MURLI 03-11-2025 |BRAHMA KUMARIS


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Questions & Answers (प्रश्नोत्तर):are given below

03-11-2025
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
मधुबन
“मीठे बच्चे – बाप आये हैं वाइसलेस दुनिया बनाने, तुम्हारे कैरेक्टर सुधारने, तुम भाई-भाई हो तो तुम्हारी दृष्टि बहुत शुद्ध होनी चाहिए”
प्रश्नः- तुम बच्चे बेफिक्र बादशाह हो फिर भी तुम्हें एक मूल फिकरात अवश्य होनी चाहिए – कौन सी?
उत्तर:- हम पतित से पावन कैसे बनें – यह है मूल फिकरात। ऐसा न हो बाप का बनकर फिर बाप के आगे सज़ायें खानी पड़ें। सज़ाओं से छूटने की फिकरात रहे, नहीं तो उस समय बहुत लज्जा आयेगी। बाकी तुम बेपरवाह बादशाह हो, सबको बाप का परिचय देना है। कोई समझता है तो बेहद का मालिक बनता, नहीं समझता है तो उसकी तकदीर। तुम्हें परवाह नहीं।

ओम् शान्ति। रूहानी बाप जिसका नाम शिव है, वह बैठ अपने बच्चों को समझाते हैं। रूहानी बाप सभी का एक ही है। पहले-पहले यह बात समझानी है तो फिर आगे समझना सहज होगा। अगर बाप का परिचय ही नहीं मिला होगा तो प्रश्न करते रहेंगे। पहले-पहले तो यह निश्चय कराना है। सारी दुनिया को यह पता नहीं है कि गीता का भगवान कौन है। वह श्रीकृष्ण के लिए कह देते, हम कहते परमपिता परमात्मा शिव गीता का भगवान है। वही ज्ञान का सागर है। मुख्य है सर्वशास्त्र मई शिरोमणि गीता। भगवान के लिए ही कहते हैं – हे प्रभू तेरी गत मत न्यारी। श्रीकृष्ण के लिए ऐसे नहीं कहेंगे। बाप जो सत्य है वह जरूर सत्य ही सुनायेंगे। दुनिया पहले नई सतोप्रधान थी। अभी दुनिया पुरानी तमोप्रधान है। दुनिया को बदलने वाला एक बाप ही है। बाप कैसे बदलते हैं वह भी समझाना चाहिए। आत्मा जब सतोप्रधान बनें तब दुनिया भी सतोप्रधान स्थापन हो। पहले-पहले तुम बच्चों को अन्तर्मुख होना है। जास्ती तीक-तीक नहीं करनी है। अन्दर घुसते हैं तो बहुत चित्र देख पूछते ही रहते हैं। पहले-पहले समझानी ही एक बात चाहिए। जास्ती पूछने की मार्जिन न मिले। बोलो, पहले तो एक बात पर निश्चय करो फिर आगे समझायें फिर तुम 84 जन्मों के चक्र पर ले आ सकते हो। बाप कहते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त में प्रवेश करता हूँ। इनको ही बाप कहते हैं – तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो। बाप हमको प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा समझाते हैं। पहले-पहले अल्फ पर ही समझाते हैं। अल्फ समझने से फिर कोई संशय नहीं होगा। बोलो बाप सत्य है, वह भी असत्य नहीं सुनाते। बेहद का बाप ही राजयोग सिखलाते हैं। शिवरात्रि गाई जाती है तो जरूर शिव यहाँ आये होंगे ना। जैसे श्रीकृष्ण जयन्ती भी यहाँ मनाते हैं। कहते हैं मैं ब्रह्मा द्वारा स्थापना करता हूँ। उस एक ही निराकार बाप के सब बच्चे हैं। तुम भी उनकी औलाद हो और फिर प्रजापिता ब्रह्मा की भी औलाद हो। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा स्थापना की तो जरूर ब्राह्मण-ब्राह्मणियां होंगे। बहन-भाई हो गये, इसमें पवित्रता रहती है। गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र रहने की यह है भीती। बहन-भाई हैं तो कभी क्रिमिनल दृष्टि नहीं होनी चाहिए। 21 जन्म दृष्टि सुधर जाती है। बाप ही बच्चों को शिक्षा देंगे ना। कैरेक्टर सुधारते हैं। अभी सारी दुनिया के कैरेक्टर सुधरने हैं। इस पुरानी पतित दुनिया में कोई कैरेक्टर नहीं। सबमें विकार हैं। यह है ही पतित विशश दुनिया। फिर वाइसलेस दुनिया कैसे बनेंगी? सिवाए बाप के कोई बना न सके। अभी बाप पवित्र बना रहे हैं। यह हैं सब गुप्त बातें। हम आत्मा हैं, आत्मा को परमात्मा बाप से मिलना है। सब पुरुषार्थ करते ही हैं भगवान से मिलने के लिए। भगवान एक निराकार है। लिबरेटर, गाइड भी परमात्मा को ही कहा जाता है। दूसरे धर्म वाले कोई को लिबरेटर, गाइड नहीं कहेंगे। परमपिता परमात्मा ही आकर लिबरेट करते हैं अर्थात् तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाते