07- Beyond Illusion: Awakening from Sensory Bondage

07-भ्रम से परेः संवेदी बंधन से जागृति

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“इंद्रियों का गुलाम क्यों बना है मनुष्य? | परमात्मा द्वारा सिखाया गया राजयोग | जागो आत्मा!”

“किसी को कोई बात समझ में नहीं आती है तो पूछ सकते हैं…”
हम सब किसी न किसी प्रश्न से जूझते हैं। लेकिन क्या आपने कभी पूछा — मैं कौन हूँ?, मैं क्या कर रहा हूँ?, क्या यही जीवन है?
इसका उत्तर हमें तब मिलता है जब परमात्मा स्वयं आकर हमें सहज राजयोग सिखाते हैं।


1. परमात्मा द्वारा दिया गया सहज राजयोग

  • यह कोई मनुष्यमात्र द्वारा बनाया हुआ योग नहीं है।

  • यह स्वयं परमपिता परमात्मा द्वारा दिया गया ज्ञान और योग है, जो हमें आत्मिक दृष्टिकोण और बंधनों से मुक्त जीवन सिखाता है।

🗣 “यह कोई साधारण विषय नहीं, यह स्वयं ईश्वर की शिक्षा है।”


 2. भ्रम और संवेदी बंधन से मुक्ति की यात्रा

  • हम जो कुछ भी देख रहे हैं, समझ रहे हैं, वह इंद्रियों द्वारा निर्मित एक भ्रम है।

  • असल में हम दृश्य संसार के गुलाम बन गए हैं, जबकि हम आत्मा हैं — शाश्वत, अविनाशी।

  • “हम देख कुछ रहे हैं, लेकिन है कुछ और।”

🪞 उदाहरण: जैसे दर्पण में छाया को पकड़ने की कोशिश करना — वैसा ही है संसार में स्थायित्व ढूंढना।


 3. बनावटी बंधनों में फंसी आत्मा

  • समाज, परिवार, परंपरा — सबने मिलकर आत्मा को बाँध दिया है।

  • लेकिन राजयोग हमें सिखाता है:
    “तुम आत्मा हो, बंधनहीन, स्वतंत्र।”

 परमात्मा हमें अवेकनिंग की प्रक्रिया में ले जाते हैं — जिससे हम इन बंधनों को पहचानते और पार करते हैं।


 4. इंद्रियों के चूहे और ऊँट का उदाहरण

  • जैसे एक छोटा सा चूहा ऊँट को रस्सी से खींच ले जाता है।

  • वैसे ही हमारी इंद्रियाँ — आँख, कान, स्वाद — हमें खींचकर क्षणिक सुख की ओर ले जाती हैं।

“हमारी आत्मा जैसी ऊँट है, और इच्छाएँ जैसे छोटे चूहे।”


 5. क्षणभंगुर सुखों के पीछे भागती आत्मा

  • आज का मनुष्य खाने, देखने, पहनने — इन सब में जीवन ढूंढता है।

  • आकर्षणों का जाल इतना गहरा है कि वास्तविक जीवन की अनुभूति ही खो गई है।

 लेकिन यह जीवन नहीं है
यह एक स्वप्न जैसी अवस्था है जो कभी भी टूट सकती है।


 6. वस्तुएं क्षणिक हैं, आत्मा शाश्वत है

  • चाहे कितनी भी सुंदर कार हो, बाग़ हो, महल हो — सब नश्वर हैं।

  • सब कुछ टूटने, मुरझाने, विघटित होने की ओर अग्रसर है।

“जो दिख रहा है, वह सब मिट रहा है।”


 7. समाधान: इंद्रियों का गुलाम न बनें

  • अगर कोई सच्चा सुख है, तो वह आत्मा की जागृति में है।

  • राजयोग का अभ्यास हमें इंद्रियों की दासता से स्वतंत्र बनाता है।


 उपसंहार (Conclusion)

परमात्मा हमें सिखा रहे हैं — कैसे भ्रम से निकलकर जाग्रत आत्मा बना जाए।
आप भी जानिए, समझिए और सेवा केंद्र से जुड़िए।

“इंद्रियों का गुलाम क्यों बना है मनुष्य? | परमात्मा द्वारा सिखाया गया राजयोग | जागो आत्मा!”


