रामा में पार्ट है सिर्फ इनको रिपीट करना है।
कर्नाटक का भी विस्तार बहुत हो गया है। अब कर्नाटक वालों को विस्तार से पार निकलना पड़े। जब मक्खन निकालते हैं तो पहले तो विस्तार होता है फिर उससे मक्खन सार निकलता है। तो कर्नाटक को भी विस्तार से अब मक्खन निकालना है। सार स्वरुप बनना और बनाना है। अच्छा।
अपने श्रेष्ठ स्वमान में स्थित रहने वाले, सर्व प्राप्तियों के भण्डार, सदा संगमयुगी श्रेष्ठ स्वराज्य और महान भाग्य के अधिकारी आत्माओं को, सदा रुहानी नशे और खुशी स्वरुप आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
पार्टियों से:- सभी अपने को स्वराज्य अधिकारी श्रेष्ठ आत्मायें समझते हो? स्वराज्य का अधिकार मिल गया? ऐसी अधिकारी आत्मायें शक्तिशाली होंगी ना। राज्य को सत्ता कहा जाता है। सत्ता अर्थात् शक्ति। आजकल की गवर्मेन्ट को भी कहते हैं – राज्य सत्ता वाली पार्टी है। तो राज्य की सत्ता अर्थात् शक्ति है। तो स्वराज्य कितनी बड़ी शक्ति है? ऐसी शक्ति प्राप्त हुई है? सभी कर्मेन्द्रियाँ आपकी शक्ति प्रमाण कार्य कर रही हैं? राजा सदा अपनी राज्य सभा को, राज्य दरबार को बुलाकर पूछते हैं कि कैसे राज्य चल रहा है? तो आप स्वराज्य अधिकारी राजाओं की कारोबार ठीक चल रही है? या कहाँ नीचे ऊपर होता है? कभी कोई राज्य कारोबारी धोखा तो नहीं देते हैं। कभी आंख धोखा दे, कभी कान धोखा दें, कभी हाथ, कभी पांव धोखा दें। ऐसे धोखा तो नहीं खाते हो! अगर राज्य सत्ता ठीक है तो हर संकल्प हर सेकेण्ड में पदमों की कमाई है। अगर राज्य सत्ता ठीक नहीं है तो हर सेकेण्ड में पदमों की गँवाई होती है। प्राप्ति भी एक की पदमगुणा है तो और फिर अगर गँवाते हैं तो एक का पदमगुणा गँवाते हो। जितना मिलता है उतना जाता भी है। हिसाब है। तो सारे दिन की राज्य कारोबार को देखो। आंख रुपी मंत्री ने ठीक काम किया? कान रुपी मंत्री ने ठीक काम किया? सबकी डिपार्टमेन्ट ठीक रही या नहीं? यह चेक करते हो या थककर सो जाते हो? वैसे कर्म करने से पहले ही चेक कर फिर कर्म करना है। पहले सोचना फिर करना। पहले करना पीछे सोचना, यह नहीं। टोटल रिजन्ट निकालना अलग बात है लेकिन ज्ञानी आत्मा पहले सोचेगी फिर करेगी। तो सोच-समझ कर हर कर्म करते हो? पहले सोचने वाले हो या पीछे सोचने वाले हो? अगर ज्ञानी पीछे सोचे उसको ज्ञानी नहीं कहेंगे। इसलिए सदा स्वराज्य अधिकारी आत्मायें हैं और इसी स्वराज्य के अधिकार से विश्व के राज्य अधिकारी बनना ही है। बनेंगे या नहीं – यह क्वेश्चन नहीं। स्वराज्य है तो विश्व राज्य है ही। तो स्वराज्य में गड़बड़ तो नहीं है ना? द्वापर से तो गड़बड़ शालाओं में चक्र लगाते रहे। अब गड़बड़ शाला से निकल आये, अभी फिर कभी भी किसी भी प्रकार की गड़बड़ शाला में पांव नहीं रखना। यह ऐसी गड़बड़ शाला है एक बार पांव रखा तो भूल भुलैया का खेल है। फिर निकलना मुश्किल हो जाता। इसलिए सदा एक रास्ता, एक में गड़बड़ नहीं होती। एक रास्ते पर चलने वाले सदा खुश, सदा सन्तुष्ट।
