Avyakt Murli-(26)To follow the norms of Sangam era is to become Purushottam.

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अव्यक्त मुरली-(26)21-04-1983/ संगमयुगी मर्यादाओं पर चलना ही पुरूषोत्तम बनना है l

(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

प्रस्तावना

बापदादा ने आज बच्चों को समझाया कि संगमयुग की मर्यादाएँ ही आत्मा को मर्यादा पुरूषोत्तम बनाती हैं।
मर्यादाएँ केवल नियम नहीं हैं, बल्कि एक आध्यात्मिक सुरक्षा कवच हैं। यह हमें तमोगुणी वातावरण, वायुमंडल और वाइब्रेशन से बचाती हैं।


1. मर्यादाएँ क्यों आवश्यक हैं?

  • मर्यादाएँ आत्मा को अनुशासन, पवित्रता और सुरक्षा प्रदान करती हैं।

  • जो मर्यादा में रहते हैं, उन्हें मेहनत नहीं करनी पड़ती

  • जब हम संकल्प, वाणी या कर्म से मर्यादा की लकीर को पार कर देते हैं, तब मेहनत शुरू होती है।

उदाहरण:
जैसे रेलगाड़ी पटरियों पर चलती है तो सहज गति से आगे बढ़ती है। लेकिन यदि पटरी से उतर जाए तो दुर्घटना और मेहनत दोनों बढ़ जाते हैं।
इसी प्रकार मर्यादा आत्मा के लिए सुरक्षित पटरी है।


2. पहली मर्यादा – स्मृति भव

बापदादा ने आज स्मृति की मर्यादा को फाउंडेशन बताया।

  • “मैं आत्मा हूँ, यह भी आत्मा है” – यह स्मृति हमें निर्विघ्न बनाती है।

  • स्मृति में रहकर आत्मा अपने वृत्ति, दृष्टि और स्थिति को स्वतः श्रेष्ठ बना लेती है।

उदाहरण:
जैसे कोई डॉक्टर अपने पेशे की स्मृति में रहता है तो हर जगह बीमारी और इलाज पर ध्यान देता है। उसी प्रकार, जब आत्मा स्मृति स्वरूप रहती है, तो हर कार्य में श्रेष्ठता आती है।


3. समर्थ स्थिति का आसन – हंस आसन

  • बापदादा ने कहा – समर्थ स्थिति का आसन कभी छोड़ो मत।

  • हंस की विशेषता है – निर्णय शक्ति

  • पहले निर्णय करो – यह कर्म समर्थ है या व्यर्थ? फिर ही कर्म करो।

उदाहरण:
जैसे कोई जज निर्णय की कुर्सी पर बैठकर फैसला करता है, वैसे ही आत्मा स्मृति और समर्थ स्थिति में बैठकर हर कर्म का निर्णय करे।


4. मर्यादा पुरूषोत्तम की पहचान

  • मर्यादा पुरूषोत्तम वही है, जिसकी स्मृति उत्तम हो।

  • स्मृति से वृत्ति उत्तम, वृत्ति से दृष्टि उत्तम, और दृष्टि से स्थिति उत्तम बनती है।

  • तीनों कालों (आरम्भ, मध्य, अन्त) में समर्थ स्थिति ही मर्यादा पुरूषोत्तम की निशानी है।


5. बापदादा की विशेष मुलाकातें

(क) श्रेष्ठ भाग्य का दान

  • भाग्यविधाता बाप है तो बच्चे भी भाग्य बाँटने वाले हैं।

  • दुनिया वाले कपड़े, अनाज या पानी बाँटते हैं, परंतु ब्राह्मण आत्माएँ श्रेष्ठ भाग्य बाँटती हैं।

उदाहरण:
जैसे सूर्य अपनी रोशनी से सबको प्रकाशित करता है, वैसे ही आत्मा अपनी श्रेष्ठ भाग्य की स्मृति से औरों को उज्ज्वल भाग्य देती है।


(ख) संगमयुगी हीरे तुल्य आत्मा

  • ब्राह्मण जीवन की वैल्यू हीरे जैसी है।

  • बाप का बनना ही सच्चा भाग्य है – यही गीत आत्मा को निरंतर आनंदित रखता है।

  • हर समय आत्मा अपने नए-नए टाइटिल (आर्टिस्ट, डांसर, सेवक, फरिश्ता) का अनुभव करे।


6. सेवा और स्वयं का बैलेन्स

  • वर्तमान समय में सेवा और स्व-स्थिति दोनों का संतुलन आवश्यक है।

  • समय आने पर सेवा केवल मन्सा द्वारा करनी होगी, इसलिए अभी से अभ्यास जरूरी है।

  • पहले से ही अपने खजाने चेक करो – सर्वशक्तियों और गुणों से भरपूर हो।


 मुरली नोट्स (24 अप्रैल 1983)

  1. संगमयुगी मर्यादाएँ ही आत्मा को मर्यादा पुरूषोत्तम बनाती हैं।

  2. पहली मर्यादा – स्मृति भव ही समर्थ भव है।

  3. समर्थ स्थिति का आसन = हंस आसन = निर्णय शक्ति।

  4. ब्राह्मण आत्माएँ श्रेष्ठ भाग्य बाँटने वाली महादानी आत्माएँ हैं।

  5. ब्राह्मण जीवन हीरे तुल्य और देवताओं से भी ऊँचा है।

  6. सेवा और स्वयं का बैलेन्स रखना ही वर्तमान समय की मांग है।


 निष्कर्ष

मर्यादाओं पर चलना कोई बंधन नहीं, बल्कि आत्मा की स्वतंत्रता और श्रेष्ठता का मार्ग है।
जो आत्मा मर्यादा पुरूषोत्तम बनती है, वही सच्चे अर्थों में बापदादा की संतान और विश्व-सेवक कहलाती है।

संगमयुगी मर्यादाएँ और मर्यादा पुरूषोत्तम

प्रश्न 1: मर्यादाएँ आत्मा के लिए क्यों आवश्यक हैं?