हैं। गाइड भी करते हैं तो पहले-पहले यह एक ही बात बुद्धि में बिठाओ। अगर न समझें तो छोड़ देना चाहिए। अल्फ को नहीं समझा तो बे से क्या फायदा, भल चले जायें। तुम मूँझो नहीं। तुम बेपरवाह बादशाह हो। असुरों के विघ्न पड़ने ही हैं। यह है ही रूद्र ज्ञान यज्ञ। तो पहले-पहले बाप का परिचय देना है। बाप कहते हैं मनमनाभव। जितना पुरुषार्थ करेंगे उस अनुसार पद पायेंगे। आदि सनातन देवी-देवता धर्म का राज्य स्थापन हो रहा है। इन लक्ष्मी-नारायण की डिनायस्टी है। और धर्म वाले कोई डिनायस्टी स्थापन नहीं करते हैं। बाप तो आकर सबको मुक्त करते हैं। फिर अपने-अपने समय पर और-और धर्म स्थापकों को आकर अपना धर्म स्थापन करना है। वृद्धि होनी है। पतित बनना ही है। पतित से पावन बनाना यह तो बाप का ही काम है। वह तो सिर्फ आकर धर्म स्थापन करेंगे। उसमें बड़ाई की बात ही नहीं। महिमा है ही एक की। वो तो क्राइस्ट के पिछाड़ी कितना करते हैं। उनको भी समझाया जाए लिबरेटर गाइड तो गॉड फादर ही है। उनके पिछाड़ी क्रिश्चियन धर्म की आत्मायें आती रहती हैं, नीचे उतरती रहती हैं। दु:ख से छुड़ाने वाला तो एक ही बाप है। यह सब प्वाइंट्स बुद्धि में अच्छी रीति धारण करनी है। एक गॉड को ही मर्सीफुल कहा जाता है। एक भी मनुष्य किसी पर मर्सी नहीं करते। मर्सी होती है बेहद की। एक बाप ही सब पर रहम करते हैं। सतयुग में सब सुख-शान्ति में रहते हैं। दु:ख की बात ही नहीं। बच्चे एक बात अल्फ पर किसको निश्चय कराते नहीं, और-और बातों में चले जाते हैं फिर कहते गला ही खराब हो गया। पहले-पहले बाप का परिचय देना है। तुम और बातों में जाओ ही नहीं। बोलो, बाप तो सत्य बोलेंगे ना। हम बी.के. को बाप ही सुनाते हैं। यह चित्र सब उसने बनवाये हैं, इसमें संशय नहीं लाना चाहिए। संशयबुद्धि विनशन्ती। पहले तुम अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। और कोई उपाय नहीं। पतित-पावन तो एक ही है ना। बाप कहते हैं देह के सब सम्बन्ध छोड़ मामेकम् याद करो। बाप जिसमें प्रवेश करते हैं, उनको भी फिर पुरुषार्थ कर सतोप्रधान बनना है। बनेंगे पुरुषार्थ से फिर ब्रह्मा और विष्णु का कनेक्शन भी बताते हैं। बाप तुम ब्राह्मणों को राज-योग सिखलाते हैं तो तुम विष्णुपुरी के मालिक बनते हो। फिर तुम ही 84 जन्म ले अन्त में शूद्र बनते हो। फिर बाप आकर शूद्र से ब्राह्मण बनाते हैं। ऐसे और कोई बता न सके। पहली-पहली बात है बाप का परिचय देना। बाप कहते हैं मुझे ही पतितों को पावन बनाने यहाँ आना पड़ता है। ऐसे नहीं कि ऊपर से प्रेरणा देता हूँ। इनका ही नाम है भागीरथ। तो जरूर इनमें ही प्रवेश करेंगे। यह है भी बहुत जन्मों के अन्त का जन्म। फिर सतोप्रधान बनते हैं। उसके लिए बाप युक्ति बताते हैं कि अपने को आत्मा समझ मामेकम् याद करो। मैं ही सर्वशक्तिमान् हूँ। मुझे याद करने से तुम्हारे में शक्ति आयेगी। तुम विश्व के मालिक बनेंगे। यह लक्ष्मी-नारायण का वर्सा इन्हों को बाप से मिला है। कैसे मिला वह समझाते हैं। प्रदर्शनी, म्युजियम आदि में भी तुम कह दो कि पहले एक बात को समझो, फिर और बातों में जाना। यह बहुत जरूरी है समझना। नहीं तो तुम दु:ख से छूट नहीं सकेंगे। पहले जब तक निश्चय नहीं किया है तो तुम कुछ समझ नहीं सकेंगे। इस समय है ही भ्रष्टाचारी दुनिया। देवी-देवताओं की दुनिया श्रेष्ठाचारी थी। ऐसे-ऐसे समझाना है। मनुष्यों की नब्ज भी देखनी चाहिए – कुछ समझता है या तवाई है? अगर तवाई है तो फिर छोड़ देना चाहिए। टाइम वेस्ट नहीं करना चाहिए। चात्रक, पात्र को परखने की भी बुद्धि चाहिए। जो समझने वाला होगा उनका चेहरा ही बदल जायेगा। पहले-पहले तो खुशी की बात देनी है। बेहद के बाप से बेहद का वर्सा मिलता है ना। बाबा जानते हैं याद की यात्रा में बच्चे बहुत ढीले हैं। बाप को याद करने की मेहनत है। उसमें ही माया बहुत विघ्न डालती है। यह भी खेल बना हुआ है। बाप बैठ समझाते हैं – कैसे यह खेल बना-बनाया है। दुनिया के मनुष्य तो रिंचक भी नहीं जानते।