बैंगलोर हाईकोर्ट के जस्टिस से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात:- किस स्थान पर और क्या अनुभव कर रहे हो? अनुभव सबसे बड़ी अथॉरिटी है। सबसे पहला अनुभव है आत्म-अभिमानी बनने का। जब आत्म-अभिमानी का अनुभव हो जाता है तो परमात्म प्यार, परमात्म प्राप्ति का भी अनुभव स्वत: हो जाता है। जितना अनुभव उतना शक्तिशाली। जन्म-जन्मान्तर के दु:खों से छुड़ाने की जजमेन्ट देने वाले हो ना! या एक ही जन्म के दु:खों से छुड़ाने वाले जज हो? वह तो हुए हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का जज। यह है प्रिचुअल जज। इस जज बनने में पढ़ाई की वा समय की आवश्यकता नहीं है। दो अक्षर ही पढ़ने हैं – आत्मा और परमात्मा। बस। इसके अनुभवी बन गये तो प्रिचुअल जज बन गये। जैसे बाप जन्म-जन्म के दु:खों से छुड़ाने वाले हैं – इसलिए बाप को सुख का दाता कहते हैं, तो जैसा बाप वैसे बच्चे। डबल जज बनने से अनेक आत्माओं के कल्याण के निमित्त बन जायेंगे। आयेंगे एक केस के लिए और जन्म-जन्म के केस जीतकर जायेंगे। बहुत खुश होंगे। तो बाप की आज्ञा है – स्प्रीचुअल जज बनो।
अध्याय — “वर्तमान ब्राह्मण जन्म – हीरे तुल्य”
(अव्यक्त मुरली दिनांक : 24 अप्रैल 1984)
1. बापदादा की दिव्य दृष्टि से — श्रेष्ठ आत्माओं की पहचान
आज बापदादा अपने सर्वश्रेष्ठ बच्चों को देख रहे हैं —
इस विश्व में जहाँ तमोगुणी आत्माएँ भटक रही हैं, वहीं इन सबके बीच आप जैसे श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्माएँ परमात्मा की आँखों के तारे हैं।
मुरली बिंदु:
“दुनिया की आत्माएँ भटकने वाली हैं, अप्राप्त हैं, पर तुम बच्चों को सर्व प्राप्तियाँ मिली हुई हैं।”
उदाहरण:
जैसे अंधकार में दीपक अपनी पहचान खुद देता है,
वैसे ही रजोगुण-तमोगुण से भरे युग में ब्राह्मण आत्माएँ ईश्वरीय ज्ञान का दीपक बन चमकती हैं।
2. ब्राह्मण जीवन — “हीरे से भी अनमोल”
बाबा कहते हैं — चाहे इस समय तुम्हारे पास विनाशी धन या वैभव न हो,
पर तुम “बिन कौड़ी बादशाह” हो।
तुम्हारी सम्पन्नता विनाशी नहीं, अविनाशी है।
मुरली बिंदु:
“विनाशी सम्पत्ति के बजाय तुम अविनाशी सम्पत्तिवान हो।”
“ज्ञान रत्नों और गुणों के रत्नों का श्रृंगार, किसी भी रतन-जड़ित ताज से अधिक मूल्यवान है।”
उदाहरण:
हीरा भले कीमती हो, लेकिन समय के साथ उसकी चमक फीकी पड़ती है।
पर ज्ञान का रत्न जितना उपयोग में आता है, उतना और चमकता है।
3. तुम प्रभु के गले का हार हो
बापदादा कहते हैं —
“नौ लखे हार के आगे भी तुम स्वयं बाप के गले का हार बन गये हो।”
यह कोई अलंकार नहीं, बल्कि ईश्वरीय प्रेम का प्रतीक है।
भक्त लोग जहाँ केवल भोग लगाते हैं, वहाँ ब्राह्मण आत्माएँ डायरेक्ट परमात्मा को भोग लगाकर प्रसाद बनाती हैं।
उदाहरण:
साधारण भोजन, जब परमात्मा को अर्पण होता है, तो प्रसाद बन जाता है।
वैसे ही साधारण मनुष्य, जब ईश्वरीय पालना में आता है, तो प्रभु का हार बन जाता है।
4. सदा याद रखो — “अब नहीं तो कब नहीं”
बाबा ने विशेष स्लोगन दिया —
“अब नहीं तो कब नहीं।”
हर कदम, हर कर्म में यह स्मृति रखो —
यही संगमयुग है, भाग्य बनाने का एकमात्र समय।
उदाहरण:
जैसे सूरज डूबने से पहले ही खेत का काम पूरा करना होता है,
वैसे ही यह संगमयुग का छोटा-सा समय है —
जो अभी नहीं पहचानेगा, वह सदा पछतायेगा।
5. “ज्ञान की रास” में सदा मगन रहो
बापदादा ने गुजरात ज़ोन की प्रशंसा करते हुए कहा —
“जैसे रास की लगन में मगन रहते हो, वैसे सदा ज्ञान की रास में मगन रहो।”
अर्थ:
रास का अर्थ केवल नृत्य नहीं,
बल्कि परमात्मा के साथ बुद्धि की रास —
जहाँ आत्मा ईश्वरीय साक्षात्कार की खुशी में झूमती रहती है।
6. स्वराज्य अधिकारी आत्माएँ — सच्चे “राजे”
बाबा कहते हैं —
“राज्य की सत्ता अर्थात शक्ति। स्वराज्य की शक्ति प्राप्त हुई है?”
