04- Absorption in bliss

04- आनंद में अवशोषण

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“स्वयं ईश्वर सिखाते हैं सहज राजयोग | कैसे बदलता है व्यक्तित्व? | चौथा योग पाठ | Brahma Kumaris”

 स्वयं ईश्वर सिखाते हैं सहज राजयोग

(चौथा योग पाठ – व्यक्तित्व परिवर्तन की अनुभूति)


 1: कौन सिखा रहा है राजयोग?

हमने जो विषय चुना है, वह बहुत ही अद्भुत है—“स्वयं ईश्वर आकर हमें सहज राजयोग सिखाते हैं।”
कोई मनुष्य नहीं, स्वयं परमात्मा!
और यह कोई साधारण योग नहीं, यह है राजाओं का योग—जिससे आत्मा फिर से राजसी बनती है।


 2. चौथा पाठ: क्या परिणाम होता है इस योग से?

आज हम इस सहज राजयोग का चौथा पाठ कर रहे हैं।
और इस पाठ का सीधा असर क्या होता है?

हमारे व्यक्तित्व में परिवर्तन।
 एक नई आत्म-छवि विकसित होती है।
 पवित्रता, शांति और सुख की अनुभूति।


 3. योग सत्र का अनुभव: पवित्रता और खुशी

जब हम योग सत्र करते हैं,
तो अभ्यासकर्ता को यह अनुभव होता है:
 वह पहले से ज्यादा शुद्ध और हल्का महसूस करता है।
 भीतर से खुशी की अथाह लहरें आती हैं।
 दूसरों के प्रति स्वाभाविक मित्रता और स्नेह आ जाता है।

क्यों?
क्योंकि ज्ञान से यह समझ बनती है:
सभी आत्माएं मेरे बाप के बच्चे हैं।
कोई पराया नहीं, सब अपने हैं।


4. हलकापन और शक्ति की अनुभूति

जैसे-जैसे आत्मा ज्ञान और योग के पंख लगाती है,
वैसे-वैसे…
 सिर से बोझ उतरता है।
 द्वेष, ईर्ष्या, प्रतिशोध जैसी भावनाएं समाप्त होती हैं।
 आत्मा को महसूस होता है—मैं उड़ने के लिए तैयार हूँ।


 5. इच्छाशक्ति, अथकता और उत्साह का विकास

जहाँ खुशी होती है, वहाँ
इच्छाशक्ति बढ़ती है
उत्साह बढ़ता है
 और फिर आत्मा कहती है—मैं कभी नहीं थकता।

जब आनंद भीतर से होता है,
तो बड़ी से बड़ी परिस्थितियाँ भी आपको प्रभावित नहीं करतीं।


 6. विपरीत परिस्थिति में भी स्थिरता

यदि आप आनंद में हैं, और कोई नुकसान भी कर दे,
तो आप सहजता से कहेंगे:
“कोई बात नहीं, सब ठीक है।”

लेकिन अगर मन दुखी है,
तो छोटी बात भी बहुत भारी लगती है।

 यह है राजयोग की शक्ति—विपरीत स्थिति में भी स्थिर रहना।


7. देवी गुणों का प्राकट्य

जैसे-जैसे कमजोरियाँ दूर होती हैं,
वैसे-वैसे देवी गुण प्रकट होते हैं—
 शुभ भावना
 शुभ कामना
 सहानुभूति
 सहज सेवा की वृत्ति


 8. निरंतरता की भावना और श्रीमत पर चलने की लगन

जब कोई आत्मा इस स्थिति का अनुभव कर लेती है,
तो उसमें यह भावना आ जाती है:
“मैं यह स्थिति खोना नहीं चाहता।”
वह बाबा की श्रीमत पर निरंतर चलना चाहता है।

 तब उसे दुनियावी बातों की कोई आकर्षण नहीं रहता।
उसे लगता है—“बाबा की श्रीमत ही मेरा रास्ता है।”


 9. क्यों कोई-कोई आत्मा छोड़ देती है यह मार्ग?

प्रश्न:अगर इतना अच्छा अनुभव होता है,
तो फिर भी कोई-कोई बाबा को क्यों छोड़ देते हैं?

उत्तर:
 कहीं न कहीं अवज्ञा हो जाती है।
 या फिर आत्मा का ड्रामा में पाठ पूरा हो गया है।
हर आत्मा एक्यूरेट एक्टर है।
एक सेकंड भी आगे-पीछे नहीं हो सकता।

हमें यह बात सिखाई जाती है:
“Right is right, but wrong is also right.”
जो गलत दिखता है, वह भी ड्रामा में सटीक है।


 10. समापन: दुनिया एक वंडरफुल नाटक

अब जब ज्ञान और योग का अनुभव होता है,
तो यह दुनिया एक अद्भुत नाटक लगती है।

हर दृश्य परिचित लगता है,
हर आत्मा एक पात्र लगती है।
और हमें स्मृति रहती है—
“हर 5000 साल बाद यही होता है।”

 यही है सहज राजयोग की शक्ति।
 यही है ईश्वर द्वारा सिखाई गई अद्भुत विधि।
 जिससे आत्मा फिर से देवता बनने की यात्रा पर चल पड़ती है।


समाप्ति संदेश:

“आइए, इस ज्ञान और योग के कोर्स को आगे बढ़ाएं,
बाबा की श्रीमत पर चलें,
और अपने जीवन को पावन, शक्तिशाली और दिव्य बनाएं।”

प्रश्नोत्तर (Q&A) – स्वयं ईश्वर सिखाते हैं सहज राजयोग

(चौथा योग पाठ – व्यक्तित्व परिवर्तन की अनुभूति)


प्रश्न 1: यह सहज राजयोग हमें कौन सिखा रहा है?