बाप की याद में रहने से तुम किसको समझाने में भी एकरस होंगे। नहीं तो कुछ न कुछ नुक्स (कमी) निकालते रहेंगे। बाबा कहते हैं तुम जास्ती कुछ भी तकलीफ न लो। स्थापना तो जरूर होनी ही है। भावी को कोई भी टाल नहीं सकते। हुल्लास में रहना चाहिए। बाप से हम बेहद का वर्सा ले रहे हैं। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। बहुत प्रेम से बैठ समझाना है। बाप को याद करते प्रेम में आंसू आ जाने चाहिए। और तो सभी सम्बन्ध हैं कलियुगी। यह है रूहानी बाप का सम्बन्ध। यह तुम्हारे आंसू भी विजयमाला के दाने बनते हैं। बहुत थोड़े हैं – जो ऐसा प्रेम से बाप को याद करते हैं। कोशिश कर जितना हो सके अपना टाइम निकाल अपने भविष्य को ऊंचा बनाना चाहिए। प्रदर्शनी में इतने ढेर बच्चे नहीं होने चाहिए। न इतने चित्रों की दरकार है। नम्बरवन चित्र है गीता का भगवान कौन? उसके बाजू में लक्ष्मी-नारायण का, सीढ़ी का। बस। बाकी इतने चित्र कोई काम के नहीं। तुम बच्चों को जितना हो सके याद की यात्रा को बढ़ाना है। मूल फिकरात रखनी है कि पतित से पावन कैसे बनें! बाबा का बनकर और फिर बाबा के आगे जाकर सज़ा खायें यह तो बड़ी दुर्गति की बात है। अभी याद की यात्रा पर नहीं रहेंगे तो फिर बाप के आगे सज़ा खाने समय बहुत-बहुत लज्जा आयेगी। सज़ा न खानी पड़े, यह सबसे जास्ती फुरना रखना है। तुम रूप भी हो, बसन्त भी हो। बाबा भी कहते हैं मैं रूप भी हूँ, बसन्त भी हूँ। छोटी सी बिन्दी हूँ और फिर ज्ञान का सागर भी हूँ। तुम्हारी आत्मा में सारा ज्ञान भरते हैं। 84 जन्मों का सारा राज़ तुम्हारी बुद्धि में है। तुम ज्ञान का स्वरूप बन ज्ञान की वर्षा करते हो। ज्ञान का एक-एक रत्न कितना अमूल्य है, इनकी वैल्यु कोई कर न सके इसलिए बाबा कहते हैं पदमापदम भाग्यशाली। तुम्हारे चरणों में पदम की निशानी भी दिखाते हैं, इनको कोई समझ न सके। मनुष्य पदमपति नाम रखते हैं। समझते हैं इनके पास बहुत धन है। पदमपति का एक सरनेम भी रखते हैं। बाप सब बातें समझाते हैं। फिर कहते हैं – मूल बात है कि बाप को और 84 के चक्र को याद करो। यह नॉलेज भारतवासियों के लिए ही है। तुम ही 84 जन्म लेते हो। यह भी समझ की बात है ना। और कोई संन्यासी आदि को स्वदर्शन चक्रधारी भी नहीं कहेंगे। देवताओं को भी नहीं कहेंगे। देवताओं में ज्ञान होता ही नहीं। तुम कहेंगे हमारे में सारा ज्ञान है, इन लक्ष्मी-नारायण में नहीं है। बाप तो यथार्थ बात समझाते हैं ना।