उत्तर:
मर्यादाएँ आत्मा को अनुशासन, पवित्रता और सुरक्षा प्रदान करती हैं।

  • जो आत्मा मर्यादाओं में रहती है, उसके जीवन में सहजता और शक्ति रहती है।

  • मर्यादा से बाहर कदम रखते ही आत्मा को मेहनत करनी पड़ती है।

🔹 उदाहरण: जैसे रेलगाड़ी पटरियों पर चलती है तो सहज गति से आगे बढ़ती है। पटरी से उतरते ही दुर्घटना और मेहनत दोनों बढ़ जाते हैं। उसी तरह मर्यादा आत्मा के लिए सुरक्षित पटरी है।


प्रश्न 2: पहली मर्यादा – “स्मृति भव” को फाउंडेशन क्यों कहा गया है?

उत्तर:
“मैं आत्मा हूँ, यह भी आत्मा है” – यह स्मृति आत्मा को निर्विघ्न बना देती है।

  • स्मृति में रहकर आत्मा की वृत्ति, दृष्टि और स्थिति स्वतः श्रेष्ठ बनती है।

🔹 उदाहरण: जैसे कोई डॉक्टर अपने पेशे की स्मृति में रहता है तो हर जगह बीमारी और इलाज पर ध्यान देता है। उसी तरह आत्मा जब स्मृति स्वरूप रहती है, तो हर कार्य में श्रेष्ठता आती है।


प्रश्न 3: समर्थ स्थिति का आसन “हंस आसन” क्यों कहलाता है?

उत्तर:
हंस की विशेषता है – निर्णय शक्ति।

  • पहले यह निर्णय करो कि यह कर्म समर्थ है या व्यर्थ? फिर ही कर्म करो।

  • समर्थ स्थिति का आसन कभी नहीं छोड़ना चाहिए।

🔹 उदाहरण: जैसे कोई जज कुर्सी पर बैठकर निष्पक्ष निर्णय करता है, वैसे ही आत्मा समर्थ स्थिति में बैठकर हर कर्म का निर्णय करे।


प्रश्न 4: मर्यादा पुरूषोत्तम आत्मा की पहचान क्या है?

उत्तर:

  • मर्यादा पुरूषोत्तम वही है, जिसकी स्मृति हमेशा उत्तम हो।

  • स्मृति से वृत्ति उत्तम, वृत्ति से दृष्टि उत्तम, और दृष्टि से स्थिति उत्तम बनती है।

  • तीनों कालों (आरम्भ, मध्य, अन्त) में समर्थ स्थिति बनाए रखना ही उसकी निशानी है।


प्रश्न 5: ब्राह्मण आत्माएँ श्रेष्ठ भाग्य का दान कैसे करती हैं?

उत्तर:

  • भाग्यविधाता बाप के बच्चे भी भाग्य बाँटने वाले हैं।

  • दुनिया वाले वस्तुएँ बाँटते हैं, परंतु ब्राह्मण आत्माएँ श्रेष्ठ भाग्य बाँटती हैं।

🔹 उदाहरण: जैसे सूर्य अपनी रोशनी से सबको प्रकाशित करता है, वैसे ही आत्मा अपनी श्रेष्ठ स्मृति और वाइब्रेशन से औरों को उज्ज्वल भाग्य देती है।


प्रश्न 6: ब्राह्मण जीवन को “हीरे तुल्य” क्यों कहा गया है?

उत्तर:

  • ब्राह्मण जीवन की वैल्यू देवताओं से भी ऊँची है।

  • बाप का बनना ही सच्चा भाग्य है।

  • ब्राह्मण आत्मा हर समय अपने नए-नए टाइटल (आर्टिस्ट, डांसर, सेवक, फरिश्ता) का अनुभव कर सकती है।


प्रश्न 7: सेवा और स्वयं की स्थिति में बैलेन्स क्यों आवश्यक है?

उत्तर:

  • वर्तमान समय में केवल बाहरी सेवा ही नहीं, बल्कि स्व-स्थिति पर ध्यान देना भी जरूरी है।

  • समय आने पर सेवा केवल मन्सा द्वारा करनी होगी, इसलिए अभी से अभ्यास जरूरी है।

  • अपने खजाने (सर्वशक्तियों और गुणों) को पहले से ही भरपूर रखना आवश्यक है।


मुरली नोट्स (24 अप्रैल 1983)

  • संगमयुगी मर्यादाएँ ही आत्मा को मर्यादा पुरूषोत्तम बनाती हैं।

  • पहली मर्यादा – स्मृति भव ही समर्थ भव है।

  • समर्थ स्थिति का आसन = हंस आसन = निर्णय शक्ति।

  • ब्राह्मण आत्माएँ श्रेष्ठ भाग्य बाँटने वाली महादानी आत्माएँ हैं।

  • ब्राह्मण जीवन हीरे तुल्य और देवताओं से भी ऊँचा है।

  • सेवा और स्वयं का बैलेन्स रखना ही वर्तमान समय की मांग है।

डिस्क्लेमर:यह वीडियो/लेख ब्रह्माकुमारीज संस्था की शिक्षाओं और अव्यक्त मुरली के आधार पर आध्यात्मिक अध्ययन हेतु तैयार किया गया है। इसका उद्देश्य केवल आत्मिक जागृति और व्यक्तिगत विकास है, न कि किसी धार्मिक विवाद को बढ़ावा देना।

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