स्वराज्य का अर्थ है — अपनी इन्द्रियों पर राज्य करना।
जो अपनी आंख, कान, हाथ, पैर पर शासन कर सकता है, वही सच्चा राजा है।
उदाहरण:
यदि आंख किसी दृश्य में फंस जाए या कान किसी निन्दा में आकर्षित हो जाए,
तो राजा को अपने मंत्री (इन्द्रियों) को अनुशासन में रखना है।
यही है स्वराज्य अधिकारी की निशानी।
7. स्वराज्य की परीक्षा — “राज्य दरबार की समीक्षा”
बाबा कहते हैं —
“दिनभर की राज्य कारोबार को देखो — आंख, कान, हाथ, पैर — सब मंत्री ठीक काम कर रहे हैं?”
व्यवहारिक अभ्यास:
रोज़ रात को सोने से पहले 2 मिनट में आत्म-चेकिंग करें —
“आज मैंने स्वराज्य की सीट पर कितना समय बिताया?”
यह छोटा अभ्यास पदमगुणा कमाई कराने वाला है।
8. स्वराज्य से विश्व राज्य तक
बाबा ने स्पष्ट कहा —
“स्वराज्य है तो विश्वराज्य है ही।”
यह कोई अलग उपलब्धि नहीं —
जो आत्मा स्वयं पर राज्य करती है, वही विश्व पर भी राज्य करती है।
उदाहरण:
राजा वही बन सकता है जो पहले अपने मन, वाणी और कर्म पर नियंत्रण रख सके।
यही राजयोग का वास्तविक अर्थ है।
9. आध्यात्मिक न्यायाधीश (Spiritual Judge) बनो
बैंगलोर हाईकोर्ट के जज से मुलाकात में बाबा ने कहा —
“जैसे तुम संसार के जज हो, वैसे आत्मा के केस का फैसला करने वाले ‘Spiritual Judge’ बनो।”
“यह पढ़ाई दो अक्षरों की है — आत्मा और परमात्मा।”
उदाहरण:
संसार का जज एक जन्म का फैसला देता है,
पर Spiritual Judge आत्मा के जन्म-जन्मान्तर के बंधनों को समाप्त कर देता है।
10. अंतिम प्रेरणा — “गड़बड़ शाला” से सदा दूर रहो
बापदादा ने कहा —
“द्वापर से गड़बड़ शालाओं में घूमते रहे हो।
अब किसी भी प्रकार की गड़बड़ शाला में पांव मत रखना।”
अर्थ:
गड़बड़ शाला = माया, रावण, अस्थिरता, देह-अभिमान।
अब एक रास्ता — एक बाप, एक याद।
यही सच्ची खुशी और सन्तुष्टि का मार्ग है।
सार-संदेश: “हीरा टूट सकता है, पर ज्ञान का रत्न कभी नहीं।
ब्राह्मण जीवन कोई साधारण जन्म नहीं — यह सर्वश्रेष्ठ हीरे तुल्य जन्म है।
इसे पहचानो, जीयो और अपने स्वराज्य से विश्व राज्य का अधिकार प्राप्त करो।”
स्लोगन:“स्वराज्य अधिकारी आत्मा ही विश्वराज्य की अधिकारी आत्मा बन सकती है।”
अध्याय — “वर्तमान ब्राह्मण जन्म – हीरे तुल्य”
(अव्यक्त मुरली दिनांक : 24 अप्रैल 1984)
1. प्रश्न:बापदादा की दृष्टि में श्रेष्ठ आत्माओं की पहचान क्या है?