यह ज्ञान बड़ा वन्डरफुल है। तुम कितने गुप्त स्टूडेन्ट हो। तुम कहेंगे हम पाठशाला में जाते हैं, भगवान हमको पढ़ाते हैं। एम ऑब्जेक्ट क्या है? हम यह (लक्ष्मी-नारायण) बनेंगे। मनुष्य सुनकर वन्डर खायेंगे। हम अपने हेड ऑफिस में जाते हैं। क्या पढ़ते हो? मनुष्य से देवता, बेगर से प्रिन्स बनने की पढ़ाई पढ़ रहे हो। तुम्हारे चित्र भी फर्स्टक्लास हैं। धन दान भी हमेशा पात्र को किया जाता है। पात्र तुमको कहाँ मिलेंगे? शिव के, लक्ष्मी-नारायण के, राम-सीता के मन्दिरों में। वहाँ जाकर तुम उन्हों की सेवा करो। अपना टाइम वेस्ट नहीं करो। गंगा नदी पर भी जाकर तुम समझाओ – पतित-पावनी गंगा है या परमपिता परमात्मा है? सर्व की सद्गति यह पानी करेगा या बेहद का बाप करेगा? तुम इस पर अच्छी रीति समझा सकते हो। विश्व का मालिक बनने का रास्ता बताते हो। दान करते हो, कौड़ी जैसे मनुष्य को हीरे जैसे विश्व का मालिक बनाते हो। भारत विश्व का मालिक था ना। तुम ब्राह्मणों का देवताओं से भी उत्तम कुल है। यह बाबा तो समझते हैं – मैं बाप का एक ही सिकीलधा बच्चा हूँ। बाबा ने हमारा यह शरीर लोन पर लिया है। तुम्हारे सिवाए और कोई भी यह बातें समझ न सकें। बाबा की हमारे पर सवारी की हुई है। हमने बाबा को कुल्हे पर बिठाया है अर्थात् शरीर दिया है कि सर्विस करो। उनका एवजा फिर वह कितना देते हैं। जो हमको सबसे ऊंच कन्धे पर चढ़ाते हैं। नम्बरवन ले जाते हैं। बाप को बच्चे प्यारे लगते हैं, तो उनको कन्धे पर चढ़ाते हैं ना। मॉ बच्चे को सिर्फ गोद तक लेती है बाप तो कन्धे पर चढ़ाते हैं। पाठशाला को कभी कल्पना नहीं कहा जाता। स्कूल में हिस्ट्री-जॉग्राफी पढ़ते हैं तो क्या वह कल्पना हुई? यह भी वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी है ना। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) बहुत प्रेम से बैठकर रूहानी बाप को याद करना है। याद में प्रेम के आंसू आ जायें तो वह आंसू विजय माला का दाना बन जायेंगे। अपना समय भविष्य प्रालब्ध बनाने में सफल करना है।