 भूमिका (Introduction)

Q1: क्या हम सभी के मन में कभी न कभी यह प्रश्न उठता है कि “मैं कौन हूँ?”
उत्तर: हाँ, यह प्रश्न आत्मिक जागृति की शुरुआत है। जब हम यह जानना चाहते हैं कि “मैं कौन हूँ?”, “मेरा जीवन का उद्देश्य क्या है?”, तभी परमात्मा द्वारा सिखाया गया राजयोग हमारे जीवन में दिशा देता है।


 1. परमात्मा द्वारा दिया गया सहज राजयोग

Q2: राजयोग क्या है, और यह किसने सिखाया?
उत्तर: यह कोई मनुष्य द्वारा बनाया हुआ तरीका नहीं है, बल्कि स्वयं परमपिता परमात्मा द्वारा दिया गया आत्मिक ज्ञान और योग है। वह हमें सिखाते हैं कि हम आत्मा हैं और कैसे हम जीवन के बंधनों से मुक्त हो सकते हैं।


 2. भ्रम और संवेदी बंधन से मुक्ति की यात्रा

Q3: हम भ्रम में क्यों जी रहे हैं?
उत्तर: क्योंकि हम इंद्रियों द्वारा देखे जाने वाले दृश्य को ही सत्य मान बैठे हैं। जबकि सत्य आत्मा है — अदृश्य, अविनाशी, और शाश्वत।
जैसे कोई दर्पण में छाया को पकड़ने की कोशिश करे — वैसा ही है संसार को पकड़ने का प्रयास।


 3. बनावटी बंधनों में फंसी आत्मा

Q4: कौन से बंधन हमें आत्मिक स्वतंत्रता से रोकते हैं?
उत्तर: परिवार, समाज, परंपराएं और नाम-रूप — ये सभी बंधन आत्मा को बाँधते हैं। लेकिन राजयोग सिखाता है — “तुम आत्मा हो, स्वतंत्र हो, बंधनहीन हो।”


 4. इंद्रियों के चूहे और ऊँट का उदाहरण

Q5: मनुष्य इंद्रियों के वश में कैसे आ गया?
उत्तर: जैसे एक छोटा चूहा ऊँट को रस्सी से बाँधकर खींच ले जाता है, वैसे ही इच्छाएं और इंद्रियाँ — स्वाद, दृष्टि, स्पर्श — आत्मा को क्षणिक सुखों की ओर खींचती हैं।


 5. क्षणभंगुर सुखों के पीछे भागती आत्मा

Q6: आज का मनुष्य किन-किन बातों में सुख ढूंढता है?
उत्तर: आज मनुष्य खाने, पहनने, घूमने, देखने और सजने में जीवन का आनंद ढूंढता है। लेकिन ये सब कुछ क्षणभंगुर हैं, टिकाऊ नहीं।
👉 यह जीवन नहीं, एक भ्रम है।


 6. वस्तुएं क्षणिक हैं, आत्मा शाश्वत है

Q7: क्या संसार की वस्तुएं स्थायी हैं?
उत्तर: नहीं, चाहे कार हो या महल, सब कुछ मिटने वाला है। हर वस्तु टूटने, फूटने, मुरझाने और धूल में बदलने की प्रक्रिया में है।
 “जो दिख रहा है, वह सब नाशवान है।”


 7. समाधान: इंद्रियों का गुलाम न बनें

Q8: क्या कोई ऐसा तरीका है जिससे हम इंद्रियों के गुलाम बनने से बच सकें?
उत्तर: हाँ, इसका समाधान है — सहज राजयोग। यह हमें आत्मा की पहचान कराता है और इंद्रिय विषयों से परे, आत्म-सुख में स्थित होना सिखाता है।
🕊 “इंद्रियों का गुलाम मत बनो, आत्मा का स्वामी बनो।”


उपसंहार (Conclusion)

Q9: इस ज्ञान को जीवन में लाने के लिए पहला कदम क्या है?
उत्तर: पहला कदम है — प्रश्न करना और समझने की भावना रखना।
फिर, राजयोग को नियमित अभ्यास बनाना और सेवा केंद्र से जुड़ना। तभी हम भ्रम से निकलकर जाग्रत आत्मा बन सकते हैं।

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