उत्तर:
जो आत्माएँ तमोगुणी संसार में भी ईश्वरीय ज्ञान का दीपक जलाए रखती हैं, वे परमात्मा की आँखों के तारे हैं।
जग की आत्माएँ भटक रही हैं, पर ब्राह्मण आत्माएँ सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न हैं।
मुरली बिंदु:
“दुनिया की आत्माएँ भटकने वाली हैं, अप्राप्त हैं, पर तुम बच्चों को सर्व प्राप्तियाँ मिली हुई हैं।”
उदाहरण:
जैसे अंधकार में दीपक अपनी पहचान स्वयं देता है,
वैसे ही ब्राह्मण आत्मा अंधकार युग में भी ईश्वरीय प्रकाश फैलाती है।
2. प्रश्न:ब्राह्मण जीवन को “हीरे से भी अनमोल” क्यों कहा गया है?
उत्तर:
क्योंकि यह जीवन विनाशी वैभव से नहीं, अविनाशी सम्पत्तियों से सम्पन्न है —
ज्ञान, गुण, और योगबल ही सच्चे रत्न हैं।
मुरली बिंदु:
“विनाशी सम्पत्ति के बजाय तुम अविनाशी सम्पत्तिवान हो।”
उदाहरण:
हीरे की चमक समय के साथ घटती है,
पर ज्ञान का रत्न जितना बाँटो, उतना और बढ़ता है।
3. प्रश्न:बाबा हमें “बाप के गले का हार” क्यों कहते हैं?
उत्तर:
क्योंकि हम वह आत्माएँ हैं जिन्होंने परमात्मा के प्रेम और पालना को स्वीकार किया है।
भक्त तो भोग लगाते हैं, पर ब्राह्मण आत्माएँ परमात्मा को डायरेक्ट भोग लगाकर प्रसाद बनाती हैं।
उदाहरण:
साधारण भोजन परमात्मा को अर्पण होकर प्रसाद बनता है।
वैसे ही मनुष्य जब ईश्वरीय सेवा में लगता है, तो प्रभु का हार बन जाता है।
4. प्रश्न:संगमयुग में “अब नहीं तो कब नहीं” का क्या अर्थ है?
उत्तर:
यह ही वह समय है जब आत्मा अपने भाग्य को बदल सकती है।
हर कर्म, हर संकल्प में यह स्मृति रखनी चाहिए — यही सृजन का क्षण है।
उदाहरण:
जैसे सूरज ढलने से पहले खेत का काम पूरा करना होता है,
वैसे ही संगमयुग के इस क्षण को पहचानना ही विजय का रहस्य है।
5. प्रश्न:“ज्ञान की रास” में मगन रहने का क्या भाव है?
उत्तर:
यह रास केवल नृत्य नहीं, बल्कि बुद्धि और परमात्मा का मिलन है।
जहाँ आत्मा सदा ईश्वरीय साक्षात्कार की खुशी में झूमती रहती है।
मुरली बिंदु:
“जैसे रास में मगन रहते हो, वैसे ही ज्ञान की रास में मगन रहो।”
6. प्रश्न:स्वराज्य अधिकारी आत्मा की पहचान क्या है?
उत्तर:
जो अपनी इन्द्रियों पर शासन रखती है —
आंख, कान, हाथ, पैर सभी को मर्यादा में रख सके, वही सच्चा राजा है।
उदाहरण:
यदि आंख किसी दृश्य में फँस जाए, या कान निन्दा सुनने लगें,
तो आत्मा को अपने “मंत्रियों” (इन्द्रियों) को अनुशासन में रखना है।
7. प्रश्न:स्वराज्य की परीक्षा कैसे करें?
उत्तर:
रोज़ रात को 2 मिनट आत्म-चेकिंग करें —
“आज मैंने स्वराज्य की सीट पर कितना समय बिताया?”
यही अभ्यास पदमगुणा कमाई कराने वाला है।
मुरली बिंदु:
“दिनभर की राज्य कारोबार को देखो — मंत्री सब ठीक काम कर रहे हैं?”