2) अन्तर्मुखी हो सबको अल्फ का परिचय देना है, ज्यादा तीक-तीक नहीं करनी है। एक ही फुरना रहे कि ऐसा कोई कर्तव्य न हो जिसकी सज़ा खानी पड़े।

वरदान:- रूहानी यात्री हूँ – इस स्मृति से सदा उपराम, न्यारे और निर्मोही भव
रूहानी यात्री सदा याद की यात्रा में आगे बढ़ते रहते हैं, यह यात्रा सदा ही सुखदाई है। जो रूहानी यात्रा में तत्पर रहते हैं, उन्हें दूसरी कोई यात्रा करने की आवश्यकता नहीं। इस यात्रा में सब यात्रायें समाई हुई हैं। मन वा तन से भटकना बंद हो जाता है। तो सदा यही स्मृति रहे कि हम रूहानी यात्री हैं, यात्री का किसी में भी मोह नहीं होता। उन्हें सहज ही उपराम, न्यारे वा निर्मोही बनने का वरदान मिल जाता है।
स्लोगन:- सदा वाह बाबा, वाह तकदीर और वाह मीठा परिवार – यही गीत गाते रहो।

 

अव्यक्त इशारे – अशरीरी व विदेही स्थिति का अभ्यास बढ़ाओ

जैसे बाप को सर्व स्वरूपों से वा सर्व सम्बन्धों से जानना आवश्यक है, ऐसे ही बाप द्वारा स्वयं को भी जानना आवश्यक है। जानना अर्थात् मानना। मैं जो हूँ, जैसा हूँ, ऐसे मानकर चलेंगे तो देह में विदेही, व्यक्त में होते अव्यक्त, चलते-फिरते फरिश्ता वा कर्म करते हुए कर्मातीत स्थिति बन जायेगी।

प्रश्न 1:

तुम बच्चे बेफिक्र बादशाह हो, फिर भी तुम्हें एक मूल फिकरात अवश्य होनी चाहिए — कौन सी?

 उत्तर:
हम पतित से पावन कैसे बनें — यह है मूल फिकरात।
ऐसा न हो कि बाप का बनकर फिर बाप के आगे सज़ायें खानी पड़ें।
सज़ाओं से छूटने की यही फिकरात रहे, नहीं तो उस समय बहुत लज्जा आयेगी।
बाकी हम बेपरवाह बादशाह हैं — सबको बाप का परिचय देना है।


प्रश्न 2:

रूहानी बाप कौन है और वह क्या कार्य करते हैं?

 उत्तर:
रूहानी बाप का नाम शिव है।
वह स्वयं निराकार होकर ब्रह्मा के तन में प्रवेश करते हैं और अपने रूहानी बच्चों को समझाते हैं।
वह ही पतितों को पावन बनाने, वाइसलेस दुनिया की स्थापना करने और आत्माओं का कैरेक्टर सुधारने आये हैं।


प्रश्न 3:

गीता का सच्चा भगवान कौन है — शिव या श्रीकृष्ण?

 उत्तर:
गीता का भगवान परमपिता परमात्मा शिव हैं, न कि श्रीकृष्ण।
शिव ही ज्ञान का सागर हैं, वही सर्वशास्त्र-मयी शिरोमणि गीता का ज्ञान सुनाते हैं।
श्रीकृष्ण तो उस ज्ञान का प्रथम फल हैं — सतोप्रधान आत्मा के रूप में।


प्रश्न 4:

बाप कहते हैं – “पहले-पहले यह निश्चय कराओ” — इसका अर्थ क्या है?