उत्तर:यह कोई मनुष्य नहीं, स्वयं परमात्मा सिखा रहे हैं।
वह Supreme Teacher बनकर आते हैं और हमें राजाओं का योग सिखाते हैं—जिससे आत्मा राजसी, पवित्र और शक्तिशाली बनती है।


प्रश्न 2: इस योग का चौथा पाठ क्या सिखाता है?

उत्तर:चौथे पाठ में हम अनुभव करते हैं कि—
👉 हमारे व्यक्तित्व में सकारात्मक परिवर्तन आता है।
👉 हमारी आत्म-छवि ऊँची और दिव्य बनती है।
👉 पवित्रता, शांति और खुशी की लहरें भीतर से उठती हैं।


प्रश्न 3: योग सत्र करने से हमें क्या अनुभव होता है?

उत्तर:
👉 आत्मा पहले से ज़्यादा हल्की और शांत महसूस करती है।
👉 भीतर से स्थायी खुशी का अनुभव होता है।
👉 दूसरों के प्रति स्नेह, मित्रता और दया की भावना स्वाभाविक बन जाती है।


प्रश्न 4: ज्ञान और योग से “हल्कापन” कैसे आता है?

उत्तर:जब आत्मा समझती है कि—सभी आत्माएँ मेरे भाई हैं, कोई शत्रु नहीं—
तो द्वेष, ईर्ष्या और बदले का बोझ उतर जाता है।
परिणामस्वरूप आत्मा हल्की और शक्तिशाली अनुभव करती है।


प्रश्न 5: राजयोग से इच्छाशक्ति और अथकता कैसे आती है?

उत्तर:जब आत्मा को परम आनंद मिलता है,
तो उसमें थकान नहीं आती।
👉 इच्छाशक्ति और उत्साह स्वाभाविक रूप से विकसित होते हैं।
👉 वह आत्मा बड़े संकल्प भी सहजता से पूरा कर पाती है।


प्रश्न 6: विपरीत परिस्थितियों में भी यह योग कैसे मदद करता है?

उत्तर:राजयोग अभ्यासकर्ता को भीतर से इतना संतुलित और आनंदमयी बना देता है
कि बड़े से बड़ा नुकसान भी वह सहजता से सह लेता है।
👉 दुख के समय भी आत्मा स्थिर बनी रहती है।


प्रश्न 7: राजयोग से कौन-कौन से देवी गुण प्रकट होते हैं?

उत्तर:राजयोग के अभ्यास से आत्मा में यह दिव्य गुण प्रकट होते हैं—
✔️ शुभ भावना
✔️ शुभ कामना
✔️ सहानुभूति
✔️ सहज सेवा भावना


प्रश्न 8: यह अनुभव निरंतर कैसे बना रहता है?

उत्तर:जब आत्मा बाबा की श्रीमत पर चलने में आनंद अनुभव करती है,
तो वह उस स्थिति को खोना नहीं चाहती।
👉 उसे दुनियावी आकर्षण नहीं खींचते।
👉 वह बाबा की आज्ञा को ही सर्वोपरि मानती है।


प्रश्न 9: जब अनुभव इतना अच्छा है, तो कुछ आत्माएँ यह मार्ग क्यों छोड़ देती हैं?

उत्तर:
👉 या तो अवज्ञा हो जाती है—बाबा की श्रीमत को नहीं मानते।
👉 या फिर आत्मा का पाठ ड्रामा में पूरा हो चुका होता है।
हर आत्मा एक्यूरेट एक्टर है।
“Right is right, but wrong is also right.”


प्रश्न 10: इस ज्ञान से दुनिया कैसी प्रतीत होती है?

उत्तर:जब योग और ज्ञान का अनुभव होता है,
तो यह दुनिया एक सुंदर और वंडरफुल नाटक जैसी प्रतीत होती है।
हर दृश्य, हर आत्मा परिचित लगती है।
👉 और आत्मा कहती है—”हर 5000 वर्ष बाद यही होता है।”


🔔 समाप्ति संदेश (Closing Message):

“आइए, परमात्मा द्वारा सिखाए जा रहे सहज राजयोग का अनुभव लें,
इस दिव्य पाठ को अपनी दिनचर्या बनाएं,
और अपने व्यक्तित्व को देवता समान, शक्तिशाली और आनंदमयी बनाएं।”

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