8. प्रश्न:स्वराज्य और विश्वराज्य में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
बाबा कहते हैं — “स्वराज्य है तो विश्वराज्य है ही।”
जो आत्मा अपने मन, वाणी और कर्म पर राज्य करती है, वही भविष्य में विश्वराज्य की अधिकारी बनती है।
9. प्रश्न:“Spiritual Judge” बनने का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जैसे सांसारिक जज एक जन्म का फैसला देते हैं,
वैसे आत्मिक जज आत्मा के जन्म-जन्मान्तर के बंधनों का फैसला करता है —
ज्ञान और योग द्वारा उसे मुक्त करता है।
मुरली बिंदु:
“यह पढ़ाई दो अक्षरों की है — आत्मा और परमात्मा।”
10. प्रश्न:“गड़बड़ शाला” से दूर रहने का क्या भाव है?
उत्तर:
गड़बड़ शाला का अर्थ है माया, देह-अभिमान, अस्थिरता और विकारों की संगति।
अब एक ही रास्ता — एक बाप, एक याद।
यही सच्चा शान्ति और सुख का मार्ग है।
सार संदेश:“हीरा टूट सकता है, पर ज्ञान का रत्न कभी नहीं।
ब्राह्मण जीवन कोई साधारण जन्म नहीं —
यह सर्वश्रेष्ठ, हीरे तुल्य जन्म है।
इसे पहचानो, जीयो, और स्वराज्य से विश्वराज्य का अधिकार प्राप्त करो।”
स्लोगन:“स्वराज्य अधिकारी आत्मा ही विश्वराज्य की अधिकारी आत्मा बन सकती है।”
अध्याय “वर्तमान ब्राह्मण जन्म – भगवान तुल्य”, अव्यक्त मुरली 24 अप्रैल 1984, ब्रह्माकुमारीज, बापदादा, ब्रह्मा बाबा, शिव बाबा, माता तुल्य जीवन, ब्राह्मण आत्मा, स्वराज्य अधिकारी, विश्वराज्य, ज्ञान रत्न, गुण रत्न, भगवान का प्यार, गले का हार, ज्ञान की रास, अब नहीं तो कब नहीं, आत्म-चेकिंग, स्वराज्य की परीक्षा, राजयोग, आत्मा परमात्मा, ईश्वरीय ज्ञान, संगमयुग, ब्रह्माजी सार, ब्रह्माकुमारी हिंदी, बीके मुरली, बीके हिंदी मुरली, अव्यक्त मुरली, आज की मुरली, बदादा मुरली, परमात्म संदेश, शिवबाबा मुरली, ब्रह्माकुमारीज स्पीच, ब्रह्माकुमारीज ज्ञान, ओम शांति, बीके शिवबाबा, बीके राजयोग, बीके मोटिवेशन, बीके स्पीच हिंदी, आध्यात्मिक ज्ञान, हीरा जीवन, ब्रह्मा कुमारिस गुड़गांव, मीरा समान जीवन, आत्म निरीक्षण, स्वराज्य से विश्वराज्य, ज्ञान योग, आध्यात्मिक जीवन, आत्म ज्ञान, ब्रह्मा कुमारी दैनिक मुरली, ब्रह्मा कुमारी हिंदी क्लास, ओम शांति,Chapter “Present Brahmin Birth – God-Equal”, Avyakt Murli April 24, 1984, Brahma Kumaris, BapDada, Brahma Baba, Shiv Baba, Mother-like life, Brahmin soul, self-rule authority, world kingdom, gem of knowledge, gem of virtues, God’s love, necklace around the neck, dance of knowledge, if not now then when, self-checking, test of self-rule, Rajyoga, soul, Supreme Soul, divine knowledge, Confluence Age, Brahmaji Essence, Brahma Kumaris Hindi, BK Murli, BK Hindi Murli, Avyakt Murli, Today’s Murli, Badada Murli, God’s Message, Shivbaba Murli, Brahma Kumaris Speech, Brahma Kumaris Knowledge, Om Shanti, BK Shivbaba, BK Rajyoga, BK Motivation, BK Speech Hindi, spiritual knowledge, diamond life, Brahma Kumaris Gurgaon, life like Meera, self-introspection, from self-rule to world kingdom, Gyan Yoga, spiritual life, self-knowledge, Brahma Kumaris Daily Murli, Brahma Kumaris Hindi Class, Om Shanti,