 उत्तर:
पहले-पहले आत्मा को “अल्फ” अर्थात् एक बाप का परिचय समझाना है।
जब तक बाप का निश्चय नहीं होगा, बाकी सारा ज्ञान व्यर्थ रहेगा।
“अल्फ” को जान लेने से फिर कोई संशय नहीं रहता — यही सच्चा आरंभ है।


प्रश्न 5:

दुनिया को बदलने वाला कौन है और कैसे बदलते हैं?

 उत्तर:
दुनिया को बदलने वाला केवल एक ही बाप शिव हैं।
वह आत्माओं को सतोप्रधान बनाते हैं, जिससे नई सतोप्रधान दुनिया की स्थापना होती है।
आत्मा के शुद्ध होने से ही संसार शुद्ध बनता है।


प्रश्न 6:

बाप क्यों कहते हैं — “तुम भाई-भाई हो, दृष्टि बहुत शुद्ध होनी चाहिए”?

 उत्तर:
क्योंकि सभी आत्माएँ एक ही परमपिता की संतान हैं।
जब यह निश्चय बुद्धि में बैठता है, तो एक-दूसरे के प्रति दृष्टि स्वतः पवित्र हो जाती है।
यह “भाई-भाई” दृष्टि ही विकार-मुक्त जीवन का आधार है।


प्रश्न 7:

गृहस्थ व्यवहार में पवित्र रहने की “भीती” क्या है?

 उत्तर:
गृहस्थ में रहते हुए भी हमें स्वयं को “भाई-बहन” समझना है।
यदि यह दृष्टि स्थिर रही तो क्रिमिनल दृष्टि नहीं उठेगी।
यह पवित्रता ही 21 जन्मों की शुद्ध दृष्टि का बीज है।


प्रश्न 8:

कैरेक्टर सुधारने वाला कौन है?

 उत्तर:
कैरेक्टर सुधारने वाला केवल एक परमात्मा शिव है।
वह आत्माओं को ज्ञान और योग की शक्ति से संस्कार बदलना सिखाते हैं।
मनुष्य विकारों से भरे हैं, इसलिए वाइसलेस कैरेक्टर की स्थापना बाप ही करते हैं।


प्रश्न 9:

“अल्फ” को नहीं समझा तो “बे” का क्या फायदा? — इसका क्या भाव है?

 उत्तर:
“अल्फ” अर्थात् बाप का परिचय ही मूल है।
यदि यह ही निश्चय नहीं हुआ, तो आगे के ज्ञान का कोई लाभ नहीं।
बाप को न जानने वाला सारा समय व्यर्थ गँवा देता है।


प्रश्न 10:

बाप कहते हैं — “मनमनाभव” — इसका अर्थ क्या है?

 उत्तर:
“मनमनाभव” अर्थात् —
अपने मन को मेरे में लगाओ,
अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो।
यही याद की यात्रा विकर्मों को भस्म करती है और सतोप्रधान स्थिति बनाती है।


प्रश्न 11:

लिबरेटर और गाइड किसे कहा जाता है?

 उत्तर:
केवल परमपिता परमात्मा शिव को ही “लिबरेटर” और “गाइड” कहा जाता है।
वही हमें तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाकर मुक्ति और जीवनमुक्ति दोनों का रास्ता दिखाते हैं।


प्रश्न 12:

बाप कहते हैं — “देह के सब सम्बन्ध छोड़ मामेकम् याद करो” — इसका क्या अर्थ है?

उत्तर:
इसका अर्थ है कि देह और देह के सब सम्बन्धों की स्मृति छोड़कर केवल एक बाप को याद करो।
क्योंकि वही सर्वशक्तिमान है — उसी की याद से शक्ति मिलती है और आत्मा पवित्र बनती है।


प्रश्न 13:

ब्रह्मा और विष्णु का सम्बन्ध क्या है?

