Satya Yuga – (21) Music, makeup and dress of Satya Yuga: where everything is natural

सतयुग-(21) सतयुग का संगीत, श्रृंगार और ड्रेस: जहाँ सब कुछ नैचुरल है

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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सतयुग का संगीत, श्रृंगार और ड्रेस: जहाँ सब कुछ नैचुरल है!

वहाँ रतन-जड़ित साज़ होंगे, नैचुरल साज़ होंगे, मेहनत वाले नहीं होंगे। अंगुली रखी और बजा। ड्रेस तो बहुत अच्छी पहनेंगे, जैसा कार्य, जैसा स्थान होगा वैसी ड्रेस होगी। भिन्न-भिन्न ड्रेस पहनेंगे। श्रृंगार भी बहुत प्रकार के होंगे। भिन्न-भिन्न प्रकार के ताज होंगे, गहने होंगे। लेकिन बोझ वाले नहीं होगे।

 आज हम आपको ले चलेंगे उस दिव्यता से भरपूर युग की एक झलक देने

जहाँ संगीत भी रतन-जड़ित, ड्रेस भी आत्मिक शान से भरी,

और श्रृंगार भी बोझ नहीं, सौंदर्य की सहज अभिव्यक्ति है।

यह है सतयुग जहाँ सब कुछ श्रेष्ठतम है, लेकिन सहज है।

सतयुग का दिव्य संगीत वहाँ के साज़ रतन-जड़ित होंगे,

लेकिन ये कोई भारी, बोझिल या मेहनत वाले साज़ नहीं होंगे।बल्कि नैचुरल साज़ होंगे

जहाँ बस अंगुली रखी और वे स्वतः बज उठेंगे।

 कोई विशेष प्रयत्न नहीं,लेकिन हर स्वर, हर ध्वनि,सुखद अनुभूति में डुबो देने वाली होगी।

जैसे आत्मा के भीतर की शांति बाहर संगीत बनकर बह रही हो।

 भव्य लेकिन सहज ड्रेस सतयुग की आत्माएँ बहुत अच्छी ड्रेस पहनेंगी,

लेकिन वह ड्रेस उस आत्मा के स्थान और कार्य के अनुसार होगी।

ड्रेस कोई एक जैसी नहीं होगी बल्कि हर आत्मा की स्थिति, भूमिका, और स्थान के अनुसार

भिन्न-भिन्न दिव्य पोशाक होगी। ड्रेस होगी लेकिन दिखावे की नहीं,बल्कि स्वाभाविक रॉयल्टी की पहचान।

 श्रृंगार: सौंदर्य की सहज अभिव्यक्ति वहाँ का श्रृंगार बहुत प्रकार के होंगे।ताज होंगे, गहने होंगे

लेकिन बिल्कुल भी बोझ नहीं होंगे।

 गहने होंगे, लेकिन आत्मा को ऐसा अनुभव नहीं होगा कि कुछ पहना है।

बल्कि हर गहना आत्मा की संपन्नता, सज्जा, और संस्कारों की पहचान होगा।

 ताज: आत्म-सम्मान का प्रतीक सतयुग में भिन्न-भिन्न प्रकार के ताज होंगे।

हर ताज आत्मा के राज्य अधिकार, गुणों, और कर्तव्य का प्रतीक होगा।

परंतु वह ताज भी कोई भारी या थोपे हुए नहीं होंगे,

बल्कि नैचुरल, लाइट, और आनंददायक होंगे।

 निष्कर्ष: जहाँ सब कुछ सहज है सतयुग कोई भारी व्यवस्था नहीं है।

वहाँ सब कुछ है संगीत, श्रृंगार, वैभव लेकिन सब कुछ सहज है, प्राकृतिक है, और आत्मिक आनंद से भरपूर है।

 आज की दुनिया में जहाँ थोड़ा श्रृंगार भी असहज बना देता है,

वहाँ सतयुग में श्रृंगार भी आत्मा की सहजता और सुंदरता को और निखारने वाला होता है।

 अगर आप भी सतयुग की इस दिव्यता को अनुभव करना चाहते हैं,

तो इस संगम युग में परमात्मा की याद से अपने संस्कारों को दिव्य बनाइये।

🎵👑👗 “सतयुग का संगीत, श्रृंगार और ड्रेस: जहाँ सब कुछ नैचुरल है!”


❓ प्रश्न 1: सतयुग में कैसा संगीत होता है?

✅ उत्तर:सतयुग का संगीत नैचुरल और दिव्यता से भरा होता है। वहाँ साज़ रतन-जड़ित होते हैं लेकिन उन्हें बजाने के लिए कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती। बस अंगुली रखते ही वे स्वतः मधुर स्वर निकालते हैं — जैसे आत्मा की शांति संगीत में बदल गई हो।

❓ प्रश्न 2: क्या सतयुग में हर आत्मा एक जैसी ड्रेस पहनती है?

✅ उत्तर:नहीं, सतयुग में हर आत्मा की ड्रेस उसके स्थान, कार्य और आत्मिक स्थिति के अनुसार अलग होती है। ड्रेस बहुत सुंदर होती है, पर दिखावे की नहीं — वह स्वाभाविक रॉयल्टी की पहचान होती है, आत्म-सम्मान और गरिमा की अभिव्यक्ति।

❓ प्रश्न 3: वहाँ का श्रृंगार कैसा होता है?

✅ उत्तर:वहाँ का श्रृंगार बेहद विविधतापूर्ण और सुंदर होता है — लेकिन वह बोझ नहीं होता। गहने और ताज आत्मा के सौंदर्य, गुणों और संस्कारों की पहचान होते हैं। पहनने के बाद भी आत्मा को कोई बोझ नहीं लगता — बल्कि वे आनंद और गरिमा का अनुभव कराते हैं।

❓ प्रश्न 4: सतयुग में ताज किस बात का प्रतीक होता है?

✅ उत्तर:सतयुग में ताज आत्मा के राज्य अधिकार, कर्तव्य, और गुणों का प्रतीक होता है। हर आत्मा के पास भिन्न-भिन्न प्रकार का ताज होता है, जो बिल्कुल लाइट, नैचुरल और आनंददायक होता है — कोई भारी या जबरदस्ती थोपे गए जैसा नहीं।

❓ प्रश्न 5: क्या सतयुग की यह दिव्यता कोई कल्पना है?

✅ उत्तर:नहीं, यह कोई कल्पना नहीं — यह हमारा भविष्य है। यह वही सतयुग है जो परमात्मा संगम युग में आकर हमें याद दिलाते हैं। आज हम जितना दिव्यता को याद करेंगे और अपनाएंगे, उतना ही हम उस दिव्य युग का हिस्सा बनेंगे।

❓ प्रश्न 6: आज के समय में हम उस नैचुरल सौंदर्य को कैसे अनुभव कर सकते हैं?

✅ उत्तर:इस संगम युग में हम परमात्मा की याद और राजयोग अभ्यास के माध्यम से अपने संस्कारों को दिव्य बना सकते हैं। जब आत्मा शुद्ध और शांत होती है, तो आंतरिक सुंदरता स्वयं बाहर प्रकट होती है — और वही सतयुगी सौंदर्य का बीज बनता है।

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