 उत्तर:
ब्रह्मा ही पुरूषार्थ से विष्णु बनते हैं।
बाप ब्रह्मा के द्वारा ब्राह्मण कुल की स्थापना करते हैं, और यही ब्राह्मण आगे चलकर देवता (विष्णु) बनते हैं।


प्रश्न 14:

बाप कहते हैं — “तुम रूप भी हो, बसन्त भी हो” — इसका क्या भाव है?

 उत्तर:
“रूप” अर्थात् आत्मा की ज्ञानमय स्थिति,
और “बसन्त” अर्थात् ज्ञान की वर्षा करने वाला।
जैसे बाबा ज्ञान सागर हैं, वैसे ही बच्चे भी ज्ञान-वर्षा करने वाले बनें।


प्रश्न 15:

सच्ची फिकर क्या रखनी चाहिए?

 उत्तर:
सच्ची फिकर यही है कि —
“कहीं बाबा के आगे सज़ा खानी न पड़े।”
इसलिए याद की यात्रा पर रहना और विकर्मों से मुक्त होना ही असली फिकर है।


प्रश्न 16:

ज्ञान का एक-एक रत्न अमूल्य क्यों कहा गया है?

 उत्तर:
क्योंकि यह ज्ञान आत्मा को हीरे समान बना देता है।
एक-एक ज्ञान बिन्दु आत्मा के भाग्य को पदमापदम बढ़ाता है।
इसलिए कहा गया है — “ज्ञान का एक-एक रत्न अमूल्य है।”


प्रश्न 17:

“रूहानी यात्री हूँ” — इस स्मृति से क्या लाभ मिलता है?

 उत्तर:
इस स्मृति से आत्मा सदा उपराम, न्यारी और निर्मोही बन जाती है।
जब हम स्वयं को रूहानी यात्री समझते हैं, तो देह या किसी व्यक्ति में मोह नहीं रहता।
यह यात्रा ही आत्मा को स्थायी सुख देती है।


प्रश्न 18:

बाप की याद में प्रेम के आँसू आ जायें तो उसका क्या फल मिलता है?

 उत्तर:
बाप की याद में आने वाले प्रेम के आँसू “विजय माला के दाने” बन जाते हैं।
यह आँसू आत्मा की सच्ची लगन और बाप के प्रति प्यार का प्रतीक हैं।


प्रश्न 19:

मूल धारणा क्या रखनी चाहिए?

 उत्तर:
 बहुत प्रेम से रूहानी बाप को याद करना — यही विकर्म विनाश का मार्ग है।
 अन्तर्मुखी होकर सबको “अल्फ” अर्थात् बाप का परिचय देना — यही सच्ची सेवा है।


प्रश्न 20:

बाबा का वरदान क्या है?

 उत्तर:
“रूहानी यात्री हूँ” — इस स्मृति से सदा उपराम, न्यारे और निर्मोही भव।
जो रूहानी यात्रा में तत्पर रहते हैं, उन्हें दूसरी कोई यात्रा करने की आवश्यकता नहीं होती।


प्रश्न 21:

आज का स्लोगन क्या है?

 उत्तर:
“सदा वाह बाबा, वाह तकदीर और वाह मीठा परिवार — यही गीत गाते रहो।”


प्रश्न 22:

अव्यक्त इशारा क्या है?

 उत्तर:
“अशरीरी व विदेही स्थिति का अभ्यास बढ़ाओ।”
देह में रहकर भी देही-अभिमानी स्थिति में रहना — यही कर्म करते हुए कर्मातीत बनना है।

डिस्क्लेमर (Disclaimer):यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ (Brahma Kumaris) की शिक्षाओं और मुरली-संदेशों पर आधारित आध्यात्मिक प्रस्तुति है। इसका उद्देश्य आत्म-उन्नति, शुद्ध दृष्टि, और ईश्वरीय ज्ञान के प्रचार द्वारा वाइसलेस (पवित्र) जीवन की प्रेरणा देना है। यह किसी धर्म, संप्रदाय या व्यक्ति विशेष की आलोचना नहीं करता। “ओम् शान्ति” — यह आत्म-शान्ति और परमात्म-स्मृति का प्रतीक है।

मीठे बच्चे, वाइसलेस दुनिया, परमपिता परमात्मा शिव, ब्रह्मा बाबा, प्रजापिता ब्रह्मा, ब्रह्माकुमारिज, साकार मुरली, 27 फरवरी 1966 मुरली, आज की मुरली, बाबा का संदेश, पतित से पावन, अल्फ और बे, मनमनाभव, मामेकम् याद करो, आत्मा और परमात्मा, रूहानी बाप, राजयोग, गीता का भगवान कौन, शिव भगवान गीता का वक्ता, श्रीकृष्ण नहीं शिव गीता के भगवान, ब्राह्मण जीवन, पवित्रता का जीवन, वाइसलेस दुनिया की स्थापना, देवी देवता धर्म, लक्ष्मी नारायण, शिवरात्रि का अर्थ, आत्मा को याद, विकर्म विनाश, याद की यात्रा, माया पर विजय, सच्चा लिबरेटर, सच्चा गाइड, कर्मातीत स्थिति, रूहानी यात्री, रूहानी यात्रा, बी.के. मुरली, ब्रह्माकुमारी ज्ञान, ईश्वरीय ज्ञान, भगवान का परिचय, बेहद का बाप, बेहद का वर्सा, बाबा की याद, आत्मा का स्वरूप, रूहानी दृष्टि, भाई-भाई दृष्टि, विकारमुक्त जीवन, स्वदर्शन चक्रधारी, 84 जन्मों का चक्र, सतोप्रधान स्थिति, पुरूषार्थ, रूहानी शिक्षा, सत्यता, ब्रह्माकुमारिज शिवबाबा मुरली, ब्रह्मा के द्वारा स्थापना, विश्व परिवर्तन, सुख शांति संसार, बाबा की श्रीमत, अशरीरी स्थिति, विदेही स्थिति, अव्यक्त इशारे, वाह बाबा वाह तकदीर, मुरली सार, मुरली प्रश्नोत्तर, मुरली व्याख्या, ब्रह्माकुमारी ज्ञान योग, BK मुरली हिंदी, Shivbaba Murli Today, BK Today Murli, BK Hindi Murli, Shiv Baba Murli Points, Rajyog Meditation, Murli Essence, Brahma Kumaris India, Spiritual Murli Class, BK Spiritual Knowledge, Om Shanti,Sweet children, viceless world, Supreme Father Supreme Soul Shiva, Brahma Baba, Prajapita Brahma, Brahma Kumaris, sakar murli, 27 February 1966 murli, today’s murli, Baba’s message, purifier from impure, Alpha and Beta, Manmanabhav, remember Me alone, soul and Supreme Soul, spiritual Father, Rajyoga, who is the God of the Gita, Lord Shiva is the speaker of the Gita, Shiva is the Lord of the Gita, not Shri Krishna, Brahmin life, life of purity, establishment of the viceless world, deity religion, Lakshmi Narayan, meaning of Shivratri, remembering the soul, destruction of sins, journey of remembrance, victory over Maya, true liberator, true guide, karmateet stage, spiritual traveller, spiritual journey, BK. Murli, Brahma Kumari Knowledge, Divine Knowledge, Introduction to God, Unlimited Father, Unlimited Inheritance, Baba’s Remembrance, Nature of Soul, Spiritual Vision, Brother-Brother Vision, Disorder-free Life, Self-Darshan Chakradhari, Cycle of 84 Births, Satopradhaan Stage, Effort, Spiritual Education, Truthfulness, Brahma Kumaris Shivbaba Murli, Establishment through Brahma, World Transformation, Happiness and Peace in the World, Baba’s Shrimat, Bodily Stage, Abideh Stage, Avyakt Gestures, Wah Baba Wah Takdeer, Murli Essence, Murli Q&A, Murli Explanation, Brahma Kumari Gyan Yoga, BK Murli Hindi, Shivbaba Murli Today, BK Today Murli, BK Hindi Murli, Shiv Baba Murli Points, Rajyog Meditation, Murli Essence, Brahma Kumaris India, Spiritual Murli Class, BK Spiritual Knowledge, Om Shanti,